लखनऊ। एटा लोकसभा क्षेत्र तुलसी,खुसरो की सरजमी रही है। ऐसे में ना सिर्फ राजनीतिक बल्कि ऐतिहासिक दृष्टि से भी इसका महत्व हमेशा से रहा है। जिले को तीन तीन मुख्यमंत्री देने का गौरव मिला है। ये सीट पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के नाम से भी जानी जाती है। उप्र में 22वें नंबर के एटा संसदीय क्षेत्र में 7 मई को तीसरे चरण में मतदान होगा।
एटा लोकसभा सीट का इतिहास
इस सीट पर 1952 में हुआ पहला संसदीय चुनाव कांग्रेस ने जीता था। 1957 में कांग्रेस और 1962 में हिन्दू महासभा ने यहां जीत हासिल की। 1967 और 1971 में कांग्रेस ने जोरदार वापसी की। 1977 में भारतीय लोकदल ने जीत हासिल की। 1980 में कांग्रेस और 1984 में भारतीय लोकदल को जीती मिली। उसके बाद 1989, 1991,1996 और 1998 के चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार महादीपक सिंह शाक्य ने जीत दर्ज की। 1999 और 2004 में समाजवादी पार्टी (सपा) के कुंवर देवेन्द्र सिंह यादव यहां से जीते। 2009 के आम चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर जीत हासिल की। 2014 में उनके बेटे राजवीर सिंह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के टिकट पर मैदान में उतरे और वोटों के भारी अंतर से जीत हासिल की। एटा लोकसभा सीट पर सबसे पहले कांग्रेस, भाजपा और फिर सपा का कब्जा रहा है। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को यहां कभी कामयाबी नहीं मिली।
पिछले दो चुनावों का हाल
2019 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी राजवीर सिंह ने 545,348 (54.52प्रतिशत) वोट पाकर कर जीत हासिल की। दूसरे नंबर पर रहे सपा उम्मीदवार कुंवर देवेन्द्र सिंह यादव के खाते में 422,678 (42.25 प्रतिशत) वोट गए। भाजपा ने सपा-बसपा के साझा उम्मीदवार कुंवर देवेन्द्र सिंह को 122,670 मतों के अंतर से हरा दिया।बात 2014 के चुनाव की कि जाए तो भाजपा उम्मीदवार राजवीर सिंह मैदान में उतरे। उन्होंने सपा के कुंवर देवेन्द्र सिंह यादव को 2 लाख से अधिक मतों के अंतर से हरा दिया। बसपा प्रत्याशी नूर मुहम्मद खां तीसरे स्थान पर रहे थे।
किस पार्टी ने किसको बनाया उम्मीदवार
भाजपा ने राजवीर सिंह उर्फ राजू भइया पर एक बार फिर विश्वास जताया है। राजवीर सिंह तीसरी बार चुनाव मैदान में हैं। वहीं, सपा-कांग्रेस गठबंधन में ये सीट सपा के खाते में आई है। यहां से सपा ने देवेश शाक्य को मैदान में उतारा है। बसपा ने खासे मंथन के बाद मोहम्मद इरफान को टिकट दिया है।
एटा सीट का जातीय समीकरण
पिछले चुनाव में एटा में वोटरों की संख्या 16 लाख 21 हजार 295 है। इस सीट के जातीय समीकरणों की बात की जाए तो यहां पर लोधी राजपूतों की संख्या करीब 2 लाख 90 हजार, यादव लगभग ढाई लाख, शाक्य करीब 2 लाख, ब्राह्मण 90 हजार, वैश्य 90 हजार, मतदाता, जाटव 2 लाख मतदाता है। बाकी बिरादरियां भी इस सीट पर हैं लेकिन वे कम मात्रा में है।
विधानसभा सीटों का हाल
एटा संसदीय सीट के तहत पांच विधानसभाएं शामिल हैं। जिनमे से कासगंज, अमांपुर और पटियाली विधानसभा कासगंज जिले का हिस्सा हैं जबकि एटा जिले की एटा सदर और मारहरा विधानसभाएं हैं। पटियाली सीट सपा के कब्जे में है, बाकी सीटों पर भाजपा काबिज है।
दलों की जीत का गणित और चुनौतियां
गैर भाजपा दलों की रणनीति इस बार के चुनाव में बदली हुई है। सपा ने लगातार दो बार हुई हार से सबक लेकर इस बार शाक्य प्रत्याशी को उतारा है। वहीं भाजपा अपने शाक्य नेताओं के सहारे वोटों का ध्रुवीकरण कराने की कोशिश में है। शाक्यों में जो जितनी सेंधमारी कर ले जाएगा, उसी के हिसाब से प्रत्याशी को मजबूती मिलेगी।
बसपा इस सीट पर आज तक जीत भले न पाई हो लेकिन कई बार वो अन्य दलों के चुनावी समीकरण जरूर बिगाड़ चुकी है। बसपा ने इस बार काडर वोट के साथ मुस्लिम वोटरों के तालमेल का गणित बनाया है। मुस्लिम वोटरों के बिखरने का सबसे बड़ा और सीधा प्रभाव यहां सपा पर पड़ता है। यहां बसपा प्रत्याशी मुस्लिम वोटों को काटते हैं तो सपा के लिए मुश्किलें खड़ी होना तय हैं। भाजपा के वरिष्ठ नेता कल्याण सिंह बेशक इस दुनियां में नहीं हैं, लेकिन उनका प्रभाव लोधी बेल्ट में साफ तौर पर दिखता है।
वरिष्ठ पत्रकार तारकेश्वर मिश्र के अनुसार, जहां एक ओर राम मंदिर का निर्माण हो चुका है तो वहीं राम मंदिर के प्रमुख आंदोलकारी व त्याग पुत्रों में अगर सबसे पहले कोई नाम आता है तो कल्याण सिंह का नाम आता है जिन्होंने राम मंदिर के कार सेवकों के लिए मुख्यमंत्री का सिहांसन त्याग दिया, अब राम मंदिर बनकर तैयार हो चुका है, जिसका 2024 के चुनाव में सीधा लाभ राजवीर सिंह को मिल सकता है।