मासिक शिवरात्रि आज

प्रत्येक माह कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि मनाई जाती है। इस शुभ दिन पर देवों के देव महादेव की पूजा-अर्चना की जाती है और सुख-सौभाग्य की प्राप्ति के लिए उपवास भी रखा जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से भोलेनाथ अपने भक्तों को सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। इस समय वैशाख माह चल रहा है। वैशाख मास की मासिक शिवरात्रि 26 अप्रैल, शुक्रवार को है। मासिक शिवरात्रि पर रात्रि में पूजा का विशेष महत्व होता है।

आइए जानते हैं मासिक शिवरात्रि डेट, पूजा-विधि, शुभ मुहूर्त…

मुहूर्त-

वैशाख, कृष्ण चतुर्दशी प्रारम्भ – 08:27 ए एम, अप्रैल 26

वैशाख, कृष्ण चतुर्दशी समाप्त – 04:49 ए एम, अप्रैल 27

पूजा का शुभ मुहूर्त- 11:57 पी एम से 12:40 ए एम, अप्रैल 27

पूजा-विधि:

इस पावन दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद साफ-स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें।

घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।

शिवलिंग का गंगा जल, दूध, आदि से अभिषेक करें।

भगवान शिव के साथ ही माता पार्वती की पूजा अर्चना भी करें।

भगवान गणेश की पूजा अवश्य करें। किसी भी शुभ कार्य से पहलेभगवान गणेश की पूजा-अर्चना की जाती है।

भोलेनाथ का अधिक से अधिक ध्यान करें।

ऊॅं नम: शिवाय मंत्र का जप करें।

भगवान भोलेनाथ को भोग लगाएं।

पूजा सामग्री लिस्ट : मासिक शिवरात्रि की पूजा के लिए पंचामृत के लिए दूध, दही, शहद, घी और गंगाजल,फल,फूल, मिठाई कच्चा दूध, चंदन, धूप-दीप, भांग,धतूरा, बिल्वपत्र, शिव परिवार की प्रतिमा या तस्वीर, पंचमेवा, इत्र, कपूर ,रोली,मौली, जनेऊ समेत पूजा की सभी सामग्री एकत्रित कर लें।

शिवजी को प्रसन्न करने के लिए शिवलिंग पर अर्पित करें ये चीजें- जल, दूध, दही, शहद, इत्र, घी, चंदन।

भगवान शिव की ये आरती जरूर करें-

ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।

ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥

ॐ जय शिव ओंकारा॥

एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।

हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥

ॐ जय शिव ओंकारा॥

दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।

त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥

ॐ जय शिव ओंकारा॥

दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।

त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥

ॐ जय शिव ओंकारा॥

अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी।

त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥

ॐ जय शिव ओंकारा॥

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।

सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥

ॐ जय शिव ओंकारा॥

कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूलधारी।

सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी॥

ॐ जय शिव ओंकारा॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।

मधु-कैटभ दो‌उ मारे, सुर भयहीन करे॥

ॐ जय शिव ओंकारा॥

लक्ष्मी व सावित्री पार्वती संगा।

पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा॥

ॐ जय शिव ओंकारा॥

पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा।

भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा॥

ॐ जय शिव ओंकारा॥

जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला।

शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥

ॐ जय शिव ओंकारा॥

काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।

नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥

ॐ जय शिव ओंकारा॥

त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे।

कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥

ॐ जय शिव ओंकारा॥

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