हम क़ानून को मानने वाले, व्यास तहख़ाने में पूजा कोर्ट के आदेश पर: केशव प्रसाद मौर्य

लखनऊ।  श्री गुरु वशिष्ठ न्यास द्वारा आयोजित दो दिवसीय परिचर्चा के उद्घाटन अवसर पर बोलते हुए प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि श्री गुरु वशिष्ठ जी के शिष्य भगवान श्री राम जी 500 वर्षों के प्रयासों के बाद पूरी मर्यादा के साथ अपने धाम में प्राण प्रतिष्ठित हुए हैं। यह हम सबके लिए गौरव की बात है। 22 जनवरी को जब प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने अयोध्या में भव्य राम मंदिर में भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा की तो मन प्रफुल्लित हुआ कि, जिस आंदोलन के लिए लाखों कारसेवकों ने अपना सर्वस्व न्योछावर करने का संकल्प लिया था, सैकड़ों ने अपने प्राणों का भी बलिदान दिया वह सफल हुआ।

उन्होंने कहा कि अब महादेव की नगरी काशी में भी हर हर महादेव हो रहा है। साज़िश के तहत 1993 में मुलायम सिंह यादव की सरकार ने जिस प्रकार ज्ञानवापी स्थित व्यास जी के तहख़ाने में पूजा अर्चना बंद कराई थी उसे काशी के ही नहीं देशभर के लोग परिचित हैं। उन्होंने कहा कि 2017 में हमारी सरकार बनी तो हम भी पूजा शुरू करवा सकते थे लेकिन, हमने मर्यादा का पालन किया। शिवभक्तों ने भी संयम दिखाया न्यायालय की शरण में गये वहाँ से आदेश लेकर आये और अपने महादेव की पूजा अर्चना शुरू की। इससे हमारा ही नहीं सनातन धर्म में आस्था रखने वाले विश्व के सभी लोगों को एक समान आनंद की प्राप्ति हुई।

उन्होंने यह भी कहा कि आज भारत प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में अपने गौरव को पुनः प्रतिस्थापित कर रहा है। हर भारतीय इससे आह्लादित है। पूरी दुनिया में हमारी साख भी निरंतर बढ़ रही है। आज हम ग्लोबल लीडर के रूप में अपनी छाप छोड़ रहे हैं। कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में न्यास के अध्यक्ष प्रमोद मिश्र ने न्यास के बारे में जानकारी दी और कार्यक्रम की रूप रेखा से अवगत कराया। इस अवसर पर विधान परिषद सदस्य और भारतीय जानता पार्टी के प्रदेश महामंत्री श्री गोविंद नारायण शुक्ल और वरिष्ठ पत्रकार हर्ष वर्धन त्रिपाठी, न्यास के सचिव शैलेंद्र जायसवाल, न्यासी पुनीत श्रीवास्तव, पंकज पाठक, अनुराग तिवारी, सौरभ राय, अनुराग त्रिपाठी, मानस भूषण, अनुरंजन समेत अन्य उपस्थित रहे।

भारत यूनियन ऑफ़ स्टेट्स नहीं, भौगोलिक और सांस्कृतिक भूभाग- आनंद रंगनाथन

कार्यक्रम के प्रथम सत्र भारतीय यत्र संतति में बोलते हुए जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर आनंद रंगनाथन ने कहा कि भारत 1947 में नहीं बना बल्कि यह हज़ारों वर्षों पहले ही बनी सांस्कृतिक और भौगोलिक संरचना है। इसका वर्णन वेदों और पुराणों में भी मिलता है। जो यह मानते हैं कि भारत 1947 में बना वह दोबारा इसके 600 टुकड़े करना चाहते हैं। आज भले ही लौह पुरुष नहीं हैं लेकिन उनके मानने वाले छोटे सरदार भारत का नेतृत्व कर रहे हैं।
उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा कि अभी विपक्ष के नेता राहुल गांधी हैं जो 2047 तक विपक्ष के नेता बने रहेंगे। उनके नेतृत्व में लोग बँटवारे की राजनीति करते रहेंगे। उन्होंने कहा कि उनके दल के ही सांसद उत्तर और दक्षिण में भारत को बाँटने का प्रयास लगातार कर रहे हैं। इन्होंने तो राम को भी नहीं बख्शा जबकि यह सत्य और प्रामाणिक बात है कि राम के नाम पर उत्तर से ज़्यादा स्थान या उनके नाम दक्षिण भारत में हैं। राम तो भारत के कण कण में व्याप्त हैं।

