इस घोटाले की जांच सीबीआई कर रही थी। जांच एजेंसी ने दावा किया था कि लगभग 24 संदिग्ध ट्रांजेक्शन के जरिए मुंबई की मुख्य शाखा के एसबीआई कैपिटल के अकाउंट से शेयर खरीदने के लिए पैसे निकाले गए। लेकिन न तो सिक्योरिटी और न ही बैंक रसीद को अकाउंट में क्रेडिट किया गया। सीबीआई ने आरोप लगाया कि एसबीआई की मुख्य शाखा में कई गंभीर अनियमितताएं करते हुए स्वर्गीय हर्षद मेहता के खाते में अनधिकृत धन जमा कराया गया।
आरोपी मुंबई की शाखा और उसके अधीनस्थ एसबीआई कैपिटल में अधिकारी और अश्विनी मेहता थे। अश्विनी हर्षद के कानूनी वकील थे। मुख्य आरोपी हर्षद मेहता के खिलाफ मामला 2001 में उसकी मौत के बाद खत्म कर दिया गया था। अदालत ने एसबीआई के सिक्योरिटी डिवीजन के इंचार्ज आर सीताराम, दूसरे अधिकारी भूषण राउत, सी रवि कुमार, एस सुरेश बाबू, पी मुरलीधरन, अशोक अग्रवाल, जनार्धन बंदोपाध्याय, श्याम सुंदर गुप्ता और ब्रोकर मेहता को बरी कर दिया गया है।
सीबीआई ने दावा किया था कि यदि सभी अधिकारियों ने एक-दूसरे के साथ मिलकर काम नहीं किया होता तो फंड्स का डायवर्जन नहीं हो पाता। हालांकि अदालत ने यह बात मानी कि अधिकारियों के खिलाफ सिक्योरिटी धारा के तहत मामला साबित नहीं हुआ है क्योंकि फंड्स बैंक की मुख्य शाखा से डायवर्ट हुए थे। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष सीतारमण के खिलाफ संदेह के अलावा मामला साबित करने में असफल रहा है।