नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश के कैराना के सियासी लिटमस टेस्ट में महागठबंधन की कामयाबी के बाद कांग्रेस ने अगले लोकसभा चुनाव में राज्यवार गठबंधन को लेकर विचार मंथन शुरू कर दिया है। उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे बड़े राज्यों में अपनी सियासी जमीन की कमजोरी भांपते हुए पार्टी दमदार चेहरों के सहारे गठबंधन में ज्यादा से ज्यादा सीटें हासिल करने की कसरत करेगी। इस क्रम में जल्दी ही स्वतंत्र एजेंसियों के जरिये इन सूबों में कांग्रेस की जीत की संभावना वाले सीटों की पहचान का काम शुरू होगा। अगले लोकसभा में अपनी सीटों की संख्या सौ के पार ले जाने पर निगाह लगा रही कांग्रेस यह मान रही कि सूबों में गठबंधन के बिना यह लक्ष्य हासिल करना मुश्किल है।
-कांग्रेस को 2014 में इन चार सूबों की 177 में केवल 8 सीटें ही मिली थी
कांग्रेस इस हकीकत को भी नहीं नकार रही कि केवल गठबंधन के सहारे ही भाजपा और नरेंद्र मोदी के सियासी रथ को रोका जा सकता है। जैसाकि पार्टी प्रवक्ता अभिषेक सिंघवी ने गुरूवार को कहा भी कि स्वरुप क्या होगा यह अभी भले तय नहीं है मगर गठबंधन को लेकर सैद्धांतिक सहमति है इसमें संदेह की गुंजाइश नहीं। वहीं पार्टी के एक वरिष्ठ रणनीतिकार ने कहा कि कैराना लोकसभा उपचुनाव के नतीजों ने सभी विपक्षी दलों को अगले चुनाव की राह दिखा दी है। कांग्रेस भी अब उत्तरप्रदेश में गोरखपुर और फूलपुर की गलती नहीं दोहराएगी।
हालांकि पार्टी नेता ने यह माना कि गठबंधन की खातिर कांग्रेस ही नहीं अन्य सभी दलों को सीटों की संख्या की जिद छोड़ लचीला होना पड़ेगा। बसपा प्रमुख मायावती ने सूबे की 40 सीटें मांग कर सीट बंटवारे की सियासत की गहमागहमी का पहले ही संकेत दे दिया है।
बसपा का यह रुख स्वाभाविक रुप से कांग्रेस के लिए चिंता का विषय है क्योंकि उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे बड़े राज्यों में क्षेत्रीय दलों के मुकाबले उसकी सियासी हैसियत कम है। ऐसे में गठबंधन में सम्मानजनक सीटें हासिल करना पार्टी की बड़ी चुनौती है। इसीलिए पार्टी में इस बात पर चर्चा शुरू हो गई है कि हर सूबे के बड़े नेताओं को चुनाव मैदान में उतारा जाना चाहिए। बड़े नेताओं की दावेदारी के सहारे गठबंधन में पार्टी को उम्मीद के हिसाब से सीटें हासिल करने में भी मदद मिलेगी।
अभी सीटों की संख्या पर तो कोई चर्चा शुरु नहीं हुई है मगर कांग्रेस रणनीतिकारों की अनौपचारिक चर्चा से साफ है कि पार्टी उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में गठबंधन के सहारे अपने सीटों की संख्या कम से कम 30 तक ले जाना चाहती है। इन चार राज्यों की कुल 177 लोकसभा सीटों में से 2014 के चुनाव में कांग्रेस को केवल 8 सीटें मिली थी। इसमें उत्तर प्रदेश और बिहार से दो-दो और पश्चिम बंगाल से चार सीटें थीं। झारखंड में पार्टी का खाता भी नहीं खुला था। लोकसभा में कांग्रेस के अब तक के सबसे कमजोर प्रदर्शन में इन राज्यों के नतीजों ने अहम भूमिका निभाई थी।
सपा-बसपा और रालोद के साथ उत्तर प्रदेश में गठबंधन के सहारे कांग्रेस इस बार दहाई का आंकड़ा पार करने के लक्ष्य पर निशाना साधने की तैयारी में है। बिहार में राजद, एनसीपी और जीतन राम मांझी की हम पार्टी के संयुक्त गठबंधन में भी कांग्रेस का लक्ष्य कमोबेश यही रहेगा। झामुमो के साथ तालमेल कर पार्टी झारखंड की आधा दर्जन सीटें जीतने पर निगाह लगा रही है। जबकि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के साथ गठबंधन को लेकर अभी तस्वीर साफ नहीं हुई है। इसीलिए माकपा के साथ भी चुनावी तालमेल का विकल्प पार्टी ने खुला रखा है।