उन्होंने कहा कि राम उत्तर को दक्षिण और पूरब से पश्चिम यानी पूरे भारत को जोड़ते हैं। उन्होंने कहा कि भारत के मंदिर देश को जोड़ते हैं। यह सामाजिक चेतना के केंद्र बिंदु हैं, वे आर्थिक उपागम के केंद्र बिंदु हैं, वे सुरक्षा के केंद्र बिंदु हैं। इसलिए आक्रांताओं ने पहले मंदिर तोड़े और उनकी मर्यादा को भंग किया। आप विश्वास नहीं करेंगे भारत में पेरिस से चार गुना ज़्यादा विदेशी यात्री आते हैं। देश में 165 करोड़ टूरिस्ट ट्रिप्स लगते हैं। यह केवल सनातन और हिंदू धर्म के नाते हैं। उन्होंने सरकारों द्वारा हिंदू मंदिरों को नियंत्रित किए जाने के निर्णयों की आलोचना करते हुए कहा कि हिंदू मंदिरों के दान के पैसे से मस्जिदों और चर्चों की व्यवस्थाएँ नहीं चलाई जानी चाहिए। उन्होंने ख़ुशी भी ज़ाहिर की कि अयोध्या का राम मंदिर इस नियंत्रण से मुक्त है। वरिष्ठ विचारक और लेखक अनी गनात्रा ने कहा कि हम भारतीयों को वैचारिक और बौद्धिक रूप से हतोत्साहित करने की कोशिश की गई। हमारी पहचान को मिटाने की बहुत कोशिश की गई लेकिन, यह मिटने वाली नहीं है। हम सनातन को मानने वाले लोग हैं हज़ारों वर्षों से तमाम झंझावातों के बाद भी अपनी संस्कृति और विचार को आगे ले जा रहे हैं।

उन्होंने कहा कि महाभारत के युद्ध में पूर्वोत्तर भारत से लेकर गांधार और उत्तर से लेकर दक्षिण के लोगों ने भाग लिया। अर्जुन का विवाह मणिपुर में हुआ, दुर्योधन का विवाह कलिंग में हुआ था। उत्तर से लेकर दक्षिण तक लोगों के वैवाहिक और राजनीतिक संबंध रहे। इसी लिये इसे महाभारत कहा गया क्योंकि पूरे भारत के लोग यहाँ जुड़े रहे। इसलिए कोई यह कहे कि भारत यूनियन ऑफ़ स्टेट्स नहीं बल्कि यह अपने में एक पूरा राष्ट्र है।

हिंदू मंदिरों पर मशहूर पुस्तकें लिखने वाले लेखक श्री पंकज सक्सेना ने कहा कि देश में अलग अलग संस्कृतियाँ और बोली भाषाएँ हैं लेकिन सनातन धर्म के मंदिर पूरे भारत को एक साथ जोड़ते हैं। केरल में तो भगवान राम के ही नहीं लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के भी मन्दिर हैं। हालाँकि लोकाचार के अनुसार नियमन अलग अलग हो सकते हैं लेकिन सनातन धर्म के देव पूरे देश को एकाकार करते हैं। जैसे उत्तर भारत में हम स्पर्श दर्शन को ही पूर्ण दर्शन मानते हैं, वहीं दक्षिण में हम गर्भगृह में नहीं जा सकते इसके बावजूद पूरे भारत के मंदिर एक भारत श्रेष्ठ भारत के सिद्धांत को प्रतिपादित करते हैं।

