गीता और नाट्यशास्त्र यूनेस्को ‘मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर’ में शामिल, पीएम मोदी बोले, ‘हर भारतीय के लिए गर्व का क्षण’

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीमद्भगवद्गीता और भरत मुनि के नाट्यशास्त्र को यूनेस्को के मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल किए जाने पर खुशी जाहिर की। उन्होंने इसे प्रत्‍येक भारतीय के लिए गर्व का क्षण बताया।

दरअसल, शुक्रवार को केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स के जरिए जानकारी दी कि गीता और नाट्यशास्त्र को यूनेस्को के मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल किया गया है।

केंद्रीय मंत्री शेखावत के इसी पोस्ट का जवाब देते हुए पीएम मोदी ने लिखा, समूचे विश्‍व में प्रत्‍येक भारतीय के लिए गर्व का क्षण। गीता और नाट्यशास्त्र को यूनेस्को के मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल किया जाना हमारे शाश्वत ज्ञान और समृद्ध संस्कृति को वैश्विक मान्यता प्रदान किया जाना है। गीता और नाट्यशास्त्र ने सदियों से सभ्यता और चेतना का पोषण किया है। उनकी अंतर्दृष्टि दुनिया को प्रेरित करना जारी रखे हुए है।

इससे पहले केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, भारत की सभ्यतागत विरासत के लिए एक ऐतिहासिक क्षण। श्रीमद्भगवद्गीता और भरत मुनि का नाट्यशास्त्र अब यूनेस्को के मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल किया गया हैं। यह वैश्विक सम्मान भारत की शाश्वत बुद्धिमत्ता और कलात्मक प्रतिभा का जश्न मनाता है।

उन्होंने आगे लिखा, ये कालातीत रचनाएं साहित्यिक खजाने से कहीं अधिक हैं, ये दार्शनिक और सौंदर्यपरक आधार हैं, जिन्होंने भारत के विश्व-दृष्टिकोण और हमारे सोचने, महसूस करने, जीने और अभिव्यक्ति के तरीके को आकार दिया है। इसके साथ ही, अब इस अंतर्राष्ट्रीय रजिस्टर में हमारे देश के 14 अभिलेख शामिल हो गए हैं।

मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर यूनेस्को की तरफ से शुरू किया गया एक प्रोग्राम है, जिसका मकसद विश्वभर के महत्वपूर्ण दस्तावेजी विरासत को संरक्षित करना है। इसके साथ ही इसे आसानी से लोगों तक पहुंचाना होता है। इस कार्यक्रम की शुरुआत 1992 में हुई थी।

सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहर के सम्मान और संरक्षण के लिए हर साल 18 अप्रैल को विश्व धरोहर दिवस मनाया जाता है। विश्व धरोहर सम्मेलन 1972 में यूनेस्को द्वारा किया गया एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है। विश्व धरोहर सम्मेलन को दुनिया भर के देशों ने महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और प्राकृतिक स्थलों की सुरक्षा के लिए अपनाया था।

 

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