होली के बाद सातवें दिन यानी की चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी को शीतला सप्तमी का व्रत किया जाता है। स्कंद पुराण में शीलता सप्तमी का उल्लेख मिलता है। मान्यता के मुताबिक मां शीतला की पूजा और व्रत करने से चेचक और अन्य बीमारियां और संक्रमण नहीं होता है। पति और संतान की सलामती और निरोगी काया के लिए महिलाएं यह व्रत करती हैं। यह एक ऐसा व्रत है, जिसमें मां को बासी भोजन का भोग लगाया जाता है। तो आइए जानते हैं शीतला सप्तमी की पूजा विधि और मुहूर्त के बारे में।
माता पति और संतान की सलामती और निरोगी काया के लिए ये व्रत रखती हैं. ये एकमात्र ऐसा व्रत है जिसमें पूजा के दौरान माता को बासी भोजन का भोग लगता है, जानें शीतला सप्तमी 2024 की डेट, पूजा मुहूर्त और महत्व
शीतला सप्तमी मुहूर्त
इस साल आज यानी की 1 अप्रैल 2024 को शीलता सप्तमी का व्रत किया जा रहा है। व्रत करने वालों के घर इस दिन चूल्हा नहीं जलता है। बल्कि शीतला सप्तमी के एक दिन पहले तमाम तरह के पकवान जैसे- रबड़ी, दही, हलवा-पूरी और चावल आदि बनाकर मां को भोग लगाया जाता है। पंचांग के मुताबिक 31 मार्च 2024 को रात 09.30 मिनट पर चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि शुरू होगी। वहीं अगले दिन 01 अप्रैल 2024 को रात 09:09 मिनट पर इस तिथि की समाप्ति होगी।
शीतला पूजा- सुबह 06.11 – शाम 06.39 मिनट
शीतला सप्तमी महत्व
चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि पर मां दुर्गा के शीतला स्वरूप की पूजा की जाती है। जो भी जातक इस व्रत को करता है, उसे आरोग्यता का वरदान प्राप्त होता है। स्कंदपुराण के अनुसार, शीतलाष्टक स्त्रोत की रचना स्वयं महादेव ने की थी। मां शीतला बच्चों की गंभीर बीमारियों से रक्षा कर उन्हें शीतलता प्रदान करती हैं। इस दिन पूजा में गुलगुले अर्पित किए जाते हैं। फिर अगले दिन यानी की अष्टमी तिथि को बच्चों के ऊपर से वही गुलगुले वार कर कुत्तों को खिलाया जाता है। ऐसा करने से बच्चों के ऊपर आए सारे संकट दूर होते हैं।
मां शीतला का स्वरूप
स्कंद पुराण के मुताबिक मां शीतला का स्वरूप अनूठा है। मां का वाहन गधा है और वह अपने हाथ के कलश में शीतल पेय, रोगानुनाशक जल और दाल के दाने रखती हैं। वहीं मां शीतला के दूसरे हाथ में झाड़ू और नीम के पत्ते रहते हैं।