अनंत चतुर्दशी के दिन बाबा नीम करोली ने ली थी महासमाधि, एक युग के अंत के समान थी उनकी विदाई

महाराज के चाहने वालों की संख्या उनके महासमाधि लेने के बाद भी लगातार बढ़ती जा रही है. लेकिन, क्या आप जानते हैं कि नीम करोली बाबा के अंतिम क्षणों में क्या-क्या हुआ था.

 नीम करोली बाबा के चमत्कारों के बारे में विश्वभर में लोग जानते हैं. कई देसी तो कई विदेशी आम लोग, सेलिब्रिटी, नेता, अभिनेता और बिज़नेसमैन उनके भक्त हैं. कहा जाता है कि उनकी महासमाधि का दिन उनके लिए एक युग के अंत के समान था. जब ये घटना हुई तो न सिर्फ भारत में बल्कि विश्व के कई कोनों में शोक की लहर दौड़ पड़ी. विदेशों से भी भारी संख्या में लोग उनके अंतिम दर्शनों के लिए आए. लेकिन, क्या आप जानते हैं कि महासमाधि लेने से पहले महाराज जी ने क्या कहा और ये पल जब आया तो उनके साथ कौन-कौन था. नीम करोली बाबा के शरीर त्याग और महासमाधि की कथा से जुड़ी हर बात को जानिए.

शरीर के अंत का पूर्वाभ्यास

महाराज जी ने अपने जीवन के अंतिम दिनों में कुछ ऐसे संकेत दिए थे, जो उनके शरीर त्यागने के पूर्वाभ्यास को दर्शाते थे. कैंची धाम के भक्तों के अनुसार, जब महाराज जी इस बार वृंदावन के लिए रवाना हुए, तो उन्होंने धाम के सभी मंदिरों में जाकर प्रणाम किया. उन्होंने मां दुर्गा और हनुमान जी के मंदिर के सामने अपना कंबल फेंक दिया, जिसे बाद में भक्तों ने उन्हें ओढ़ाया. यह सब उनके आगामी शरीर त्याग के संकेत थे.

रहस्यमयी यात्रा की शुरुआत

9 सितंबर 1973 को महाराज जी ने कैंची धाम से वृंदावन की यात्रा का निर्णय लिया. आमतौर पर वे जीप से सफर करते थे, लेकिन इस बार उन्होंने रेलगाड़ी को अपनी यात्रा के लिए चुना, जो उनके भक्तों के लिए एक रहस्य बना रहा. मथुरा स्टेशन पर पहुंचने के बाद, कुछ भक्तों ने उनके चरण स्पर्श किए, लेकिन थोड़ी ही देर में महाराज जी की तबीयत बिगड़ने लगी. वे बेहोश हो गए और उन्हें तुरंत रामकृष्ण मिशन अस्पताल में भर्ती कराया गया.

अंतिम क्षणों की पवित्रता

अस्पताल में जब महाराज जी को ऑक्सीजन दिया गया तो उन्होंने इसे खींचकर फेंक दिया और कहा, “यह सब बेकार है.” इसके तुरंत बाद उन्होंने तीन बार जगदीश का नाम लिया और 11 सितंबर 1973 की मध्यरात्रि में, अनंत चतुर्दशी के पवित्र दिन उन्होने इस भौतिक शरीर को त्याग दिया.

अंतिम संस्कार की तैयारी

महाराज जी के निधन की खबर फैलते ही देशभर से उनके भक्त वृंदावन की ओर दौड़ पड़े. कई प्रसिद्ध हस्तियां और उच्च अधिकारी भी उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंचे. लेकिन नीम करोली बाबा के अंतिम संस्कार की विधि को लेकर भक्तों में मतभेद था. कुछ लोग जल में विसर्जन के पक्ष में थे तो कुछ समाधि के पक्षधर थे. तभी वृंदावन के संत पागल बाबा ने निर्णय लिया कि महाराज जी का दाह संस्कार आश्रम में ही किया जाएगा.

श्रद्धांजलि और तूफान का आगमन

जैसे ही नीम करोली बाबा का शरीर आश्रम में लाया गया वैसे ही अचानक तेज तूफान और बारिश ने सबको घेर लिया. भक्तों को कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था. इस बीच श्री सिद्ध मां पहुंचीं और जैसे ही उन्होंने आश्रम में कदम रखा तूफान शांत हो गया. इसके बाद, महाराज जी के शरीर को चंदन की लकड़ी पर रखा गया और सभी ने उनके अंतिम दर्शन किए.

अंतिम यात्रा और दिव्य दर्शन

महाराज जी की अंतिम यात्रा में भक्ति संगीत और भक्तों की भीड़ के साथ चारों ओर जुलूस निकाला गया. यात्रा के दौरान भक्तों ने फूलों की वर्षा की और मंदिरों में आरती की. जब उनके भौतिक शरीर को अग्नि दी गई तब भक्तों ने दिव्य दर्शन किए. कुछ ने देखा कि महाराज जी राम और लक्ष्मण के बीच खड़े थे और हनुमान जी उनकी परिक्रमा कर रहे थे.

अवशेषों का विसर्जन

बाबा जी के अवशेषों को कई तीर्थ स्थलों में विसर्जित किया गया. कुछ अवशेषों को उनके अलग-अलग आश्रमों में भेजा गया जहां बाद में उनकी मूर्तियां स्थापित की गईं. बाबा जी के भक्तों ने तेरहवें दिन वृंदावन आश्रम में एक भव्य भंडारा आयोजित किया. कैंची आश्रम में बारहवें दिन ही भंडारे का आयोजन हुआ. भले ही महाराज जी ने इस संसार से विदा ली, लेकिन आज भी वे अपने भक्तों पर कृपा बनाए हुए हैं. जो भक्त सच्चे हृदय से उन्हें स्मरण करते हैं उन्हें उनकी दिव्य उपस्थिति का अनुभव होता है. बाबा जी की लीला असीम है और उनके आशीर्वाद का मार्ग हमेशा खुला रहता है, बस हमें अपने मन को निर्मल और पवित्र रखना है.

 

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