पंजाब और राजस्थान की हद पर बसे पंजाब के गांव कोयल खेड़ा बिकाऊ है…

पंजाब और राजस्थान की हद पर बसे पंजाब के गांव कोयल खेड़ा बिकाऊ है। गांव को ग्रामीणों ने बिकाऊ कर दिया है। राज्य की सरहद और पंजावा माइनर की टेलों पर बसा करीब चार हजार की आबादी वाला यह गांव आज अपनी दयनीय हालत पर आंसू बहा रहा है। गांव का कुल क्षेत्रफल 1600 एकड़ है। यहां 10 से 40 एकड़ के मालिक बसते हैं। गांव के 1370 वोटर हर चुनाव में सरकारें बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं।

लोग बोले- खेत सुक्के, बाग मुक्के, लोकां गरीबी अग्गे हथ चुक्के

गांव के लोगों का मुख्य पेशा कृषि है। कृषि भी पूरी तरह से नहरी पानी पर निर्भर है। जमीन का पानी कड़वा और खारा होने के कारण फसलों के लायक नहीं है। इस वर्ष पंजावा माइनर में भी पानी न के बराबर छोड़े जाने के कारण यहां के लोगों की फसलें और बाग पूरी तरह से सूख चुके हैं। जमीन बंजर हो चुकी है। लोग दूर शहरों में आजीविका कमाने के लिए दिहाड़ी करने को मजबूर हैं। इस कारण गांववासियों ने 1600 एकड़ का पूरा गांव ही आपसी सहमति से बेचने का फैसला लिया है।

यह है गांव की कीमत

जागरण की टीम जब इस गांव में पहुंची तो गांववासियों ने बताया कि वह अपनी सारी जमीन बेचने के लिए मजबूर हैं। उन्होंने इसकी कीमत यदि राष्ट्रपति की तरफ से जमीन खरीद की जाती है तो 20 रुपये प्रति एकड़, यदि प्रधानमंत्री खरीदते हैं तो 15 रुपये प्रति एकड़, मुख्यमंत्री के लिए 10 रुपये प्रति एकड़ और हलका फाजिल्का के विधायक के लिए 5 रुपये प्रति एकड़ तय की है।

बच्चे पढ़ने के लिए भेजे नाना के घर

5 से 40 एकड़ के मकान मालिकों की आज हालत इतनी दयनीय हो चुकी है कि उनको अपने बच्चों को पढऩे के लिए नाना के घर या दूर रिश्तेदारों के पास भेजने पड़ रहे हैं। उनके पास बच्चों को पढ़ाने के लिए किताबें, कॉपियों, वर्दियों और अन्य खर्चों के लिए पैसे नहीं हैं। कई लोगों ने तो सूखा पडऩे के कारण चारा न होने की सूरत में अपने पशु तक बेच दिए हैं।

वे ख़ुद परिवारों सहित राजस्थान और पंजाब के अन्य शहरों में पेट की आग बुझाने को मजदूरी के लिए चले गए हैं। गांववासियों ने बताया कि उन्होंने अन्य गांवों के साथ मिलकर सीजन आने से पहले ही करीब 3 लाख रुपये इकट्ठा करके पंजावा माइनर की सफाई के लिए प्रयास किया था। उनको क्या पता था कि सफाई होने के बावजूद नहर में पानी नहीं आएगा।

किन्नू के बाग सूखे

पानी न मिलने कारण गांव में किन्नू के बाग भी सूख चुके हैं। कुछ पौधे हरे हैं तो उनको पेप्सी वाली बोतलों में पानी भरकर ग्लूकोज की तरह दिया जाता है। खेत और बाग इस समय सूख चुके हैं। यदि कोई परिवार गांव में है तो वह बाहर से 300 रुपये प्रति टैंकर के हिसाब से पानी खरीद कर अपनी जरूरत पूरी कर रहा है। गांव के वाटर वक्र्स में भी पीने का पानी उपलब्ध नहीं है।

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बच्चों के टूटे रिश्ते

गांव के लोग बताते हैं कि उन्होंने बेटे और बेटियों के रिश्ते दूर गांवों और कस्बो में किए हुए थे। इस बार पानी की किल्लत और ऊपर से बारिश न होने के कारण फसलें सूख गईं। इस कारण उनके बच्चों के रिश्ते भी टूट चुके हैं और कई टूटने के कगार पर हैं, क्योंकि उनके पास बेटियों की शादी के लिए पैसे नहीं हैं

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