अब हम राष्ट्रीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की कुछ दिलचस्प तस्वीरों का तुलनात्मक विश्लेषण करेंगे. हम आपको कुछ तस्वीरें दिखाना चाहते हैं. ये तस्वीरें शुक्रवार की हैं. इनमें से एक तस्वीर देश की राजधानी दिल्ली की है. और दूसरी तस्वीर दिल्ली से 15 हज़ार 775 किलोमीटर दूर अर्जेंटीना की राजधानी Buenos Aires की है. पहली तस्वीर में देश के कुछ नेताओं ने किसानों के मंच को चुनावी मंच बनाकर किसानों का इस्तेमाल किया.
और दूसरी तस्वीर में देश के प्रधानमंत्री बड़े बड़े देशों के सर्वोच्च नेताओं से मिल रहे हैं. दिल्ली वाली तस्वीर में 2019 के चुनावों की तैयारी है, तो Buenos Aires वाली तस्वीर में 2022 की तैयारी है. क्योंकि 2022 में पहली बार G-20 Summit भारत में होगा. ये दोनों ही महागठबंधन हैं, इनमें से एक नरेंद्र मोदी के दुश्मनों का राष्ट्रीय महागठबंधन है और दूसरा नरेंद्र मोदी के दोस्तों का अंतरराष्ट्रीय महागठबंधन है. इन दोनों तस्वीरों में वैसे तो कोई बड़ी समानता नहीं है, लेकिन अगर आप ध्यान से देखेंगे तो इन दोनों तस्वीरों में बहुत कुछ छिपा हुआ है.
किसानों के मंच पर मौजूद नेताओं ने हाथ उठाकर एक तरह से विपक्षी एकता दिखाने की कोशिश की. पूरे देश को ये बताने की कोशिश की गई कि कैसे ये नेता किसानों की समस्याओं को लेकर सजग और गंभीर हैं. हालांकि इस पूरे आयोजन में किसानों की बातें कम थीं और नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री के पद से हटाने की बातें ज्यादा थीं. वैसे विपक्ष वक्त वक्त पर अपनी ऐसी एकता कई बार दिखा चुका है.
ये तस्वीरें इसी वर्ष मई की हैं. जब कर्नाटक के मुख्यमंत्री HD कुमारस्वामी का शपथ ग्रहण था. इस शपथ ग्रहण में पूरा विपक्ष इक्कठा हुआ था. और तब भी विपक्ष ने मीडिया के लिए ऐसे ही तस्वीरें खिंचवाईं थीं. विपक्ष के नेताओं ने एक दूसरे का हाथ पकड़कर बिलकुल इसी तरह उठाया था. तब ये दावा किया गया था कि अगर पूरे देश में विपक्ष एक हो गया तो नरेन्द्र मोदी और बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी हो जाएंगी. वैसे अगर पूरा विपक्ष एक साथ मिल गया तो फिर नरेंद्र मोदी को चुनौती मिल सकती है और ऐसे में 2022 में G-20 वाले महागठबंधन की तस्वीर बदल जाएगी और उसमें नरेंद्र मोदी नहीं.. बल्कि कोई और होगा.
अब भारत में विपक्ष के महागठबंधन और G-20 वाले अंतर्राष्ट्रीय महागठबंधन की तस्वीरों को मिलाकर, भविष्य में देखने की कोशिश कीजिए. देश में अगले वर्ष मई में नई सरकार बननी तय है. नया प्रधानमंत्री कौन होगा ये फिलहाल कोई नहीं कह सकता. अगर बीजेपी जीती तो नरेन्द्र मोदी एक बार फिर प्रधानमंत्री बनेंगे, लेकिन अगर बीजेपी हार गई और विपक्ष का महागठबंधन जीत गया तो फिर कौन प्रधानमंत्री बनेगा?
सारी संभावनाओं को एक साथ मिलाकर देखा जाए तो दिमाग में तीन चार नाम आते हैं… और ये नाम हैं – ऐसी स्थिति में राहुल गांधी, मायावती, ममता बनर्जी या चंद्रबाबू नायडू में से कोई भी प्रधानमंत्री बन सकता है. अब ज़रा इन चारों नेताओं को नरेन्द्र मोदी की जगह दुनिया के बड़े बड़े नेताओं के बगल में खड़ा करके देखिए. हम आपको बस ये बताना चाहते हैं कि राहुल गांधी, ममता बनर्जी, मायावती या चंद्रबाबू नायडू, अगर देश के अगले प्रधानमंत्री बनते हैं, तो फिर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उनकी तस्वीरें कैसी होंगी?
ये तस्वीर BRICS देशों के सर्वोच्च नेताओं की तस्वीरें हैं, जिनकी मुलाकात G-20 सम्मेलन के दौरान.. ब्यूनौस आयर्स.. में हुई. इस तस्वीर में Brazil के राष्ट्रपति मिशेल तेमेर, Russia के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन, दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफ़ोसा, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नज़र आ रहे हैं.
