वैष्णव दास महाराज ने भगदड़ को लेकर कहा, यह आकस्मिक घटना है, कोई योजनाबद्ध नहीं है। ऐसा क्यों हुआ, ये शासन-प्रशासन का विषय है। मेरे हिसाब से अध्यात्म जगत की मर्यादा को तोड़ना प्रकृति के विरुद्ध काम करना है। इसलिए यह प्रकृति की आपदा है।
उन्होंने कहा, स्नान करने के लिए आगे महानिर्वाणी चलते हैं, लेकिन उनके जुलूस को रोक दिया गया। उनके पीछे के लोगों को भी रोक दिया गया। ऐसी घटना के बाद हम कैसे स्नान कर सकते हैं। एक भाई नहीं गया तो दूसरे का जाना स्वभाविक नहीं है। इसलिए हम लोगों ने विचार करके स्नान नहीं करने का निर्णय लिया। स्नान करने का समय चला गया है और अब आज हम स्नान करने नहीं जाएंगे। अभी अव्यवस्था है और जब व्यवस्था बनेगी तो स्नान करेंगे।
घटना को लेकर उन्होंने कहा, महाकुंभ की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि आए दिन वीआईपी लोगों का तांता लगा रहता है, हालांकि श्रद्धालु वो भी हैं। जब प्रशासन ने निर्णय किया था कि किस मार्ग पर वीआईपी चलेंगे और किस मार्ग पर आम श्रद्धालु, ऐसे में यह व्यवस्था उनकी खराब रही होगी। वहीं, सरकार ने कुंभ का प्रचार-प्रसार इतना किया, जिसके कारण जनता अंधविश्वास में आ गई। हम 80 के दशक से कुंभ स्नान करते आ रहे हैं। पहले के लोग अनुशासित थे, लेकिन आज के समय में मां-बाप अनुशासित नहीं हैं, तो बच्चे कैसे अनुशासित होंगे। प्रकृति के साथ जो विडंबना हुई, उसी का यह परिणाम हुआ है।
उन्होंने कहा, जैसे वीआईपी के लिए व्यवस्था की गई, वैसे ही जनता के लिए अलग घाट की व्यवस्था करनी चाहिए।