आखिर क्यों शुरू हुई दुनिया में गुट निरपेक्ष दिवस मनाने की प्रथा

नई दिल्ली। युद्ध या शांति इसके बीच उलझे विश्व में कई ऐसे देश भी रहे जो यह तय नहीं कर पा रहे थे कि युद्ध की स्थिति में वह आखिर किसके साथ, किसके पक्ष में खड़े हों। ऐसे में गुट निरपेक्ष आंदोलन राष्ट्रों ने एक अंतरराष्ट्रीय संस्था का गठन किया जिसमें यह निश्चय हुआ कि ये देश विश्व के किसी भी पावर ब्लॉक के साथ या विरोध में नहीं खड़े होंगे। इस संगठन की स्थापना 1961 में की गई। यही कारण रहा कि 1 सितंबर को गुट निरपेक्ष दिवस मनाया जाता है।

बता दें कि वर्तमान में गुट निरपेक्ष आंदोलन में 120 सदस्य देश और 17 पर्यवेक्षक देश हैं। इस गुटनिरपेक्ष आंदोलन की मशाल भी भारत से ही जलकर निकली थी। इस आंदोलन को भारत के पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू, मिस्र के पूर्व राष्ट्रपति गमाल अब्दुल नासिर, युगोस्लाविया के राष्ट्रपति जोसिप बरोज़ टीटो, इंडोनेशिया के पहले राष्ट्रपति और इंडोनेशियाई स्वतंत्रता आंदोलन के नेताडॉ सुकर्णो एवं घाना के पूर्व राष्ट्रपति क्वामे एन्क्रूमाह ने आरंभ किया था।

गुट निरपेक्ष देशों के बारे में बात करें तो इसमें तृतीय विश्व यानि विकासशील देश सदस्य हैं। यह समूह संयुक्त राष्ट्र के कुल सदस्यों की संख्या का लगभग दो तिहाई एवं विश्व की कुल जनसंख्या के 55 प्रतिशत भाग का प्रतिनिधित्व करता है।

गुट निरपेक्षता को कई बार पृथकतावाद कहकर परिभाषित किया गया जबकि दोनों के अर्थ बिल्कुल अलग-अलग और सिद्धांत भी अलग-अलग हैं। गुट निरपेक्षता से सीधा तात्पर्य समाज में सभी को बराबरी का अधिकार और सभी के लिए एक समान न्याय सुनिश्चित करना है जबकि पृथकतावाद में समाज, देश के अलग-अलग समूहों को विभाजित देखने की बात नजर आती है।

जहां एक ओर गुट निरपेक्षता का सिद्धांत समृद्धि और सामाजिक समृद्धि की प्रेरणा प्रदान करता है, वहीं पृथकतावाद से समाज में विभेद बढ़ सकता है और सामाजिक संगठन में विघटन पैदा हो सकता है। ऐसे में ये दोनों ही सामाजिक और न्याय दोनों की दृष्टि से अलग हैं।

वैसे आपको यह भी जानना चाहिए कि जब शीत युद्ध का दौर दुनिया देख रही थी तब गुटनिरपेक्ष देशों का समूह बनाया गया था। इसका साफ मकसद उन देशों को साथ लाना था जो न अमरीका के साथ थे और न ही सोवियत संघ के पक्षधर थे। ऐसे गुट निरपेक्ष देशों को एक मंच पर साथ लाने की कोशिश पांच देशों के नेताओं ने की थी। जिसमें भारत प्रमुख था और उसके साथ सहयोगी की भूमिका में इंडोनीशिया, घाना, मिस्र और उस वक़्त के युगोस्लाविया थे। वैसे गुट निरपेक्ष आन्दोलन के तीन कर्णधार पंडित जवाहर लाल नेहरू, नासिर व टीटो को माना जाता है।

वैसे तब लोगों को यह लगा कि गुट निरपेक्षता का मतलब दुनिया के किसी भी देश में जारी अस्थिरता के हालात से आंखें मूंद लेना था जबकि ऐसा नहीं था। गुटनिरपेक्षता का अर्थ सही और गलत में अन्तर करके सदा सही नीति का समर्थन करना है।

बाद में यह गुट निरपेक्षता भारत के लिए फायदेमंद साबित हुई। गुट निरपेक्ष होने की वजह से ही भारत के वर्तमान विदेशी संबंध अमेरिका और रूस दोनों से बेहतरीन हैं। भारत ने गुट निरपेक्षता के सिद्धांत पर ही बल देते हुए विश्व शांति को बढ़ावा दिया।

दरअसल दूसरे विश्व युद्ध के खत्म होने के बाद दुनिया अमेरिका और तत्कालीन सोवियत संघ (अब रूस) के नेतृत्व तले दो गुटों में बंटी थी। अमेरिका वाला खेमा पूंजीवाद की नीतियों का समर्थक था वहीं सोवियत संघ का खेमा समाजवादी नीतियों को समर्थन दे रहा था। ऐसे में गुट निरपेक्ष देशों ने तय किया कि वे किसी एक गुट में शामिल होकर दूसरे गुट के खिलाफ खड़े होने की बजाए गुट निरपेक्ष रहेंगे ताकि उनके संबंध किसी से खराब न हों।

 

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