रेखा गुप्ता: परिश्रम, संघर्ष और चुनौतियों की अनकही कहानी

प्रो. महेश चंद गुप्ता: दिल्ली मेंं सीएम के पद पर रेखा गुप्ता के आसीन होने के साथ ही राजनीति में एक नया अध्याय जुड़ गया है। यहां तक का उनका यह सफर आसान नहीं रहा है बल्कि यह उनके संघर्षों, चुनौतियों और अथक परिश्रम की अनकही कहानी है। उन्होंने तीन दशकों तक संगठन और जनसेवा में सक्रिय रहते हुए बिना किसी राजनीतिक विरासत के जिस प्रकार अपनी अलग पहचान बनाई है, वह अनूठा उदाहरण है। भाजपा द्वारा उन्हें सीएम की कुर्सी सौंपना उस विचारधारा की पुष्टि है जो मेहनतकश कार्यकर्ताओं को शीर्ष तक पहुंचने का अवसर देती है। रेखा की यह ताजपोशी न केवल भाजपा के संगठनात्मक दृष्टिकोण को दर्शाती है बल्कि दिल्ली की राजनीति में नए समीकरण भी स्थापित कर रही है।

मैं रेखा को नब्बे के दशक से जानता हूं, जब वे दिल्ली विश्वविद्यालय के दौलत राम कॉलेज में पढ़ाई कर रही थीं। डीयू के प्रोफेसर के रूप में भले ही मैंने उनके कॉलेज में नहीं पढ़ाया लेकिन मुझे याद है कैसे उन्होंने वहां एबीवीपी की सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में अपनी खास पहचान बनाई। डीयू में तभी से बहुत से लोग उनमें भविष्य के एक प्रभावशाली नेता की झलक देखने लगे थे। उन्होंने कॉलेज से अपनी राजनीतिक यात्रा को शुरू कर तीन दशकों तक अनवरत जारी रखते हुए शीर्ष तक पहुंचाया है। बिना किसी राजनीतिक विरासत या गॉडफादर के रेखा का अपनी मेहनत, निष्ठा और समर्पण के बल पर दिल्ली की सत्ता के सर्वोच्च पद तक का सफर वाकई प्रेरणादायी है।

2007 में जब वे उत्तरी पीतमपुरा (वार्ड नंबर 54) से दिल्ली नगर निगम की पार्षद चुनी गईं, तब हमें उन्हें नजदीक से जानने का अवसर मिला। मैं स्वयं इसी वार्ड का निवासी हूं और एक मतदाता के रूप में मैंने देखा कि रेखा ने हमेशा अपने वादों को प्राथमिकता दी है। 2012 में दूसरी बार निगम पार्षद बनने के बाद भी उन्होंने अपने दायित्वों का ईमानदारी से निर्वहन किया। उनके कार्यकाल में विकास कार्यों को गति मिली और जनता से किया गया हर वादा पूरा हुआ। इसके बाद वे तीसरी बार निगम पार्षद चुनी गईं, हालांकि वार्ड बदल गया लेकिन हमारे वार्ड मेंं अपने पुराने क्षेत्रवासियों से उनका जुड़ाव बरकरार रहा। वे सदैव लोगों की समस्याओं के समाधान में अग्रणी रहीं। सबके सुख-दु:ख में वह बराबर शामिल होती आ रही हैं।

सामाजिक संगठनों में उनकी भूमिका भी अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। संयोगवश मैं स्वयं उन कई संस्थाओं से जुड़ा हूं, जहां रेखा जी की मुख्य भूमिका है। इन संस्थाओं की बैठकों और अन्य आयोजनों मेंं उनकी नेतृत्व क्षमता को नजदीक से देखने का अवसर मिला है। वे बच्चों की शिक्षा के लिए काम करने वाले आस फाउंडेशन की संस्थापक अध्यक्ष हैं, श्री अग्रसेन इंटरनेशनल हॉस्पिटल, रोहिणी की महिला समिति की चेयरपर्सन हैं और महाराजा अग्रसेन हॉस्पिटल, पंजाबी बाग की ट्रस्टी भी हैं। इसके अतिरिक्त, वे अंतरराष्ट्रीय वैश्य सम्मेलन की महिला चेयरपर्सन सहित कई धार्मिक और सामाजिक संगठनों की संरक्षक भी हैं। उनके कुशल नेतृत्व और सामाजिक सरोकारों से जुड़ाव ने उनकी लोकप्रियता को निरंतर बढ़ाया है।

उनकी राजनीतिक यात्रा 1994 में कॉलेज में छात्र संघ की सेक्रेटरी के रूप में आरंभ हुई। इसके बाद 1995 में वे दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ की सेक्रेटरी और फिर 1996 में अध्यक्ष बनीं। 2002 में भाजयुमो की प्रदेश मंत्री, 2004 में भाजयुमो की राष्ट्रीय सचिव, 2007 में उत्तरी पीतमपुरा (वार्ड नं. 54) से निगम पार्षद बनने के बाद उन्होंने कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां संभालीं। 2012 में दूसरी बार पार्षद बनने के साथ ही वे दिल्ली नगर निगम की शिक्षा समिति की अध्यक्ष बनीं। 2013 में स्थायी समिति की उपाध्यक्ष और भाजपा राष्ट्रीय महिला मोर्चा की मंत्री के रूप में अपनी सेवाएं दीं। 2014 में दिल्ली प्रदेश भाजपा की महामंत्री बनीं और 2015 व 2020 में शालीमार बाग विधानसभा चुनाव लड़ा। 2021 में वे भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनीं और 2022 में फिर से शालीमार बाग से निगम पार्षद चुनी गईं। अब, 2025 में मुख्यमंत्री पद तक पहुंचना एक ऐसी उपलब्धि है, जिसे बिरले लोग ही हासिल कर पाते हैं।

