पहले चरण के लोकसभा चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक दलों ने लगभग अपनी पूरी ताकत लगा दी है। 19 अप्रैल को पहले चरण में वोट डाला जाएगा। उत्तर प्रदेश की 8 सीटों पर भी पहले चरण में वोट डाले जाएंगे। अगर उत्तर प्रदेश की सभी 80 सीटों पर भाजपा को अपनी जीत सुनिश्चित करनी है तो उसे जाटलैंड की यह महत्वपूर्ण 8 सीटों पर भी कब्जा जमाना होगा। बीते 2019 के चुनाव में भाजपा के लिए जाट लैंड की परीक्षा कुछ खास नहीं रह पाई थी। लेकिन इस बार भाजपा बदले समीकरण के साथ अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद कर रही है। पहले चरण में सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, नगीना, मुरादाबाद, रामपुर और पीलीभीत लोकसभा सीटों पर मतदान होना है। 2019 में भाजपा को इन आठ में से केवल तीन सीटों पर ही जीत मिली थी
जयंत के साथ आने से फायदे की उम्मीद
भाजपा ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले जयंत चौधरी को साधने में कामयाबी हासिल की। जयंत चौधरी पूर्व प्रधानमंत्री और किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह के पोते हैं। चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न से सम्मानित करके केंद्र की मोदी सरकार ने जाटों को साधने की एक और बड़ी कोशिश की। जयंत चौधरी के आने से भाजपा को इस बात की उम्मीद है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट वोटर उसके साथ एकमुश्त होकर जुड़ जाएंगे। किसान आंदोलन के बाद से राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक जाट वोटर बीजेपी से दूर हुए थे। यही कारण है कि भाजपा ने उन्हें अपने पक्ष में करने के लिए जयंत चौधरी को गठबंधन में शामिल कराया।हालांकि, जयंत चौधरी की पार्टी के लिए 2014 और 2019 का चुनाव कुछ खास नहीं रहा था। ऐसे में भाजपा के साथ गठबंधन करके उन्हें भी इस बात की उम्मीद होगी कि शायद लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी का खाता खुल सकेगा। जयंत चौधरी को एनडीए गठबंधन के तहत दो सीटे दी गई है। ये हैं बागपत और बिजनौर। बागपत में 2014 और 2019 में भाजपा की जीत हुई थी।
जयंत की परीक्षा
जयंत चौधरी के लिए पहला और दूसरा चरण लिटमस टेस्ट से कम नहीं है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश किसान और जाट प्रभाव वाला माना जाता है। यहां का सियासी आधार भी जाट और किसानों पर ही टिका हुआ है। आरएलडी का वोट बैंक भी जाट और किसान ही हैं। कभी इन्हीं वोटो की बदौलत चौधरी अजित सिंह किंगमेकर बना करते थे। अब उनकी विरासत संभाल रहे जयंत चौधरी पर बड़ा दारोमदार है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा और आरएलडी गठबंधन की भी अग्नि परीक्षा होनी है। इसी के आधार पर भाजपा के साथ जयंत चौधरी का भविष्य भी सुनिश्चित हो सकेगा। विपक्षी खेमा भी लगातार इन क्षेत्रों में अपनी ताकत दिखा रहा है।
भाजपा के लिए चुनौतियां
लेकिन भाजपा के लिए चुनौतियां अभी भी बढ़ी हुई नजर आ रही है। इसका बड़ा कारण यह है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राजपूत, त्यागी और सैनी वोट बैंक उससे नाराज होता दिखाई दे रहा है। यह तीनों समुदाय अपनी नाराजगी को खुली तौर पर जाहिर कर रहा है। यह तीनों समाज अपने काम प्रतिनिधित्व की वजह से बेहद ही नाराज है। राजपूतों ने तो सहारनपुर में महापंचायत कर दी जिसके बाद भाजपा के भीतर खलबली से मच गई। बताया जाता है कि पश्चिम में उत्तर प्रदेश में राजपूत समाज 10% के आसपास है। लेकिन उसे इस बार प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है। गाजियाबाद में जनरल वीके सिंह की जगह अतुल कुमार गर्ग को भाजपा ने मैदान में उतारा है जिसके बाद इनमें नाराजगी और भी ज्यादा हो गई। त्यागी और सैनी समाज भी अलग-अलग जगह पर पंचायत कर रहे हैं। कुछ सीटों पर सैनी और त्यागी समाज के मतदाता निर्णायक भूमिका में है।