अश्वत्थामा
जहां कुछ चिरंजीवी को अमरता का वरदान मिला, तो कुछ श्राप के कारण अमर हो गए। इस लिस्ट में गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा का नाम शामिल है। महाभारत युद्ध के दौरान पिता द्रोणाचार्य की मृत्यु का बदला लेने के लिए अश्वत्थामा ने अनीति का रास्ता अपनाया। अश्वत्थामा ने पांडवों के पुत्रों का निद्रा में वध कर दिया। तब भगवान श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा को क्रोधित होते हुए श्राप दिया कि पृथ्वी के अंत तक घावों से लथपथ शरीर लेकर अश्वत्थामा भटकता रहेगा और उसकी कभी मृत्यु नहीं होगी। श्रीकृष्ण के श्राप के कारण आज भी अश्वत्थामा पृथ्वी पर भटक रहा है।
राजा बलि
प्रह्लाद भगवान श्रीहरि विष्णु के परम भक्त थे और राजा बलि प्रह्लाद का वंशज है। जब श्रीहरि वामन रूप धारण कर राजा बलि की परीक्षा लेने आए, तो बलि ने भगवान वामन को अपना सबकुछ दान कर दिया था। राजा बलि से प्रसन्न होकर भगवान श्रीहरि ने उनको अमरता का वरदान दिया। माना जाता है कि राजा बलि आज भी पाताल लोक में वास कर रहे हैं।
विभीषण
विभीषण लंकापति रावण का सबसे छोटा भाई था। विभीषण को भी अमरता का वरदान प्राप्त था और यह वरदान स्वयं श्रीराम ने दिया था। बताया जाता है कि रावण के वध के बाद श्रीराम ने विभीषण को सोने की लंका सौंप दी थी और साथ ही अमरत्व का वरदान दिया था। वर्तमान में भी विभीषण पृथ्वी लोक पर मौजूद हैं।
परशुराम
परशुराम भगवान शिव के परभक्त थे। साथ ही वह भगवान विष्णु के 10वें अवतार माने जाते हैं। परशुराम हमेशा तपस्या में लीन रहते थे। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर स्वयं महादेव ने परशुराम को अमरता का वरदान दिया था। वहीं महाभारत और रामायण दोनों में ही परशुराम का उल्लेख मिलता है दें कि कृपाचार्य पांडवों और कौरवों के गुरु हैं। महाभारत के युद्ध में कौरवों की तरफ से ऋषि कृपाचार्य ने सक्रिय भूमिका निभाई थी। कृपाचार्य का नाम परम तपस्वी ऋषियों में शामिल हैं। कृपाचार्य के तप की वजह से उन्हें अमरता का वरदान मिला था।
वेदव्यास
महर्षि वेदव्यास ने चारों वेद ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद के रचनाकार हैं। महर्षि वेदव्यास ऋषि पराशर और सत्यवती के पुत्र हैं। उन्होंने 18 पुराणों की भी रचना की है। वेद व्यास द्वारा महाभारत की रचना की गई। इनको भी अमरता का वरदान प्राप्त है।
ऋषि मार्कंडेय
ऋषि मार्कंडेय 8 चिरंजीवियों में शामिल हैं। वह भगवान भोलेनाथ के बहुत बड़े भक्त थे। ऋषि मार्कंडेय ने शिव के अत्यंत शक्तिशाली महामृत्यंज्य मंत्र की रचना भी की थी। हांलाकि वह अल्पायु लेकर जन्मे थे। लेकिन स्वयं भगवान शिव यमराज से उनके प्राणों की रक्षा करने के लिए अवतरित हुए। भगवान शिव ने ऋषि मार्कंडेय को अमरता का वरदान दिया था।
अष्ट चिरंजीवी के बारे में तो आप सभी ने सुना होगा। चिरंजीवी उन्हें कहा जाता है, जो अमर होता है यानी की उनका कभी अंत नहीं होता है। वहीं हिंदू पौराणिक कथाओं के मुताबिक पृथ्वी पर एक-दो नहीं बल्कि 8 चिरंजीवी मौजूद हैं। जिनका कभी अंत नहीं होगा और इनमें से कुछ को अमरता का वरदान प्राप्त है। तो वहीं कुछ श्राप के कारण अमर हो गए। ऐसे में आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको इन 8 चिरंजीवी के बारे में बताने जा रहे हैं।
