पत्र लिखने वालों में 19 सेवानिवृत्त न्यायाधीश, 34 पूर्व राजदूत सहित 139 सेवानिवृत्त नौकरशाह, 300 कुलपति, सशस्त्र बलों के 192 सेवानिवृत्त अधिकारी और समाज सेवी संगठनों के 35 व्यक्ति शामिल हैं।
इन लोगों का कहना है कि यह बांग्लादेश की जनता से सीधे संवाद करने का प्रयास है जो बांग्लादेश और भारत दोनों के लोगों को शांति, मित्रता और समझ की उस राह पर चलने में मदद करेगा, जिसने बांग्लादेश के निर्माण के बाद से पिछले 50 वर्षों से अधिक समय तक हमें जोड़े रखा है।
दिल्ली स्थित बांग्लादेशी उच्चायोग को सोमवार सुबह यह पत्र सौंपा गया।
बांग्लादेश की जनता को पत्र लिखने वालों में बांग्लादेश में उच्चायुक्त रही आईएफएस वीना सिकरी भी शामिल हैं। सिकरी के मुताबिक पत्र में लिखा गया है, भारत के लोग बांग्लादेश में बिगड़ती स्थिति को चिंता और भय के साथ देख रहे हैं। जुलाई और अगस्त 2024 की घटनाओं को शुरू में बांग्लादेश भर में छात्रों द्वारा किए गए स्वत: स्फूर्त आंदोलन के रूप में वर्णित किया गया था। हालांकि, 24 सितंबर 2024 को बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार प्रोफेसर मोहम्मद यूनुस ने न्यूयॉर्क में क्लिंटन ग्लोबल इनिशिएटिव के एक कार्यक्रम में सार्वजनिक रूप से कहा कि यह शासन परिवर्तन अभियान स्वतः स्फूर्त नहीं था, बल्कि इसे सावधानीपूर्वक डिजाइन किया गया था और इसे पहले से योजनाबद्ध तरीके से लागू किया गया। इस अभियान का नेतृत्व अंतरिम शासन के एक सलाहकार ने किया, जो प्रोफेसर मोहम्मद यूनुस के विशेष सहायक भी हैं।
पत्र में कहा गया है, बांग्लादेश में अराजकता का माहौल व्याप्त है, जहां भीड़तंत्र निर्णय लेने का पसंदीदा तरीका बन गया है। देश भर में सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में, न्यायपालिका, कार्यपालिका (पुलिस सहित), शिक्षा और मीडिया तक में, बलपूर्वक इस्तीफे दिलवाने का पैटर्न अपनाया गया है। पुलिस बल अभी भी पूरी तरह से ड्यूटी पर वापस नहीं आया है और, सेना को मजिस्ट्रेटी और पुलिस शक्तियां दिए जाने के बावजूद सामान्य स्थिति अब तक बहाल नहीं हुई है।
पत्र में कहा गया है कि अराजक स्थिति का सबसे बुरा प्रभाव बांग्लादेश के 1.5 करोड़ अल्पसंख्यक लोगों पर पड़ रहा है जिनमें हिंदू, बौद्ध, ईसाई के साथ ही शिया, अहमदिया और अन्य शामिल हैं। पिछले चार महीनों से, कट्टरपंथी इस्लामी समूहों ने लगभग हर जिले में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हिंसक आतंकवादी हमले किए हैं। इनमें पूजा स्थलों को अपवित्र करना और तोड़फोड़, अपहरण और बलात्कार, पीट-पीटकर हत्या, गैर-न्यायिक हत्याएं, जबरन धर्मांतरण के साथ-साथ घरों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों की अंधाधुंध तबाही शामिल हैं। यहां तक कि जहां स्पष्ट सबूत मौजूद हैं, वहां भी दोषियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है। कट्टरपंथी ताकतों का मुख्य उद्देश्य अल्पसंख्यक धार्मिक समुदायों को आतंकित करना और उन्हें बांग्लादेश छोड़ने के लिए मजबूर करना प्रतीत होता है।
पत्र में कहा गया है कि बांग्लादेश के धार्मिक अल्पसंख्यकों की ओर से आठ-सूत्री मांगें रखी गई हैं। इन मांगों में बांग्लादेश में एक अल्पसंख्यक संरक्षण कानून का निर्माण, अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए एक अलग मंत्रालय का गठन, अल्पसंख्यकों पर अत्याचार के मामलों की सुनवाई के लिए एक विशेष न्यायाधिकरण की स्थापना और पीड़ितों के लिए मुआवजा और पुनर्वास सुनिश्चित करना आदि शामिल हैं।
इन मांगों का प्रशासन ने कोई जवाब नहीं दिया। इसके विपरीत, चिन्मय कृष्ण दास पर देशद्रोह के आरोप लगाकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें बिना सुनवाई जमानत देने से इनकार कर दिया गया।
भारतीय हस्तियों ने कहा है कि बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों से भारत के लोग काफी चिंतित हैं। इसके मानवीय पहलुओं के अलावा, यह आशंका है कि बांग्लादेश की अस्थिरता सीमाओं के पार फैल सकती है, जिससे भारत में सांप्रदायिक सद्भाव और कानून-व्यवस्था पर गंभीर खतरा उत्पन्न हो सकता है।
पत्र में याद दिलाया गया है कि बांग्लादेश और भारत के बीच गहरे सांस्कृतिक संबंध हैं, जो हमारे साझा बंगाली भाषा, सांस्कृतिक और सभ्यतागत विरासत पर आधारित हैं। साल 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान, पाकिस्तान की सेना द्वारा किए गए भयावह जनसंहार, महिलाओं और बच्चों सहित नागरिकों के प्रति बर्बरता से भारत के लोग बहुत आहत हुए। भारत ने उस समय बांग्लादेश की मुक्ति के लिए हर संभव समर्थन दिया। भारत ने एक करोड़ से अधिक शरणार्थियों को आश्रय दिया और भारतीय सैनिकों ने बांग्लादेश के लोगों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ाई लड़ी। हजारों भारतीय सैनिकों ने अपनी जान न्योछावर कर दी ताकि बांग्लादेश को स्वतंत्रता प्राप्त हो सके।