विपक्ष की तमाम आलोचनाओं का सामना करते हुए वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) अब एकीकृत कर व्यवस्था के रूप में सामने आ चुका है। जीएसटी के पक्ष में विचार रखने वाले लोगों का मानना है कि यह तेजी से एक कर-अनुपालन उपकरण के रूप में उभर रहा है।
उन तमाम आलोचनाओं को खारिज करते हुए जिसमें कहा गया कि यह बुरी तरह लागू किया गया अच्छा कानून था, इसके समर्थकों ने कहा कि मलेशिया में जीएसटी को लागू होने में दो वर्षों का समय लग गया, जो कि भारत में इस तरह का कानून लागू होने से पहले जीएसटी लाने वाला देश था। लेकिन नई सरकार के आने के बाद वहां इस टैक्स व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया। गौरतलब है कि भारत में वस्तु एवं सेवाकर को 1 जुलाई 2017 को देशभर में लागू कर दिया गया था।
यह विश्वास जताते हुए कि नई अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था अब स्थिर हो गई है, अधिकारियों को लगता है अब लाभ पाने का समय है और अब सरकार का ध्यान कार्यवाही करने, रिटर्न को आसान बनाने और रिफंड प्रक्रिया को बेहतर करने पर शिफ्ट हो गया है।
जानकारी के लिए आपको बता दें कि वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) ने तमाम स्थानीय करों एवं उपकरों को खत्म कर दिया था और इसे 1 जुलाई 2017 को लागू कर दिया गया। इसे एक दशक की राजनीतिक बहस के बाद केवल तीन महीने की ठोस योजना में मूर्त रूप दिया गया।
किसी भी अन्य सुधार की तरह जीएसटी को भी शुरुआती परेशानियों का सामना करना पड़ा। विपक्षी पार्टियों ने पांच टैक्स दरों को लेकर ‘वन नेशन, वन टैक्स’ की आलोचना करते हुए यूके और सिंगापुर का हवाला दिया जहां जहां कर की सिर्फ एक दर लागू है। गौरतलब है कि जीएसटी के अंतर्गत 0,5,12,18 और 28 फीसद की टैक्स दर लागू है। वन नेशन-वन टैक्स का असल स्वरूप वर्ष 2018 में सामने आया जब दो राज्यों के बीच लगने वाली चुंगी की जगह इलेक्ट्रॉनिक परमिट ने ले ली।
वर्ष 2018 के दौरान कई बार वस्तुओं एवं सेवाओं पर कर की दरों को तर्कसंगत किया गया। जीएसटी काउंसिल की आखिरी बैठक में भी काफी सारी वस्तुओं पर लागू 28 फीसद की टैक्स दर को कम किया गया है। अब जीएसटी की 28 फीसद की उच्चतम टैक्स स्लैब में सिर्फ दो दर्जन वस्तुएं ही रह गईं हैं।