शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में महाराष्ट्र के सीएम देवेद्र फड़नवीस पर निशाना साधा है. सामना में लिखा है कि मुख्यमंत्री फडणवीस ने जिस हिम्मत से मराठा आरक्षण की घोषणा की उसी हिम्मत से शिवराय की दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा के निर्माण की घोषणा उन्हें करनी चाहिए. शिवराय की प्रतिमा अन्य किसी भी नेता की तुलना में बड़ी और ऊंची ही होनी चाहिए और उसके लिए सिर्फ फडणवीस सरकार ही नहीं बल्कि महाराष्ट्र के सभी दल के नेताओं को एक होना चाहिए. सरदार पटेल की प्रतिमा ऊंची साबित हो इसीलिए शिवाजी महाराज (शिवराय) की प्रतिमा की ऊंचाई को कम करना संकुचित, विकृत मानसिकता की निशानी है. इसके साथ ही यह भी कहा गया है कि छत्रपति शिवराय की ऊंचाई वाला नेता भी नहीं है मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को दृढ़ होकर बताना चाहिए कि शिवराय से अधिक ऊंचाई की कोई प्रतिमा नहीं होगी.
सामना के लेख की शुरुआत में लिखा गया है, “गुजरात में लगाई गई सरदार पटेल की प्रतिमा मतलब ‘स्टेच्यू ऑफ यूनिटी’ अंतरिक्ष से भी दिखाई देने के चलते मोदी भक्त खुश हैं. सरदार पटेल के कार्यों की ऊंचाई मोदी भक्तों से भी बड़ी है. पटेल की प्रतिमा अंतरिक्ष से दिखाई देती है इसलिए पटेल बड़े नहीं, पटेल जैसा बड़ा कार्य करके दिखाना ही पटेल की ऊंचाई नापने का असली पैमाना है. पटेल की प्रतिमा 182 मीटर है और वो दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा मानी जा रही है. ‘पटेल की प्रतिमा दुनिया की सबसे भारी प्रतिमा बने इसलिए मुंबई के समुद्र में बनने वाली छत्रपति शिवराय की प्रतिमा की ऊंचाई कम कर दी गई है.’ ऐसा नया आरोप राष्ट्रवादी के प्रांत अध्यक्ष जयंत पाटील ने लगाया और वह साबित हो इस तरह की घटनाएं हो रही हैं.”
लेख में आगे महाराष्ट्र सरकार पर निशाना साधते हुए लिखा गया है, “सरदार पटेल की प्रतिमा गुजरात सरकार ने बनाई और उसका लोकार्पण हुआ. सरकारी तिजोरी के दरवाजे उसके लिए हमेशा खुले रखे गए. लेकिन महाराष्ट्र में शिवराय के भव्य स्मारक की नींव भी अभी नहीं रखी गई है, इसका खेद किसी को होता है क्या? सरदार की सर्वाधिक ऊंचाई वाली प्रतिमा पहले बने और उनके सामने शिवराय जैसा युगपुरुष बौना साबित हो, ऐसी कोई अंदरूनी योजना थी क्या और उसी के अनुसार शिवराय के स्मारक को लटकाए रखा गया इस तरह की आशंकाओं को बल मिलता है.”
सामना में आगे केन्द्र सरकार पर भी लक्ष्य साधते हुए लिखा गया है, “शिवराय की प्रतिमा अन्य किसी भी नेता की तुलना में बड़ी और ऊंची ही होनी चाहिए और उसके लिए सिर्फ फडणवीस सरकार ही नहीं बल्कि महाराष्ट्र के सभी दल के नेताओं को एक होना चाहिए. संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन के शहीदों का स्मारक बनाने के लिए उस समय सत्ताधारी और विरोधियों की एकजुटता हुई थी और इसी एकता के तहत भव्य हुतात्मा स्मारक का निर्माण किया गया. शिवराय के भव्य स्मारक के लिए इस तरह की एकता होनी चाहिए. इन दिनों शिवराय की प्रतिमा का श्रेय लेने के लिए अंतर्गत रस्साकशी जारी है. शिव स्मारक के लिए सरकार ने महामंडल की स्थापना की है. उसके अध्यक्ष विनायक मेटे हैं लेकिन स्मारक के बारे में सारे निर्णय मुख्यमंत्री फडणवीस ले रहे हैं. शिवराय का भव्य ऊंचा स्मारक बने यह सिर्फ भाजपा, मेटे तथा अन्य संगठनों की जिम्मेदारी नहीं बल्कि पूरे महाराष्ट्र राज्य तथा केंद्र का भी कर्तव्य है. शिवराय, पृथ्वीराज चौहान, गुरु गोविंद सिंह की तलवारें चलीं इसीलिए हिंदुस्थान पूरा पाकिस्तान बनने से थम गया. शिवराय की भवानी तलवार ही सभी की प्रेरणा थी. आज भी वो है. हिंदुत्व को प्रतिष्ठा देने का काम सबसे पहले छत्रपति शिवराय ने किया. उन्होंने मुगलों को गाड़कर जिस राज्य का निर्माण किया उसका नाम ‘हिंदवी स्वराज्य’ रखा.
लेख में आगे शिवाजी की तारीफ करते हुए लिखा गया है, “शिवराय नहीं होते तो देश की ही सुन्नत हो गई होती इसलिए अरब सागर में छत्रपति की भव्य प्रतिमा बनाने पर राजनीति थमनी चाहिए. दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा सरदार पटेल की हो, ऐसी इच्छा मोदी की होगी. यह प्रतिमा आज अंतरिक्ष से दिखाई देती है, वह प्रशंसनीय है. लेकिन हिंदवी स्वराज्य के संस्थापक शिवराय ही हिंदुओं की आत्मा और प्राण हैं. वे सदैव लोगों के अंतर्मन में विराजमान हैं. पटेल की प्रतिमा ऊंची साबित हो इसीलिए शिवराय की प्रतिमा की ऊंचाई को कम करना संकुचित, विकृत मानसिकता की निशानी है और उसके लिए महाराष्ट्र की विधानसभा में ‘यूनिटी’ का दर्शन होना ही चाहिए.
लेख में आगे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को नसीहत देते हुए लिखा गया है, “मुख्यमंत्री फडणवीस ने जिस हिम्मत से मराठा आरक्षण की घोषणा की उसी हिम्मत से शिवराय की दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा के निर्माण की घोषणा उन्हें करनी चाहिए. फडणवीस ऐसी घोषणा करेंगे इसलिए मोदी, शाह उन पर आंख तरेरेंगे नहीं तथा सरदार पटेल की प्रतिष्ठा भी इससे कम नहीं होगी.”
फडणवीस को ललकारने के अंदाज में लेख के अंत में एक पुरानी राजनीतिक घटना का जिक्र करते हुए लिखा गया है, “महाराष्ट्र को मुंबई मिले इसलिए चिंतामणराव देशमुख ने नेहरू के मुंह पर वित्तमंत्री पद का इस्तीफा फेंका था. ‘तुम्हारे मन में महाराष्ट्र के प्रति द्वेष है.’ ऐसा कहते हुए देशमुख संसद से बाहर निकल गए थे. उस क्षण चिंतामणराव देशमुख महाराष्ट्र के सरताज बन गए. छत्रपति शिवराय की ऊंचाई वाला नेता भी नहीं है और शिवराय से अधिक ऊंचाई की कोई प्रतिमा नहीं होगी, यह बात श्रीमान फडणवीस आप भी दृढ़ होकर बताओ! तो ही आप महाराष्ट्र के!”