हनुमान जी
माता सीता द्वारा हनुमान जी को अमरता का वरदान मिला है। जब प्रभु श्रीराम का संदेश लेकर हनुमान मां सीता के पास अशोक वाटिका पहुंचे। तो मां सीता हनुमानजी की भक्ति व श्रीराम के प्रति समर्पण देख अति प्रसन्न हुईं। जिसके बाद सीताजी ने हनुमान को अमरता का वरदान दिया। मान्यता के अनुसार, आज भी हनुमान जी पृथ्वी पर वास करते हैं और प्रभु श्रीराम की भक्ति में लीन हैं।
अश्वत्थामा
जहां कुछ चिरंजीवी को अमरता का वरदान मिला, तो कुछ श्राप के कारण अमर हो गए। इस लिस्ट में गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा का नाम शामिल है। महाभारत युद्ध के दौरान पिता द्रोणाचार्य की मृत्यु का बदला लेने के लिए अश्वत्थामा ने अनीति का रास्ता अपनाया। अश्वत्थामा ने पांडवों के पुत्रों का निद्रा में वध कर दिया। तब भगवान श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा को क्रोधित होते हुए श्राप दिया कि पृथ्वी के अंत तक घावों से लथपथ शरीर लेकर अश्वत्थामा भटकता रहेगा और उसकी कभी मृत्यु नहीं होगी। श्रीकृष्ण के श्राप के कारण आज भी अश्वत्थामा पृथ्वी पर भटक रहा है।
राजा बलि
प्रह्लाद भगवान श्रीहरि विष्णु के परम भक्त थे और राजा बलि प्रह्लाद का वंशज है। जब श्रीहरि वामन रूप धारण कर राजा बलि की परीक्षा लेने आए, तो बलि ने भगवान वामन को अपना सबकुछ दान कर दिया था। राजा बलि से प्रसन्न होकर भगवान श्रीहरि ने उनको अमरता का वरदान दिया। माना जाता है कि राजा बलि आज भी पाताल लोक में वास कर रहे हैं।
विभीषण
विभीषण लंकापति रावण का सबसे छोटा भाई था। विभीषण को भी अमरता का वरदान प्राप्त था और यह वरदान स्वयं श्रीराम ने दिया था। बताया जाता है कि रावण के वध के बाद श्रीराम ने विभीषण को सोने की लंका सौंप दी थी और साथ ही अमरत्व का वरदान दिया था। वर्तमान में भी विभीषण पृथ्वी लोक पर मौजूद हैं।
परशुराम
परशुराम भगवान शिव के परभक्त थे। साथ ही वह भगवान विष्णु के 10वें अवतार माने जाते हैं। परशुराम हमेशा तपस्या में लीन रहते थे। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर स्वयं महादेव ने परशुराम को अमरता का वरदान दिया था। वहीं महाभारत और रामायण दोनों में ही परशुराम का उल्लेख मिलता है।
कृपाचार्य
बता दें कि कृपाचार्य पांडवों और कौरवों के गुरु हैं। महाभारत के युद्ध में कौरवों की तरफ से ऋषि कृपाचार्य ने सक्रिय भूमिका निभाई थी। कृपाचार्य का नाम परम तपस्वी ऋषियों में शामिल हैं। कृपाचार्य के तप की वजह से उन्हें अमरता का वरदान मिला था।
वेदव्यास
महर्षि वेदव्यास ने चारों वेद ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद के रचनाकार हैं। महर्षि वेदव्यास ऋषि पराशर और सत्यवती के पुत्र हैं। उन्होंने 18 पुराणों की भी रचना की है। वेद व्यास द्वारा महाभारत की रचना की गई। इनको भी अमरता का वरदान प्राप्त है।
ऋषि मार्कंडेय
ऋषि मार्कंडेय 8 चिरंजीवियों में शामिल हैं। वह भगवान भोलेनाथ के बहुत बड़े भक्त थे। ऋषि मार्कंडेय ने शिव के अत्यंत शक्तिशाली महामृत्यंज्य मंत्र की रचना भी की थी। हांलाकि वह अल्पायु लेकर जन्मे थे। लेकिन स्वयं भगवान शिव यमराज से उनके प्राणों की रक्षा करने के लिए अवतरित हुए। भगवान शिव ने ऋषि मार्कंडेय को अमरता का वरदान दिया था।