ग्वालियर। मध्य प्रदेश के ग्वालियर में सुर सम्राट तानतेन की याद में आयोजित 100वें तानसेन संगीत समारोह 2024 के अंतर्गत हजीरा स्थित तानसेन समाधि के समीप महेश्वर के ऐतिहासिक किले की थीम पर बने समारोह के भव्य मंच पर आज सांध्य बेला में तानसेन अलंकरण समारोह होगा। समारोह में देश के ख्यातिनाम तबला वादक पद्मश्री पं. स्वपन चौधरी (कोलकाता) को वर्ष 2023 के तानसेन सम्मान से विभूषित किया जाएगा। इसके साथ ही वर्ष 2023 के राजा मानसिंह तोमर सम्मान से सानंद न्यास इंदौर को अलंकृत किया जाएगा।संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार के साथ-साथ अमेरिकन एकेडमी आफ आर्टिस्ट अवार्ड से सम्मानित कोलकाता के तबला वादक पंडित स्वपन चौधरी का नाता लखनऊ घराने से है। हाल ही में उन्हें कोलकाता में रवींद्र भारती विश्वविद्यालय से डाक्टरेट की उपाधि भी मिली है। साल 2016 और फिर 2019 में उन्हें कैलिफोर्निया पारंपरिक कला के लिए मास्टर/अपरेंटिस पुरस्कार से सम्मानित किया गया। स्वपन ने पांच साल की उम्र में तबला सीखना शुरू कर दिया था। उन्होंने अपनी शैली को अपने गुरु कोलकाता के दिवंगत पंडित संतोष कृष्ण विश्वास, जो लखनऊ घराने के एक प्रख्यात कलाकार थे, से प्राप्त गहन प्रशिक्षण पर आधारित किया है। संगीत में शैक्षणिक डिग्री के अलावा, स्वप्नजी ने जादवपुर विश्वविद्यालय, कोलकाता से अर्थशास्त्र में मास्टर डिग्री भी प्राप्त की है।सानंद न्यास इंदौर को राजा मानसिंह तोमर अलंकरणमराठी संस्कृति, साहित्य और कला का समर्पित सानंद न्यास को तानसेन शताब्दी समारोह में 2023 के लिए राजा मानसिंह तोमर अलंकरण से सम्मानित किया जाएगा। पेशे से इंजीनियर सुधाकर काले ने इसकी शुरुआत 1993 में की। अभिनय, नाट्य सहित तमाम तरह की सांस्कृतिक व साहित्यिक गतिविधियों को एक सशक्त मंच प्रदान करने वाली संस्था सानंद न्यास को प्रतिष्ठित बनाने के लिए सुधाकर काले ने नगर के गणमान्य और प्रतिष्ठित लोगों को इससे जोड़ा। फिर वे मुंबई गए और वहां मराठी नाटकों के वरिष्ठ कलाकारों से अनुरोध किया कि इंदौर आकर प्रस्तुतियां दें। एक नवंबर 1994 के दिन रवीन्द्र नाट्य गृह में प्रथम नाटक का मंचन हुआ। यह इतना सफल रहा कि बिना प्रचार-प्रसार के न्यास के 90 प्रतिशत सदस्यों ने उपस्थिति दर्ज कराई। सानंद न्यास ने 13 अप्रैल 2006 को भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान राहुल द्रविड़ को आमंत्रित कर सम्मानित किया। तब संस्था राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आई। इस पर शोध के लिए बिरला इंस्टीट्यूट की टीम आई। वर्तमान में यह 4500 सदस्यों के साथ सक्रिय है।