दूसरा सत्र -यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता

दूसरे सत्र यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता सत्र का संचालन टीवी प्रजेंटर ऋचा अनिरुद्ध ने किया। सत्र में बोलते हुए वरिष्ठ पत्रकार और विचारक श्रीमती स्वाति गोयल शर्मा ने कहा कि फ़िल्मों ने इस समाज का काफ़ी नुक़सान किया और महिलाओं को अपमानित किया। शाहरुख़ ख़ान का करियर फ़िल्मों में लड़कियों से छेड़खानी करने वाला ही चरित्र अभिनीत करते रहे हैं। बालाजी टेलिफ़िल्म्स के भी कई ऐसे डेली सोप्स हैं जिन्हें आप परिवार के साथ देख ही नहीं सकती। सिनेमा और सिनेमा घर छेड़छाड़ के सबसे बढ़े गढ़ बनकर उभरे हैं। हमारे मंदिरों और धर्म को बेवजह महिलाओं की दयनीय स्थिति के लिए ज़िम्मेदार बनाया गया।

उन्होंने कहा कि समाज में कुरीतियों या समाज के ही धर्म से भटक जाने के कारण दिक़्क़तें आई। लव जिहाद के मामलों में भी एक वर्ग विशेष या धर्म के लोगों द्वारा लगातार हिन्दू महिलाओं को उनके धर्म के बारे में ख़राब बातें बताई गईं। सिनेमा द्वारा भी जो कम्युनिष्ट साहित्य से प्रभावित है द्वारा धर्म में महिलाओं को अपमानित करने के विशेष प्रयास किए गए। लेखक और ओपिनियन मेकर श्रीमती शेफाली वैद्य ने कहा कि मुग़ल और ब्रिटिश औपनिवेशवाद के कारण हमारे समाज को हमेशा बदनाम करने की कोशिश की गई। महिलाएँ वेद नहीं पढ़ सकती, पाठशाला नहीं जा सकती हैं, समाज का नेतृत्व नहीं कर सकती हैं और भी तमाम ऐसे प्रपंच फैलाये गये। यह केवल और केवल अपनी सांस्कृतिक विरासत को तोड़ने का कुत्सित प्रयास भर है। “सती सावित्री बनकर फिर रही है” यह ताना अक्सर लड़कियों को मारा जाता है। आज के दौर में यह एक गाली है लेकिन सावित्री तो महिलाओं के लिए सबसे प्रेरक पात्र हैं। सावित्री ने यमराज से लड़कर अपने पति का जीवन वापस पाया। उसने अनुनय विनय नहीं किया था अपने तर्कों से उन्हें मजबूर किया कि वे उसके पति को जीवन का दान दें। सावित्री हमारे लिए नायक हैं। लेकिन साज़िश के तहत

उन्होंने कहा कि हमारी ऐड इंडस्ट्री में भी हिंदू प्रतीकों को हतोत्साहित किया गया है। 10 साल पहले तक दीपावली हिंदू त्योहार है ऐसा प्रचारित करके दिखाया जाता था। बाद में धीरे धीरे हिंदू प्रतीक हटा दिये गये और यह त्योहार केवल गिफ़्टिंग का पर्व बन गया। महिलाओं की बिंदी तक ग़ायब कर दी गई और पहनावा भी चकित करने वाला हो गया। जबकि इनके सबसे बड़े ग्राहक हिंदू ही हैं। हमें भी इसे ध्यान देना चाहिए।

