भारत ने हसीना के खिलाफ विरोध प्रदर्शन को बांग्लादेश का आंतरिक मामला बताया, लेकिन ढाका से मिल रही खबरों के अनुसार भारत के लिए अगली सरकार चुनौती खड़ी कर सकती है. आइए समझते हैं आखिर इस तख्तापलट का भारत पर क्या असर हो सकता है.
भारत के तकरीबन सभी पड़ोसी मुल्क संकट से गुजर रहे हैं. पहले पाकिस्तान फिर श्रीलंका और अब बांग्लादेश से तख्तापलट की खबरें सामने आई हैं. शेख हसीना के खिलाफ विद्रोह और फिर जबरदस्त प्रदर्शन के बीच उनका इस्तीफा इन दिनों पूरी दुनिया के लिए चर्चा का विषय बना हुआ है. शेख हसीना के इस्तीफा और देश छोड़ने के बाद बांग्लादेश के सेना प्रमुख वकर-उज-जमान ने सत्ता की कमान अपने हाथों में ले ली है. सेना की मदद से ही नई अंतरिम सरकार भी बनाई जाएगी. लेकिन क्या शेख हसीने के विरोध के पीछे सिर्फ आरक्षण ही प्रमुख मुद्दा है या फिर बेरोजगारी, लगातार कम हो रहे विदेश मुद्रा भंडार के साथ-साथ हर चीज पर नियंत्रण की उनकी इच्छा ने देश को इस दोहराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है. शायद इन सभी कारणों की वजह से ही बांग्लादेश इन दिनों संकट से गुजर रहा है. लेकिन बांग्लादेश में हुई इस उथल-पुथल का भारत पर क्या असर पड़ेगा. क्या भारत को इसकी कीमत चुकाना होगी. आइए जानते हैं.
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के देश से अचानक और बिना किसी औपचारिकता के चले जाने से भारत के सामने कई नई चुनौतियां खड़ी हो गई हैं. इस घटना ने भारत सरकार को न केवल नुकसान पहुंचाया है, बल्कि इसे पड़ोसी देशों में संभवतः सबसे बड़ी विदेश नीति चुनौती का भी सामना करना पड़ सकता है. इस साल मालदीव के साथ संबंधों में आई खटास की तुलना में बांग्लादेश की स्थिति कहीं अधिक गंभीर और जटिल हो सकती है.
शेख हसीना का महत्व
शेख हसीना ने अपने कार्यकाल के दौरान धार्मिक चरमपंथियों और भारत विरोधी ताकतों को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. उन्होंने क्षेत्रीय स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण कदम भी उठाए हैं, जिसकी वजह से भारत के लिए बांग्लादेश में एक स्थिर और सहयोगी सरकार बनी रही.
इसके बाद भी घरेलू राजनीति में उनकी अस्थिर स्थिति और कई असफलताओं की वजह से उनके खिलाफ विरोध प्रदर्शन तेज हो गए हैं.
भारत पर पड़ेगा सीधा असर
दरअसल पश्चिम बंगाल से बांग्लादेश की सीमाएं जुड़ी हुई हैं. यहीं पर समय-समय पर घुसपैठ की खबरें भी आती रहती हैं. ऐसे में अगर कोई कट्टर या अस्थिर सरकार बांग्लादेश की कमान संभालती है तो सुरक्षा के लिहाज से भारत के लिए यह एक बड़ी चुनौती बन सकती है. भारत में आतंकियों की एंट्री को लेकर और पुख्ता बंदोबस्त करना होंगे.
बता दें कि इससे पहले बांग्लादेश के बंटवार के वक्त एक करोड़ की तादाद में लोगों ने भारत में एंट्री की थी. इनको लेकर अब भी भारत में राजनीति होती है. रोहिंग्या समुदाय को लेकर भारत अलग से नियम और कानून भी लाया है.
बांग्लादेश से बड़ी संख्या में शरणार्थी शरण लेने भारत का रुख कर सकते हैं. ऐसे में भारत के लिए जरूरी है कि इस तरह के मामले में अलर्ट रहे. यही नहीं चीन की भी इस पूरे घटनाक्रम पर नजरे हैं. क्योंकि वह भी बांग्लादेश संकट के बहाने पाकिस्तान को ज्यादा सक्रिय करना चाहेगा जिससे उसके मंसूबों को पूरा करने का मौका मिले.
परियोजनाओं की रफ्तार होगी धीमी
भारत और बांग्लादेश के बीच कई परियोजनाओं पर काम हो रहा है. लेकिन इस संकट के चलते इन परियोजनाओं की रफ्तार भी धीमी पड़ सकती है. बांग्लादेश के साथ मोंगला बंदरगाह को लेकर समझौता किया गया था, इसको चीन के लिए भी बड़ी चुनौती के रूप में देखा जा रहा था, लेकिन अब इस परियोजना पर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं.
इस परियोजना के दम पर भारत-बांग्लादेश हिंद महासागर के पूर्वी और पश्चिमी किनारों पर अपनी स्थिति मजबूत कर पाया था, लेकिन आने वाले समय में इसकी रफ्तार कैसी रहेगी ये कह पाना मुश्किल है.
भारत के पूर्वोत्तर राज्यों पर भी पड़ेगा असर
दरअसल पश्चिम बंगाल के साथ-साथ भारत और बांग्लादेश की सीमा पूर्वोत्तर राज्यों जैसे मिजोरम, असम, त्रिपुरा और मेघालय जैसे राज्यों से भी मिली हुई हैं. शेख हसीना के सत्ता पर काबिज रहते हुए इन राज्यों में भी अमन और शांति कायम थी.
लेकिन अब तख्तापलट के बाद स्थिति बदल भी सकती है. हालांकि जानकारों की मानें तो कोई भी सरकार बने सीधे तौर पर भारत से पंगा लेने की कोशिश नहीं करेगी. लेकिन भारत को इस मामले में सतर्क रहने की जरूरत है.
बीएनपी आई तो क्या होगा
बांग्लादेश के स्थानीय मीडिया की मानें तो सेना की ओर से गठित अंतरिम सरकार में हसीना की अवामी लीग को शामिल नहीं किया जाएगा. वहीं विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) और प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी के प्रतिनिधियों को मौका मिल सकता है. अब अगर बीएनपी सत्ता में सक्रिय होगा तो यह भारत के लिए भी मुश्किल भरा हो सकता है.
जमात को पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों के लिए जाना जाता है. लेकिन बीएनपी ने भारत विरोधी भावनाओं को भड़काने का कोई मौका नहीं गंवाया. ऐसे में भारत को सावधान रहने की जरूरत है.