प्रदेश में एक समय एकमात्र क्षेत्रीय दल के रूप में पहचान बनाने वाला उत्तराखंड क्रांति दल निकाय चुनाव को अपनी खोई पहचान बनाने के अवसर के रूप में देख रहा है। यही कारण है कि दल ने बेहद सीमित स्थानों पर ही अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं। मंशा यह कि कम से कम दल चुनाव में अपनी उपस्थिति दिखा सके।
राज्य गठन के बाद उक्रांद को प्रदेश में तीसरे सबसे बड़ी ताकत के रूप में देखा जा रहा था। पहले विधानसभा चुनाव में जनता ने भी दल पर विश्वास जताया और उसके कुछ प्रत्याशियों को विधानसभा तक पहुंचाया। इससे दल के और अधिक मजबूत होने की उम्मीद की गई।
हुआ इसका ठीक उलट, दल के भीतर नेताओं के बीच चली खींचतान से दल को खासा नुकसान हुआ। दल इसके बाद कई बार टुकड़ों में बंटा। जब तक नेताओं को अपनी गलती का अहसास हुआ तब तक बहुत देर हो चुकी थी। दल में एका तो हुआ लेकिन जनता ने इन्हें पूरी तरह नकार दिया।
अब दल विधानसभा तो दूर निकायों में भी अपना खाता खोलने को तरस रहा है। ऐसे में इस बार उक्रांद मौजूदा निकाय चुनावों को एक सुनहरे अवसर के रूप में देख रहा है। इस कारण केवल चुनिंदा स्थानों पर ही दल ने प्रत्याशियों पर दांव खेला है।
उक्रांद ने तीन नगर निगम, सात नगर पालिका और दो पंचायतों में ही अध्यक्ष पद पर प्रत्याशियों को उतारा है। पार्षद, सभासद व सदस्यों के पद पर भी बहुत अधिक प्रत्याशियों पर दांव नहीं खेला है।
हालांकि, एक सच्चाई यह भी है कि दल के पास मैदानी इलाकों में न तो आधार है और न ही प्रत्याशी। इसलिए पूरा फोकस पर्वतीय जिलों व ऐसे निकायों पर रखा गया है जहां पर्वतीय मूल के लोगों की संख्या ठीकठाक है।
दल के केंद्रीय प्रवक्ता सुनील ध्यानी का कहना है कि दल ने केवल चुनाव लड़ने के नाम पर ही टिकट नहीं दिए हैं। ऐसे लोगों को पार्टी टिकट दिया जा रहा है जो अपनी छवि व मेहनत के बल पर सीट निकालने की क्षमता रखते हैं।