राजधानी भोपाल में यूनियन कार्बाइड संयंत्र से दो-तीन दिसंबर 1984 की रात को जहरीली गैस का रिसाव हुआ था। इस हादसे में हजारों लोगों की मौत हुई थी और लाखों लोग इससे प्रभावित हुए थे। अभी भी हजारों लोगों के अलावा जन्म लेने वाले कई बच्चे इस जहरीली गैस के दुष्प्रभाव से प्रभावित हैं। अपने हक की लड़ाई लड़ने वाले थके नहीं हैं और संघर्ष को जारी रखने में पीछे भी नहीं हैं।
मंगलवार को हादसे की 40वीं बरसी पर प्रभावितों की लड़ाई लड़ने वाले चार संगठनों की अगुवाई में लोग सड़कों पर उतरें। इस दौरान रैली निकाली गई। पीड़ितों के लिए संघर्ष करने वाले संगठनों को उम्मीद है कि अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप सत्ता संभालने के बाद न्याय दिलाएंगे।
भोपाल गैस त्रादसी से पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ की अध्यक्ष रशीदा बी ने कहा, रोनाल्ड रीगन से लेकर बराक ओबामा तक के बाद के अमेरिकी राष्ट्रपतियों ने यूनियन कार्बाइड और डाउ केमिकल को भारत में अभियोजन से सक्रिय रूप से बचाया है। हम चाहते हैं कि ट्रंप अमेरिका को फिर से महान बनाने के अपने प्रयास में भोपाल में अन्याय के लंबे इतिहास को समाप्त करें। हमें उम्मीद है कि वह यूनियन कार्बाइड और डाउ केमिकल के खिलाफ कार्रवाई करेंगे।
भोपाल गैस त्रादसी निराश्रित पेंशनभोगी संघर्ष मोर्चा के बालकृष्ण नामदेव ने कहा, 2008 में, मनमोहन सिंह सरकार ने पीड़ितों के दीर्घकालिक चिकित्सा, आर्थिक और सामाजिक पुनर्वास के लिए भोपाल में चिकित्सा आयोग की स्थापना करना स्वीकार किया। तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के विरोध के कारण ही भोपाल में मेडिकल कमीशन का गठन नहीं हो सका था। आज, सभी वैज्ञानिक अध्ययन 5 लाख जीवित बचे लोगों में चल रही बीमारियों और निरंतर मौतों और उनके बच्चों पर स्वास्थ्य प्रभाव की ओर इशारा कर रहे हैं।
ग्रुप फॉर इंफॉर्मेशन एंड एक्शन की रचना ढींगरा ने कहा, भोपाल के भूजल जिसे डाउ केमिकल द्वारा साफ किया जाना चाहिए, वह लगातार बढ़ रहा है और रसायन 3 किलोमीटर दूर चला गया है। डाउ केमिकल यूनियन कार्बाइड की संपत्तियों को आईओसीएल, गेल और जीएसीएल जैसे भारतीय सार्वजनिक उपक्रमों को बेच रहा है और पिछले दो वर्षों से दावा कर रहा है कि आपदा पर आपराधिक मामले में अमेरिकी निगम भारतीय अदालतों के प्रति जवाबदेह नहीं हैं।
महिला पुरुष संघर्ष मोर्चा के नवाब खान ने भोपाल हादसे के पीड़ितों के साथ हो रहे अन्याय पर रोष जाहिर किया है और कहा कि यदि भोपाल में किसी महामारी के कारण यह हादसा हुआ होता, तो विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसी अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ने राहत प्रदान करने के लिए विशेष स्वास्थ्य देखभाल और दीर्घकालिक अनुसंधान केंद्र स्थापित किए होते और 40 वर्षों के बाद की तस्वीर बहुत अलग होती। लेकिन, यह स्पष्ट है कि अंतर्राष्ट्रीय राहत एजेंसियां भी कॉरपोरेट अपराध के पीड़ितों के साथ निगमों और सरकारों की तरह ही व्यवहार करती हैं।