पति की लंबी उम्र के लिए सोमवती अमावस्या पर करें दान-पुण्य और पूजन, पढ़ें ये व्रत कथा

हिन्दू धर्म में भादो में पड़ने वाली सोमवती अमावस्या का बहुत अधिक महत्व है. इस दिन पितरों का तर्पण, पिंड दान और पितर पूजा की जाती है. इस दिन गौ दान और स्नान का विशेष महत्व बताया गया है.

 भाद्रपद माह की सोमवती अमावस्या के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करना बेहद पुण्यदायी माना जाता है. आज यानि 2 सितंबर को भादो की सोमवती अमावस्या है. इस दिन व्रत, पूजन करने से शादीशुदा महिलाओं को अखंड सौभाग्य, पति की लंबी उम्र और सभी मनोकामनाओं की पूर्ति का वरदान प्राप्त होता है. हिन्दू धर्म में भादो में पड़ने वाली सोमवती अमावस्या का बहुत अधिक महत्व है. इस दिन पितरों का तर्पण, पिंड दान और पितर पूजा की जाती है. इस दिन गौ दान और स्नान का विशेष महत्व बताया गया है.

पितरों को याद करने का दिन

Somvati Amavasya का दिन पूर्वजों और पितरों को याद करने के लिए शक्तिशाली दिन माना जाता है. सोमवती अमावस्या के दिन भगवान शिव, श्रीहरि और माता लक्ष्मी की उपासना की जाती है. सोमवती अमावस्या को पिठोरी अमावस्या, भादो अमावस्या और भाद्रपद अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अमावस तिथि को सोमवती अमावस्या मनाई जाती है.

शुभ मुहूर्त

अमावस्या तिथि 2 सितंबर यानी आज सुबह 5 बजकर 21 मिनट पर शुरू हो चुकी है और तिथि का समापन 3 सितंबर को सुबह 7 बजकर 24 मिनट पर होगा.

सोमवती अमावस्या शुभ योग

आज शिव योग, सिद्ध योग और मघा नक्षत्र का निर्माण हो रहा है. शिव योग कल शाम 5 बजकर 50 मिनट पर शुरू हो चुका है और यह योग आज शाम 6 बजकर 20 मिनट तक रहेगा. इसके अलावा, सिद्ध योग आज शाम 6 बजकर 20 मिनट पर शुरू हो जाएगा और  3 सितंबर को शाम 7 बजकर 05 मिनट पर समापन होगा.

सोमवती अमावस्या व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण परिवार था, उस परिवार में पति-पत्नी एवं उसकी एक पुत्री भी थी. उनकी पुत्री समय के गुजरने के साथ-साथ धीरे-धीरे बड़ी होने लगी. उस पुत्री में बढ़ती उम्र के साथ सभी स्त्रियोचित सगुणों का विकास हो रहा था. वह कन्या सुंदर, संस्कारवान एवं गुणवान थी, परंतु गरीब होने के कारण उसका विवाह नहीं हो पा रहा था. एक दिन उस ब्राह्मण के घर एक साधु महाराज पधारें. साधु उस कन्या के सेवाभाव से अत्यधिक प्रसन्न हुए. कन्या को लंबी आयु का आशीर्वाद देते हुए साधु ने कहा कि इस कन्या के हाथ में विवाह योग्य रेखा नहीं है.

ब्राह्मण दम्पति ने साधु से पूछा उपाय

इसके बाद ब्राह्मण दम्पति ने साधु से इसका उपाय पूछा, कन्या ऐसा क्या करें कि उसके हाथ में विवाह योग बन जाए. साधु महाराज ने कुछ देर विचार करने के बाद अपनी अंतर्दृष्टि में ध्यान करके बताया कि कुछ ही दूरी पर एक गांव में सोना नाम की एक धोबिन महिला अपने बेटे और बहू के साथ रहती है, जो बहुत ही आचार-विचार एवं संस्कार संपन्न तथा पति परायण है. यदि यह सुकन्या उस धोबिन की सेवा करे और वह महिला इसकी शादी में अपने मांग का सिंदूर लगा दे, तथा उसके बाद इस कन्या का विवाह हो जाए, तो इस कन्या का वैधव्य योग मिट सकता है. साधु ने यह भी बताया कि वह महिला कहीं बाहर आती-जाती नहीं है.

ब्राह्मणी ने अपनी बेटी के सामने रखा ये प्रस्ताव

यह बात सुनकर ब्राह्मणी ने अपनी बेटी से धोबिन की सेवा करने का प्रस्ताव रखा. अगले दिन से ही कन्या सुबह ही उठ कर सोना धोबिन के घर जाकर, साफ-सफाई एवं अन्य सारे कार्य करके अपने घर वापस आने लगी. एक दिन सोना धोबिन अपनी बहू से पूछती है कि तुम तो सुबह ही उठकर सारे काम कर लेती हो और पता भी नहीं चलता. बहू ने कहा कि मां मैंने तो सोचा कि आप ही सुबह उठकर सारे काम खुद ही खत्म कर लेती हैं. मैं तो देर से उठती हूं. यह सब जानकार दोनों सास-बहू घर की निगरानी करने लगी कि कौन है जो सुबह ही घर का सारा काम करके चला जाता है.

कन्या से पूछा ये कारण

कई दिनों के बाद धोबिन ने देखा कि एक कन्या मुंह ढके अंधेरे में घर में आती है और सारे काम करने के बाद चली जाती है. जब वह जाने लगी तो सोना धोबिन उसके पैरों पर गिर पड़ी, पूछने लगी कि आप कौन है और इस तरह छुपकर मेरे घर की चाकरी क्यों करती हैं? तब कन्या ने साधु द्बारा कही गई सारी बात बताई. सोना धोबिन पति परायण थी, अतः उसमें तेज था. वह तैयार हो गई, सोना धोबिन के पति थोड़ा अस्वस्थ थे. उसने अपनी बहू से अपने लौट आने तक घर पर ही रहने को कहा था.

कथा के बिना सोमवती अमावस्या की पूजा अधूरी

सोना धोबिन ने जैसे ही अपने मांग का सिन्दूर उस कन्या की मांग में लगाया, सोना धोबिन का पति मर गया. उसे इस बात का पता चल गया. वह घर से निराजल ही चली थी, यह सोचकर कि रास्ते में कहीं पीपल का पेड़ मिलेगा तो उसे भंवरी देकर और उसकी परिक्रमा करके ही जल ग्रहण करेगी. उस दिन सोमवती अमावस्या थी. ब्राह्मण के घर मिले पूए-पकवान की जगह उसने ईंट के टुकड़ों से 108 बार भंवरी देकर 108 बार पीपल के पेड़ की परिक्रमा की और उसके बाद जल ग्रहण किया. ऐसा करते ही उसके पति के मृत शरीर में वापस जान आ गई. धोबिन का पति फिर से जीवित हो उठा. तभी से इस कथा के बिना सोमवती अमावस्या की पूजा अधूरी मानी जाती है.

 

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