दिल्ली की राजनीति में रेखा को सीएम बनाने का बीजेपी का निर्णय कई मायनों में महत्वपूर्ण है। अरविंद केजरीवाल वैश्य समाज से आते हैं और भाजपा ने इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए रेखा गुप्ता को मुख्यमंत्री बनाया है ताकि वैश्य समुदाय को एक स्पष्ट संदेश दिया जा सके। इसके अलावा आम आदमी पार्टी की आतिशी के बाद भाजपा ने भी महिला नेतृत्व को प्राथमिकता दी है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि पार्टी महिला सशक्तिकरण के प्रति गंभीर है।

भाजपा ने दिल्ली में महिलाओं के लिए कई घोषणाएं की हैं और अब मुख्यमंत्री पद पर एक महिला के होने से उन योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन की प्रबल उम्मीद है। इससे पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल भी बढ़ेगा और संगठन को मजबूती मिलेगी। दिल्ली की जनता, विशेषकर महिलाएं, इस फैसले से उत्साहित हैं। यह दिल्ली की प्रगति की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है और लोग उम्मीद कर रहे हैं कि रेखा गुप्ता के नेतृत्व में राजधानी एक नई ऊंचाई पर पहुंचेगी।

रेखा गुप्ता का सीएम पद तक पहुंचना सिर्फ एक राजनीतिक सफलता नहीं है, बल्कि यह उस विचारधारा की जीत भी है, जो व्यक्ति की निष्ठा और परिश्रम को सर्वोपरि मानती है। यह निर्णय न केवल मोदी युग की भाजपा के कार्यकर्ताओं के लिए प्रेरणा है, बल्कि उन लोगों के लिए भी एक संदेश है, जो यह मानते हैं कि राजनीति केवल वंशवाद तक सीमित है। मोदी 48 साल की उम्र में गुजरात के सीएम बन गए थे। इसके बाद उन्होंने अपनी मेहनत ने गुजरात मॉडल दिया और राष्ट्रीय नेता के रूप में उभरे। मोदी के पीएम बनने के बाद से भाजपा बड़े एवं चर्चित चेहरों के बजाय नए चेहरों पर ही दांव लगाती आ रही है। यह मोदी के काम करने की खास रणनीति का हिस्सा है। हरियाणा में मनोहरलाल खट्टर, नायब सिंह सैनी, महाराष्ट्र में देवेन्द्र फडऩवीस, मध्यप्रदेश में मोहन यादव, राजस्थान में भजनलाल शर्मा के बाद ताजा उदाहरण रेखा का है। भाजपा के सभी नए मुख्यमंत्री मोहन यादव, भजन लाल शर्मा, योगी आदित्यनाथ, देवेंद्र फडणवीस, रेखा गुप्ता सभी औसतन 55 साल के हैं और इनका आगामी 20-25 वर्ष तक पार्टी को अपने-अपने राज्य में नेतृत्व देना तय है। एक जमाने मेंं भाजपा को उच्च जातियों एवं वैश्यों की पार्टी कहा जाता था पर बाद में वैश्यों को अपेक्षित स्थान नहीं मिल पाया पर अब रेखा गुप्ता को सीएम बनाने से वैश्य समाज भाजपा के साथ आ खड़ा हुआ है। आने वाले समय में रेखा दिल्ली की राजनीति को किस दिशा में जाएगी, यह तो भविष्य के गर्भ में है लेकिन उनका सीएम बनना महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है। जैसा कि दिल्ली यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने कहा है रेखा डीयू के विद्यार्थियों के लिए भी प्रेरणास्रोत बनेंगी।

जितना मेरा रेखा से संपर्क है, उस नाते मैं जानता हूं कि वह कितनी बेहतर इंसान हैं। अगर कोई उनसे एक बार भी मिल ले तो बता देगा कि वह कितनी सकारात्मक है। उनका हमेशा मुस्कुराता चेहरा और मदद के लिए सदा तैयार रहने की भावना के कारण शालीमार बाग, पीतमपुरा में हर कोई उन्हें पसंद करता है। मुझे याद है, पिछले साल मैं उनके घर गया तो उन्होंने मुझसे 8 सितंबर को शालीमार बाग और पीतमपुरा क्षेत्र के लिए शिक्षकों और प्रोफेसरों के लिए सम्मान समारोह आयोजित करने के बारे मेंं विचार विमर्श किया। इसके बाद उन्होंने करीब दो हजार शिक्षा विदें का अभिनंदन किया। उनका विनम्र स्वभाव सबको मित्र बनाता है, उनका कोई दुश्मन नहीं है। मुझे यकीन था चुनाव मेंं वह सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करेंगी। पता नहीं किस भावना से प्रेरित हो कर मैंने चुनाव प्रचार के दौरान पीतमपुरा के श्री जगदीश मंदिर में मुलाकात होने पर उनसे कह भी दिया कि आप सीएम बनेंगी और हुआ भी यही। अब तो रेखा वास्तव में दिल्ली को विकसित भारत की विकसित राजधानी बनाने के लिए उत्प्रेरक बन गई हैं। उनके नेतृत्व में देश की राजधानी किस दिशा में आगे बढ़ेगी, यह सबके लिए उत्सुकता का विषय है।

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