क्या है बाइलेटरल निमोनिया? जिससे हुआ पोप फ्रांसिस का निधन

Pope Francis Death: वेटिकन के कैमर्लेंगो कार्डिनल केविन फेरेल ने बताया है कि पोप फ्रांसिस ने रोम के समय के हिसाब से सोमवार सुबह 7:35 बजे पोप फ्रांसिस ने सांस ली. वह 88 साल के थे और काफी लंबे समय से उनका इलाज चल रहा था. पोप फ्रांसिस  रोमन कैथोलिक चर्च के पहले लैटिन अमेरिकी हेड थे. वह गंभीर बीमारी बाइलेट्रल निमोनिया से जूझ रहे थे. आइए आपको बताते है कि बाइलेट्रल निमोनिया क्या है.

क्या है बाइलेट्रल निमोनिया

निमोनिया फेफड़ों का एक इंफेक्शन है, जिसमें एल्वियोली में पस और फ्लूइड भर जाता है. इससे सांस लेने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है. वहीं जब निमोनिया दोनों फेफड़ों में होता है, तो इसे बाइलेटरल निमोनिया कहा जाता है. इस स्थिति में दोनों फेफड़ों पर असर पड़ता है, तो सांस लेने में बहुत ज्यादा पेरशानी का सामना करना पड़ता है, क्योंकि दोनों ही फेफड़ों द्वारा पर्याप्त ऑक्सीजन खून में नहीं पहुंच पाता है.

निमोनिया से ज्यादा खतरनाक

बाइलेटरल निमोनिया, यानी दोनों फेफड़ों में निमोनिया होना, नॉर्मल निमोनिया से ज्यादा गंभीर और खतरनाक हो सकता है. ऐसा इसलिए क्योंकि यह दोनों ही फेफड़ों पर असर डालता है, जिससे शरीर को पूरी तरह से ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है. बाइलेटरल निमोनिया से सांस लेने में परेशानी होती है, फेफड़ों में पानी भरता है, थकान जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. खासकर वीक इम्युनिटी वाले लोगों, बुजुर्गों और छोटे बच्चों को बाइलेटरल निमोनिया का खतरा ज्यादा होता है.

क्या है इसके लक्षण

कफ खांसना
भीड़
सीने में दर्द
थकावट
बुखार और ठंड लगना
पसीना
धड़कने तेज होना
दस्त और उल्टी

इलाज

बाइलेटरल निमोनिया के इलाज निमोनिया के लेवल, टाइप और सीरियसनेस पर डिपेंड करता है. बैक्टीरियल निमोनिया के लिए एंटीबायोटिक्स, वायरल निमोनिया के लिए एंटीवायरल दवाएं, और सांस लेने में कठिनाई के लिए ऑक्सीजन थेरेपी का इस्तेमाल किया जा सकता है. कुछ केस में, पैशेंट को अस्पताल में भर्ती और वेंटिलेटर की जरूरत पड़ सकती है.

 

 

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