BRICS देशों की अगली बैठक अक्टूबर 2019 में ब्राज़ील में होगी. और इस बैठक में ब्राज़ील, Russia और चीन के यही नेता मौजूद होंगे, लेकिन उस वक्त भारत का प्रधानमंत्री और दक्षिण अफ्रीका का राष्ट्रपति कौन होगा, इसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता, क्योंकि भारत के साथ साथ दक्षिण अफ्रीका में भी अगले वर्ष चुनाव होने वाले हैं.
हमने आपको BRICS देशों के राष्ट्र अध्यक्षों की तस्वीर में भारत के प्रधानमंत्री पद के कुछ दावेदारों की तस्वीरें दिखाई हैं. राजनीति में कुछ भी हो सकता है. इसलिए किसी भी संभावना को पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता. लेकिन यहां जो सबसे महत्वपूर्ण बात है वो ये है कि जो Personal Chemistry प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और दुनिया के बाकी अंतरराष्ट्रीय नेताओं के बीच दिखती है, क्या विदेशी नेताओं की वही Chemistry मायावती, ममता बनर्जी, राहुल गांधी या चंद्रबाबू नायडू के साथ देखने को मिलेगी?
चाहे अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप हों, या Russia के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन, नरेन्द्र मोदी दुनिया के इन दोनों बड़े नेताओं से सीधे गले मिलते हैं और एक अनौपचारिक संवाद बनाकर रखते हैं. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की एक अलग Chemistry है. इसी वर्ष प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से अनौपचारिक रुप से मिलने के लिए चीन पहुंच गए थे. अगर 2019 में नरेंद्र मोदी की जगह कोई और प्रधानमंत्री बना तो हो सकता है कि ये Personal Chemistry देखने को ना मिले.
लेकिन इसका दूसरा पहलू ये भी है कि दुनिया के तमाम नेता.. सिर्फ भारत के प्रधानमंत्री को नहीं देखते. वो भारत के बाज़ार और आर्थिक संभावनाओं को देखते हैं. अगर अमेरिका, Russia या चीन भारत से व्यापार करना चाहते हैं, तो वो भारत के इतने बड़े बाज़ार के बारे में, सबसे पहले सोचते हैं. इसलिए प्रधानमंत्री चाहे कोई भी रहे, इन देशों के रिश्ते अच्छे ही रहेंगे, हालांकि अगर दुनिया के दो बड़े नेता एक दूसरे को निजी तौर पर जानते और समझते हैं, तो फिर कूटनीतिक संबंधों का स्तर कुछ और ही होता है.
2019 के लोकसभा चुनाव में अब करीब पांच महीने रह गये हैं. देश का हर नेता 2019 के बारे में सोच रहा है और 2019 वाली योजनाएं बना रहा है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, लगातार 2022 की बात कर रहे हैं. 2022 में भारत की आज़ादी की 75वीं वर्षगांठ होगी. और इसी वर्ष पहली बार भारत G-20 सम्मेलन का आयोजन करेगा. वैसे ये सम्मेलन इटली में होना था. लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और इटली के प्रधानमंत्री की मुलाकात के बाद ये तय हुआ कि 2022 में G-20 की मेज़बानी भारत करेगा.
इसके अलावा वर्ष 2021 से 2022 तक भारत संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य बनना चाहता है. इससे पहले भारत 2011-12 में सुरक्षा परिषद का अस्थाई सदस्य था. संयुक्त राष्ट्र में 5 स्थाई सदस्य हैं, जिनके नाम हैं- अमेरिका, Russia, चीन, फ्रांस और United Kingdom. इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में 10 अस्थाई सदस्य भी होते हैं. वैसे भारत लंबे समय से सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य भी बनना चाहता है.
2022 तक भारत में बुलेट ट्रेन चलाने का सपना पूरा होगा. बुलेट ट्रेन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सबसे बड़े वायदों में से एक है. इसके लिए उनकी तारीफ भी हुई है और आलोचना भी. इस वादे को पूरा करना प्रधानमंत्री की प्राथमिकताओं में सबसे ऊपर होगा. इसके अलावा 2022 में ही भारत अपना पहला अंतरिक्ष मानव मिशन भी Launch करेगा. ISRO, 2022 में.. अंतरिक्ष में 7 दिनों के लिए 3 Astronauts को भेजेगा. यानी नरेंद्र मोदी 2022 वाली योजनाओं को लेकर आश्वस्त हैं. उनका फोकस 2019 पर नहीं बल्कि 2022 पर है. इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आत्मविश्वास दिखता है. जबकि विपक्ष के लिए इसमें तस्वीर बदलने का एक मौका दिखाई देता है.