सैयद मोदी बैडमिंटन : समीर और सौरभ वर्मा को खेलते देख भावुक हुईं मां संगीता
बोलीं, परिवार की आंखों में बस एक ही सपना, दोनों बच्चे ओलंपिक में जीते मेडल
लखनऊ : नवाबों की नगरी में अपने बेटों समीर वर्मा और सौरभ वर्मा का मैच देखने और उत्साहवर्द्धन करने पहुंची उनकी मां संगीता वर्मा के आंखों से खुशी के आंसू निकल रहे थे। ऐसा इसलिए हुआ था कि वह पहली बार अपने बेटों का लाइव मच देखने पहुंची थी। गुरुवार को जब यह मां वीआईपी पास के सहारे गैलरी में बैठी तो उन्होंने कहा कि खुशी की बात है कि मेरे दोनों बेटे आज भारत का नाम बुलंद कर रहे है। उन्होंने कहा कि संसाधनों की कमी से भी दोनों के जुनून में कोई कमी नहीं आई। उन्होंने कहा कि वीआईपी पास मेरे बेटे ने मुझे दिलाया है और मैं आज मैच देख रही हूं। हालांकि मैने सोचा नहीं था कि बेटों को मैं लाइव खेलते देख पाउंगी लेकिन आज ऐसा हुआ है। इस मां ने अपने बेटों के बारे में कहा कि बड़ा जितना शांत और संस्कारी है तो छोटा उतना ही शैतान है।
संगीता ने बताया कि हम मिडिल क्लास परिवार से है जहां बच्चों की परवरिश में कई दिक्कतें आती है। हालांकि आज बच्चों की मेहनत रंग लाई और हमने उनके हौसलों में कमी नहीं आई। हमने भी उन्हें कोई कमी नहीं होने दी। मेरे परिवार में हम सब की इच्छा है दोनों बच्चें ओलम्पिक में भारत के लिये मेडल जीते और ऐसे ही आगे बढ़ते रहें। उन्होंने उम्मीद जताई कि मेरे दोनों लाड़ले एक दिन विश्व खेल पटल पर भारत का परचम लहराएंगे। वैसे ओलंपिक में भारत के लिए साइना और सिंधु ने पदक जीते है लेकिन मेरी चाहत है कि बेटे भी ओलंपिक में इन दोनों की तरह देश का परचम लहराए।
परिवार में खेल का माहौल देखकर आगे बढ़े बच्चे
संगीता वर्मा ने बताया कि परिवार में पति सुधीर वर्मा खेल से जुड़े थे और अपने शुरूआती दिनों में फुटबॉल खेलते थे। अब वह एक सरकारी कर्मचारी होने के साथ बैडमिंटन कोच भी हैं। परिवार में खेल का माहौल होने से बच्चे भी आगे बढ़े। इसमें पहले सौरभ ने बैडमिंटन खेलना शुरू किया और अपने बड़े भाई को देखकर समीर भी बैडमिंटन खेलने लगे और आज छोटा भाई आगे निकल गया है। उन्होंने बताया कि सौरभ के अलावा समीर की दो बड़ी बहनें, दो छोटे भाई और एक छोटी बहन है और सभी खेल से जुड़े हैं। उन्होंने कहा कि दोनों बच्चों की दादी मां अपने पोतों के खेल को खूब सराहती है। मध्य प्रदेश के धार जिले में एक मध्यवर्गीय संयुक्त परिवार के निवासी इन बच्चों का शुरूआती प्रशिक्षण धार में ही हुआ है। दोनों बच्चे सुबह चार बजे से अपने पिता के साथ अभ्यास के लिये निकल जाते थे। धार में कोई बेहतर सुविधा न होने के कारण इन्हें बहुत सी मुश्किलों का सामना करना पड़ता था।