गौरतलब है कि दिल्ली विश्वविद्यालय के शैक्षणिक विभागों व कॉलेजों में पिछले दो साल से सहायक प्रोफेसरों की स्थायी नियुक्तियों की प्रक्रिया चल रही है। इस दौरान लगभग पांच हजार पदों पर स्थायी नियुक्तियां की गई हैं।
नियुक्तियों से पूर्व कॉलेज प्रशासन ने इन पदों को भरने से पहले स्क्रीनिंग और स्क्रूटनी की प्रक्रिया को अपनाया था। जो अभ्यर्थी यूजीसी नियमानुसार पूर्ण योग्यता रखते थे, उन्हें ही साक्षात्कार में बुलाया गया। चयन समिति में सभी वर्गों के विषय विशेषज्ञों के अलावा एससी, एसटी, ओबीसी कोटे के ऑब्जर्वर को शामिल किया गया था।
कॉलेजों से कहा गया है कि जिन विषयों में सहायक प्रोफेसरों की स्थायी नियुक्तियों के समय एससी, एसटी, ओबीसी, अनरिजर्व, ईडब्ल्यूएस और पीडब्ल्यूडी श्रेणी के अभ्यर्थियों को चयन समिति द्वारा नॉट फाउंड सूटेबल किया गया है, उसका सम्पूर्ण ब्यौरा दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन को दिया जाए।
दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक संगठन फोरम ऑफ एकेडेमिक्स फॉर सोशल जस्टिस के मुताबिक उन्होंने इस संबंध में विश्वविद्यालय प्रशासन को एक शिकायत दी थी। कुलपति को दी गई शिकायत में कहा गया है कि दिल्ली विश्वविद्यालय में चल रही सहायक प्रोफेसर के पदों पर स्थायी नियुक्तियों में एससी, एसटी और ओबीसी कोटे की सीटों के लिए बड़ी संख्या में नॉट फाउंड सूटेबल किया गया है।
कुलपति ने तुरंत संज्ञान लेते हुए कॉलेजों से इस संदर्भ में जानकारी मांगी है। फोरम के अध्यक्ष और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हंसराज सुमन का कहना है कि कुलपति द्वारा तुरंत संज्ञान लेते हुए कॉलेजों को सर्कुलर जारी कर इस विषय पर पूर्ण जानकारी मांगी गई है। कॉलेजों से पूछा गया है कि उन्होंने पिछले पांच वर्षों में सहायक प्रोफेसर के कितने पदों को भरा।
उन्होंने बताया कि दिल्ली विश्वविद्यालय के 12 कॉलेज दिल्ली सरकार के अंतर्गत आते हैं जो पूरी तरह से वित्त पोषित हैं। इन कॉलेजों में पिछले 10 साल से शैक्षिक और गैर-शैक्षणिक पदों पर नियुक्तियां नहीं हुई हैं। उन्होंने बताया है कि इन कॉलेजों में लगभग 600 शिक्षकों की स्थायी नियुक्ति की जानी है। वहीं दिल्ली विश्वविद्यालय के शेष कॉलेजों में हुई नियुक्तियों का ब्यौरा मांगा गया है।
डॉ. सुमन ने बताया कि डीयू में कॉलेजों की कुल संख्या 79 है, इनमें छह कॉलेज अपने को अल्पसंख्यक मानते हैं। वे केंद्र सरकार की आरक्षण नीति को स्वीकार नहीं करते। डॉ. सुमन का कहना है कि विभिन्न विभागों में सहायक प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर के पदों पर लगभग 50 फीसदी आरक्षित अभ्यर्थियों को नॉट फाउंड सूटेबल किया गया है।