संघ विचारक और संस्कृत विद्वान डॉ. विवेक कौशिक

ने कहा कि नासमझी में या जानबूझकर मनु स्मृति, पुराणों और वेदों में स्त्रियों की दशा को दयनीय बताया गया है। उन्होंने बताया कि यह केवल और केवल संस्कृत को ठीक से ना जानने के कारण है। केवल शाब्दिक अर्थ निकालकर अर्थ का अनर्थ किया गया। जबकि वास्तव में ऐसा नहीं था। हमारे यहाँ तो नाम भी बहुत चुनकर रखे जाते हैं। राम का ही अर्थ ऐसा है कि जो योगियों को भी रमा ले और कृष्ण का अर्थ है जो सबमें अपने प्रति आकर्षण उत्पन्न कर दे। युधिष्ठिर का अर्थ केवल पाण्डवों में सबसे बड़ा नहीं बल्कि जो कि अडिग है और स्थिर है यानी कि पर्वतराज हिमालय है। इसलिए बहुत से श्लोकों का ग़लत अर्थ निकालकर स्त्रियों को अपमानित किया गया।

उन्होंने कहा कि ऋग्वेद में उल्लेख है स्त्री को पहले यह अधिकार था कि वह अपनी रुचि के अनुसार अपने वर का चयन करे। ऋग्वेद में ही विधवा और पुनर्विवाह का उल्लेख है। निरुक्त में महर्षि यास्क ने भी कहा है कि स्त्री अपनी रुचि के अनुरूप पुनर्विवाह कर सकती है। हमारे शास्त्रों में केवल पुत्रेष्टि यज्ञ ही नहीं बल्कि पुत्री की भी इच्छा के लिए भी यज्ञ किए जाने का विधान है। निघंटु में इसका वर्णन है। ऋग्वेद में संतान को प्रजा के अर्थ में लिया गया है। कई स्थानों पर पुत्र और पुत्री दोनों की ही बात आई है। ऋग्वेद में ही बात आई है कि मेरा पुत्र शत्रुओं का हनन करने वाला हो लेकिन मेरी पुत्री विराट शत्रुओं का भी हनन करे। यहाँ कन्या संतति को बढ़ाने की भी बात आई है। कुरीतियों के कारण कालांतर में यह विकृति आई है। संस्कृत ग्रंथों का सही भाष्य नहीं होने से या जानबूझकर हिंदू ग्रंथों को स्त्रियों को अपमानित करने वाला बताया गया है। जबकि ऐसा नहीं है।

मोदी की टीआरपी है इसलिए चैनल दिखाते हैं, कोई गोदी मीडिया नहीं है- अशोक श्रीवास्तव

वरिष्ठ पत्रकार अशोक श्रीवास्तव ने कहा कि मुझे तो सबसे पहले सेंसर किया गया था जब मैंने मुख्यमंत्री रहते नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू किया था लेकिन वह प्रसारित ही नहीं हुआ। हालाँकि यह पुरानी बात हो गई है। आज का दौर पत्रकारिता के लिहाज़ से बेहतर है। हमारी जवाबदेही जनता के प्रति है। हालाँकि विपक्ष या नेताओं ने पत्रकारों को अपनी सहूलियत के हिसाब से अपने पाले में रख लिया है या बाहर कर दिया है। लेकिन आज माहौल बदल चुका है। जब कभी टीवी पर एंकरिंग में हाथ का कलावा भी नहीं दिख सकता था। आज ऐसा प्रतिबंध नहीं है क्योंकि अब जनता ने नैरेटिव बदल दिया है। मोदी टीआरपी मटेरियल हैं इसलिए टीवी पर खूब दिखाई पड़ते हैं। वह कथित गोदी मीडिया के कारण नहीं है।
वरिष्ठ पत्रकार राजकिशोर ने कहा कि आज के दौर में सब ब्रॉडकास्टर हैं। हालाँकि पत्रकारों के मामले में बहुत से ऐसे हैं जो सुविधा के अनुसार पत्रकारिता करते हैं। सवाल अपनी सहूलियत के अनुसार सवाल पूछते हैं या अपना काम करते हैं। पहले यह काम आज नहीं पहले भी होता रहा है। हालाँकि बहुत से ऐसे लोग भी हैं जिनकी मिसाल दी जा सकती है उन्होंने अपने उसूलों से समझौता नहीं किया।
उन्होंने कहा कि पत्रकार का केवल काम आईना दिखाना नहीं है। वो हेयर ड्रेसर नहीं है, हालाँकि वह भी एक अच्छा काम है। पत्रकार का काम ओपिनियन मेकर भी है। आज सूचना क्रांति का दौर है आज नये ओपिनियन मेकर्स हैं। ये छोटे शहरों, गाँवों और अंचलों से निकले हैं जिन्होंने अब लोगों के सोचने का नज़रिया बदला है। अब यूजर जनरेटेड कंटेंट का दौर है, आज मठाधीशी टूट गई है। बहियों के क़िले भी ढह गए हैं। सच को सच कहने का साहस तो करना ही पड़ेगा।

वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप भंडारी ने कहा कि आज जमाना टैलेंट का है। पहले के दौर में लॉबी के हिसाब से काम करना पड़ता था। अब उन्हें किसी लॉबी की जी हुज़ूरी नहीं करनी पड़ती। वह यूट्यूब पर भी बड़े पत्रकारों से ज़्यादा पॉपुलर हो चले हैं। आज दोतरफ़ा संवाद हो रहा है। स्रोता को यदि बात ख़राब लगेगी तो वो सोशल मीडिया पर उसके बारे में टिप्पणी भी करता है।

कहा कि पहले नैरटिव कंट्रोल किए जाते थे। अब ऐसी स्थिति नहीं है, नैरेटिव धोखा देने वाला है तो उसका खुलासा हो जाता है। सबको पता है कि 90 के दशक में कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के अत्याचार के नैरेटिव को नियंत्रित किया गया। 20 साल तक किसी को यह कहने की हिम्मत नहीं हुई कि वह नरसंहार आतंकवाद नहीं था। कहा कि आज नैरेटिव गैंग का काम ख़त्म हो गया है, अब उनकी दाल नहीं गल रही है।

वरिष्ठ पत्रकार प्रखर श्रीवास्तव ने कहा कि 2014 के पहले 26/11 की कवरेज के दौरान देश की सुरक्षा से भी खिलवाड़ की गई। बाटला हाउस एनकाउंटर के दौरान उसे फ़ेक बताने का नैरेटिव गढ़ा गया। राष्ट्रीय हितों के साथ समझौता करने जैसी स्थितियां भी बनी। उन्होंने कहा कि तुष्टिकरण की राजनीति के चलते एंटी इंडिया नैरेटिव भी गढ़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई। सेल्यूलर मीडिया के नाम पर एक ख़ास वर्ग को खुश करने वाली बातें ही होती थीं। आज यह बिलकुल ख़त्म हो गया है। इसलिए बँटवारा साफ़ दिखता है। राजनीतिक विश्लेषक राजीव रंजन ने कहा कि मीडिया पर सेन्सरशिप 2014 के पहले ज़्यादा थी। इमर्जेंसी, अयोध्या में विवादित ढाँचे के ध्वंस से पहले के समय भी इस सेन्सरशिप को सबने देखा है।

