मध्य प्रदेश में भाजपा संगठन को नेताओं के प्रभाव से बचाने की कवायद तेज

भोपाल । मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी संगठन को बड़े नेताओं के प्रभाव से बचाने की कोशिश तेज हो गई है। राज्य में चल रही संगठन की चुनाव प्रक्रिया में पार्टी की कोशिश है कि जमीनी कार्यकर्ताओं को बड़ी जिम्मेदारी सौंपी जाए और सांसदों-विधायकों से लेकर अन्य प्रभावशाली नेताओं के कहने पर नियुक्तियां न की जाएं।

राज्य के संगठन चुनाव के लिए बूथ अध्यक्ष सहित समितियाें के लगभग 90 प्रतिशत स्थानों पर चुनाव हो चुके हैं, महज 10 प्रतिशत स्थान पर चुनाव होना शेष है। राज्य में 65 हजार से ज्यादा बूथ हैं और उनमें से साढ़े 55 हजार से ज्यादा स्थानों पर चुनाव प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। जिन स्थानों पर चुनाव शेष है, वहां पार्टी जल्द चुनाव कराने की तैयारी में है। एक से 15 दिसंबर के बीच मंडल अध्यक्ष और 16 से 31 दिसंबर के बीच जिला अध्यक्षों के चुनाव कराए जाने की तैयारी है।

पार्टी सूत्रों का कहना है कि वर्तमान में राज्य में लगभग 1100 मंडल हैं, जिनका पुनर्गठन किया जाएगा और इनमें 200 मंडलों का इजाफा होगा। इस तरह राज्य में कुल 1300 मंडल हो जाएंगे। इस बार पदाधिकार‍ियों की आयु सीमा में भी इजाफा किया गया है। अब मंडल अध्यक्ष 45 वर्ष की आयु तक और जिला अध्यक्ष 60 वर्ष की आयु तक बन सकेंगे।

पार्टी के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री शिव प्रकाश ने साफ कर दिया है कि नए जिला अध्यक्ष और मंडल अध्यक्ष आपसी सहमति से बनाए जाएंगे।इन नियुक्तियों में इस बात का ख्याल रखा जाएगा कि वह सीधे तौर पर सांसद और विधायक के विरोधी न हो और न ही इनके कहने पर नियुक्ति होगी। कुल मिलाकर पार्टी का जोर इस बात पर है कि नेताओं में आपसी टकराव की स्थिति न बने।

ज्ञात हो कि झारखंड और महाराष्ट्र के व‍िधानसभा चुनाव के कारण राज्य के संगठन चुनाव में कुछ विलंब हुआ है। अब संगठन चुनाव की प्रक्रिया में भी तेजी लाई जा रही है। पार्टी के भीतर विभिन्न पदों के लिए कई दावेदार हैं और उनमें संगठन चुनाव को लेकर उत्साह भी है।

पार्टी एक तरफ जहां संगठन में सक्षम और सक्रिय कार्यकर्ता को जिम्मेदारियां सौंपने के प्रयास में है, वहीं जमीनी गतिविधियों को बनाए रखने पर भी जोर है। लिहाजा संगठन के चुनाव में पैनी नजर रखी जा रही है। पार्टी के लिए संगठन चुनाव बड़ी चुनौती इसलिए भी है, क्योंकि वर्तमान में पार्टी का संगठन राज्य में काफी मजबूत है, देश के अन्य राज्यों के लिए नजीर है और लगातार चुनावों में जीत भी मिली है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राज्य में कई प्रभावशाली नेता हैंं, जो सीधे तौर पर गुट तो नहीं बनाए हैंं, मगर धड़ों में बटे हुए हैं। ऐसे में सर्वमान्य नेता का चयन आसान नहीं रहने वाला। कई नेता संगठन पर अपना प्रभाव जमाना चाहते हैंं, जो वर्तमान तक ऐसा नहीं कर पाए थे।

 

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