वाराणसी के मंदिरो में विधि-विधान से हुआ शस्त्र पूजन, बजरंग दल वालों ने की पूजा

क्या आप जानते हैं कि आयुध पूजा के दिन शस्त्रों की पूजा क्यों की जाती है. इस साल वाराणसी के मंदिरों में आयुध पूजा किस तरह की गयी आइए जानते हैं.

 विजय दशमी पूरे भारत में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. यह पर्व अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक है. इस दिन भगवान राम ने रावण का वध कर अधर्म पर धर्म की जीत हासिल की थी. वाराणसी में विजय दशमी के अवसर पर मंदिरों में शस्त्रों का पूजन करने की पुरानी परंपरा है. सनातन धर्म में शक्ति की उपासना का बहुत महत्व है और शक्ति का प्रतिनिधित्व करने वाले शस्त्रों का पूजन विजय दशमी के दिन विशेष रूप से किया जाता है. काशी के मंदिरों में शस्त्र पूजन के दौरान पूजा करने वाले सनातनी यह मानते हैं कि शस्त्र सिर्फ घर में रखने के लिए नहीं होते बल्कि उनकी पूजा भी करनी चाहिए.

बजरंग दल की परंपरा

वाराणसी के सुंदरपुर क्षेत्र में बजरंग दल के सदस्यों ने विजय दशमी के दिन पारंपरिक तरीके से शस्त्र पूजन किया. शस्त्रों को भगवान के सामने रखकर उनका विधिपूर्वक पूजन (Shastra Puja Kyo Karte Hai) किया गया. इस दौरान धर्म की रक्षा का संकल्प लिया गया और यह भी कहा गया कि हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए शस्त्रों का सही उपयोग किया जाना चाहिए. शस्त्रों का पूजन केवल एक धार्मिक कार्य नहीं बल्कि यह एक आत्मनिरीक्षण का अवसर है जहां हमें यह समझने का अवसर मिलता है कि धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए शक्ति का होना आवश्यक है.

शस्त्र केवल शोभा के लिए नहीं, धर्म की रक्षा के लिए

पूजा के दौरान बजरंग दल के सदस्यों ने इस बात पर जोर दिया कि शस्त्र केवल घर में शोभा के लिए नहीं होते बल्कि उनका सही समय पर उपयोग करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है. उनका मानना था कि जब भी समाज पर कोई संकट आता है तब शस्त्रों का सही उपयोग धर्म और समाज की रक्षा के लिए किया जाना चाहिए. उन्होंने इस तथ्य को भी स्वीकार किया कि इतिहास में कई बार हमने शस्त्रों के मुकाबले में पीछे रहने के कारण पराजय का सामना किया.

आधुनिक शस्त्रों की आवश्यकता

बजरंग दल के सदस्यों ने कहा कि विजय प्राप्त करने के लिए हमें आधुनिकतम शस्त्रों की आवश्यकता होती है. यह सत्य है कि समय के साथ युद्ध की विधियां बदलती हैं और हमें अपने शस्त्रों को भी उसी प्रकार उन्नत करना चाहिए. वाराणसी के मंदिरों में शस्त्र पूजन की परंपरा विजय दशमी के दिन निभाई जाती है. काशी की इस परंपरा का निर्वाहन सदियों से किया जा रहा है और यह सनातन धर्म की महानता और उसकी रक्षा के प्रति समर्पण का प्रतीक है. वाराणसी के मंदिरों में शस्त्र पूजन के माध्यम से यह संदेश दिया जाता है कि धर्म की रक्षा के लिए शक्ति की आवश्यकता होती है और शस्त्रों का पूजन उस शक्ति की पूजा है.

 

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