देश की 543 में से 200 लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जहां कांग्रेस और BJP का सीधा मुकाबला है। इनमें कर्नाटक, छत्तीसगढ़, हरियाणा, गुजरात, मध्य प्रदेश, असम, राजस्थान, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश प्रमुख हैं। दक्षिण भारत को छोड़ दें तो उत्तर भारत और पूर्वोत्तर में कांग्रेस काफी कमजोर हुई है। यहां कांग्रेस का संगठन और ढांचा पूरी तरह से चरमराया हुआ है। यही वजह है कि इन सभी राज्यों में BJP का विजय रथ चल रहा है। साउथ में कांग्रेस अभी भी मजबूत है। कर्नाटक और तेलंगाना में उसकी सरकार है, जबकि केरल में वह प्रमुख विपक्षी दल है। इसी तरह से तमिलनाडु में वह डीएमके के साथ सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल है। जबकि नॉर्थ में कांग्रेस ज्यादातर राज्यों में क्षेत्रीय दलों के भरोसे है। बिहार, महाराष्ट्र, झारखंड, तमिलनाडु, दिल्ली और उत्तर प्रदेश में कांग्रेस क्षेत्रीय दलों के सहारे राजनीति कर रही है। जहां-जहां गठबंधन में क्षेत्रीय दलों ने अपना हाथ ऊपर रखा, वहां गठबंधन का प्रदर्शन ठीक रहा, लेकिन जहां कांग्रेस को ज्यादा सीटें दे दी गईं, वहां BJP को फायदा मिलते देखा गया। ऐसे में अगर कांग्रेस अपना प्रदर्शन पिछले दो लोकसभा चुनावों से बेहतर नहीं करती, तो उसके राजनीतिक अस्तित्व पर बड़ा सवालिया निशान लगेगा।
लोकसभा चुनाव से पहले हुए पांच राज्यों की विधानसभा चुनावों में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस की हार का ही नतीजा है, कि आज I.N.D.I.A. में कांग्रेस को क्षेत्रीय दलों के साथ तालमेल बैठाने में न सिर्फ दिक्कत आ रही है, बल्कि क्षेत्रीय दल लगातार कांग्रेस को आंखें दिखा रहे हैं। इस चुनाव में कांग्रेस के सामने एक बड़ा सवाल इसका भी है, कि अगर वह अपना प्रदर्शन नहीं सुधारती तो न सिर्फ पार्टी में बड़े पैमाने पर भगदड़ बचेगी, बल्कि कांग्रेस शासित राज्यों में सरकार पर भी संकट आ सकता है। पिछले दिनों हिमाचल प्रदेश में ऐसी कोशिश दिखाई दी थी। भले ही आज कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे हो, लेकिन पार्टी का चेहरा आज भी गांधी परिवार, खासकर राहुल गांधी माने जाते हैं। पिछले दो लोकसभा चुनाव की तरह इस बार भी पार्टी का प्रदर्शन कमजोर रहता है तो उस स्थिति में न सिर्फ गांधी परिवार और राहुल गांधी की साख पर सवाल उठेंगे, बल्कि कांग्रेस के भीतर गांधी परिवार की पकड़ कमजोर होगी।
लोकसभा चुनाव में बीजेपी जहां 400 पार का दावा कर रही है, वहीं देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस का काफी कुछ दांव पर लगा है। ये चुनाव कांग्रेस के लिए जीवन-मरण से कम नहीं है। चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन उसके आगे की दिशा भी तय करेगी। मौजूदा चुनाव देश की सबसे पुरानी पार्टी और प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के लिए किसी भी लिहाज से जीवन-मरण से कम नहीं। 2014 के बाद से लगातार दहाई के आंकड़ों पर सिमटी कांग्रेस का प्रदर्शन लोकसभा में इतना निराशाजनक रहा कि वह अपने बूते नेता प्रतिपक्ष का दर्जा भी नहीं पा सकी। इस बार कांग्रेस पर निगाहें लगी हैं कि क्या सबसे पुराना दल अपने बूते सेंचुरी लगा पाएगा, क्या वह घटक दलों के साथ मिलकर मोदी का रथ रोक पाएगा या विपक्ष में ही बैठना होगा।