गांधी जी की हत्या में गोडसे मोहरा, गोली चलाने वाले दूसरे: रंजीत सावरकर

स्वातंत्र्य वीर सावरकर के पौत्र और लेखक रंजीत सावरकर ने कहा कि संगीत में नौ रस होते हैं दसवाँ रस देशभक्ति है यह सावरकर ने बताया है। उन्होंने हाल ही में आई अपनी पुस्तक Make sure Gandhi is dead का उल्लेख करते हुए कहा कि संभवतः गांधी जी की हत्या में नाथूराम मोहरा रहे हों, क्योंकि उस समय के फ़ोरेंसिक साक्ष्य यह प्रदर्शित करते हैं कि उनकी हत्या में चली गोली गोडसे के हाथ से नहीं बल्कि किसी अन्य का हाथ हो सकता है। इसके प्रामाणिक साक्ष्य उपलब्ध हैं, इसे देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हिंदू समाज में छूआछूत के उन्मूलन पर गंभीरता से आंदोलन रत्नागिरी जेल में बंद रहने के दौरान ही सावरकर द्वारा ही शुरू किया गया। उन्होंने समाज की एकता और अखंडता पर ज़ोर दिया था। उन्होंने यह कहा था कि भारत में रहने वाले या समान सांस्कृतिक पृष्ठभूमि वाले सभी हिंदू हैं। उन्होंने कहा कि जब वे लंदन में थे तो उन्हें इस बात की चिंता रहती थी कि दूसरे मेरे भाई भारत के लिए लड़ाई कर रहे हैं। वे विवेकानंद से प्रेरित थे, वे संन्यास लेने वाले थे लेकिन उन्होंने देश के लिए लड़ाई लड़ने का संकल्प लिया। उन्होंने कहा कि किसी देश की आजादी की लड़ाई बिना युद्ध के संभव नहीं है। इसलिए उन्होंने क्रांति का रास्ता चुना।

प्रख्यात लेखक और पत्रकार प्रखर श्रीवास्तव ने कहा कि वीर सावरकर के साथ भारत के वामपंथी इतिहासकारों ने न्याय नहीं किया। उनकी देशभक्ति पर भी सवाल उठाये गये। आज भारत की जो सेना विश्व में मज़बूत सेनाओं में से एक है वह सावरकर की ही सोच की देन है। उन्होंने सेना में बड़े पैमाने पर भारतीयों के लिए युवाओं को प्रोत्साहित किया। डॉ भीमराव अंबेडकर और सुभाषचंद्र बोस ने भी इसका समर्थन किया था। उनकी दूरदृष्टि ही थी कि आजादी के बाद भारत पर पाकिस्तान के हमलों से देश आसानी से निपट सका। जबकि इसके उलट वामपंथी साहित्यकार उनकी इस नीति पर उनकी आलोचना करते हैं। उन्होंने कहा कि तुष्टिकरण के नाम पर वीर सावरकर को आज़ादी से पहले और बाद भी प्रताड़ना दी गई। इसके बाद भी मन नहीं भरा तो उन्हें बारंबार अपमानित करने का प्रयास लगातार किया गया।

लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रो. सौरभ मालवीय ने कहा कि कोई ऐसा व्यक्ति जिसे दो- दो आजीवन कारावास हुआ हो। कालापनी की सजा हुई हो उसके ख़िलाफ़ नैरेटिव गढ़ा गया। उन्हें हिंदू समर्थक और मुस्लिम विरोधी बताया गया। उन्हें आभास था कि भारत को आज़ादी मिलने वाली है, उन्होंने पहले ही माँग की थी कि हमें हमारी आज़ादी भारतीय मूल्यों पर आधारित होनी चाहिए। उन्होंने लंदन में ही गंगा, गाय और गीता पर आधारित भारतीय सांस्कृतिक शक्ति की कल्पना पहले ही की थी। उन्होंने खंडित भारत नहीं बल्कि अखंड भारत की आजादी की कल्पना की थी। सावरकर व्यक्ति नहीं विचार हैं। जिन्होंने आज़ाद भारत केंद्र बिंदु में भारतीय मूल्य हों इसकी कल्पना को साकार करने का प्रयास किया। वे राष्ट्रीयता के पोषक थे इसलिए उन्हें कुत्सित राजनीति के तहत खलनायक बनाया गया।

श्री गुरु वशिष्ठ न्यास के अध्यक्ष प्रमोद मिश्रा ने कहा कि सावरकर को भुलाया गया लेकिन विरोध करने वालों को इंदिरा गांधी को याद रखना चाहिए जिन्होंने वीर सावरकर की देशभक्ति की प्रशंसा की थी। बौद्धिक विलासियों ने सावरकर के योगदान को जितना भी झुठलाने की कोशिश की वह उतनी ही प्रखरता से लोगों के बीच प्रचारित हुआ।

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