इंडिया गंठबंधन के फैसले को इनके नेता और प्रवक्ता ही मुंह चिढ़ा रहे हैं। जिन चौदह टीवी एंकर्स की डिबेट में ना जाने का फैसला किया गया कांग्रेस और सपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता उन एंकर्स की टीवी डिबेट में शामिल होकर नाफरमानी करते दिख रहे हैं। आदेश का उल्लंघन फरमान जारी होने के पहले दिन से होने लगा। आजतक न्यूज चैनल की एंकर चित्रा त्रिपाठी की डिबेट में ना जाने के आदेश को ठेंगा दिखाते हुए सपा प्रवक्ता और नेता अनुराग भदौरिया चित्रा के प्राइम टाइम डिबेट में पंहुच गए। इसपर सोशल मीडिया में वो ट्रोल भी हुए, लोगों ने लिखा कि भदौरिया की छपास (टीवी पर नजर आने) की बीमारी इतनी बड़ी है कि इस विकराल रोग के आगे गठबंधन के शीर्ष फैसले का बल्ब फ्यूज हो गया।
ऐसी ट्रोलिंग हो ही रही थी कि रविवार को न्यूज 18 के बहिष्कृत एंकर अमीश देवगन के टीवी डिबेट में कांग्रेस नेता संजय निरुपम पंहुच गए।
अब तक गठबंधन ने इन नेताओं के खिलाफ गठबंधन की तरफ से किसी भी प्रकार की कोई अनुशासनात्मक कार्यवाही की ख़बर नहीं आई।
दूसरी तरफ इस बात पर भी आश्चर्य किया जा रहा है की जिन टीवी एंकर्स के डिबेट शो में जाने से मनाही का फरमान इतनी चर्चा का विषय बना रहा उन एंकर्स की डिबेट्स के गेस्ट कॉर्डिनेटर ने इंडिया गंठबंधन के प्रवक्ताओं को आमंत्रित ही क्यों किया ! लोग सोशल मीडिया पर ये भी लिख रहे है कि इन एंकर्स और टीवी चैनलों को अपने मान-सम्मान का ज़रा भी ख्याल नहीं ?
जबकि बहिष्कार के फैसले का निहितार्थ यही है कि ये एंकर्स अपने शो में सत्तालोलुपता में सरकार की कमियों पर सवाल उठाने के बजाय विपक्ष को घेरने का एकमात्र एजेंडा चलाते हैं। इनका हर शब्द भाजपा प्रवक्ताओं की भूमिका निभाता है। जनता की आवाज बनने के बजाय ये सरकार की झूठी तारीफें करते हैं। मंहगाई और बेरोजगारी की फिक्र के बजाय ये एंकर पत्रकारिता के सिद्धांतों के विरुद्ध सत्ता की चाटुकारिता की पराकाष्ठा में विपक्षी खेमें के प्रवक्ताओं का अपमान करते हैं। उन्हें अपनी बात रखने या सवालों का जवाब देने का मौका नहीं देते। कभी कभी तो विपक्ष के मेहमान प्रवक्ताओं का माइक बंद कर उनका अपमान किया जाता है। बहिष्कृत एंकर्स पर ये भी आरोप हैं कि इनके नब्बे फीसद से अधिक डिबेट शो नफरत फैलाने का काम करते हैं। देश की जनता की समस्याओं, रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा, कानून व्यवस्था जैसे बुनियादी विषयों के बजाय हिन्दू-मुसलमान, पाकिस्तान, मंदिर-मस्जिद के मुद्दों के जरिए नफरत की आग फैलाने के पॉलिटिकल एजेंडे को चलाया जाता है।
ऐसे गंभीर आरोपों से जिन एंकर्स को घेर कर जिनका बहिष्कार किया है इन्हीं एंकर्स के शो में कांग्रेस-समाजवादी पार्टी के नेता-प्रवक्ता शामिल हो रहे हैं। ऐसे में सवाल उठने लगे है कि प्रवक्ता संभल नहीं रहे तो इतना बड़ा कुनबा कैसे संभालेगा इंडिया गंठबंधन !
अपने कुनबे को संभालना और क़ाबू में रखना ही किसी भी गठबंधन की ताकत होती है। आदेशों का पालन और अनुशासन सफल नेतृत्व की पहचान है। विपक्षियों के नवगठित इंडिया गठबंधन अपने घटक दलों के कुनबे को कितना काबू में रख सकेगा और कितना अनुशासन दिखेगा ये समय बताएगा, किंतु पूत के पांव पालने में नजर आने लगे हैं। देश के कुछ टीवी न्यूज़ चैनलों के चौदह एंकर्स की डिबेट में ना जाने का इंडिया गठबंधन का फरमान चर्चा में रहा। ये बात सही है कि राजनीति को चर्चा रास आती है और यही सफलता का रास्ता तय करती है। इस नजरिए से बॉयकाट का शगूफा एक तीर से कई शिकार करने वाला कहा जा सकता है।
मीडिया से जुड़ा मामला था इसलिए मीडिया और सोशल मीडिया पर ये मुद्दा छाया रहा। किसी ने इसे सत्तालोलुपता वाली पत्रकारिता के खिलाफ सही क़दम बताया तो कोई इसे मीडिया के सवालों से भागने वाला नकारात्मक फरमान कहने लगा।
इस बीच सपा के अनुराग भदौरिया और कांग्रेस के संजय निरुपम का क्रमशः आजतक की चित्र त्रिपाठी और न्यूज़ 18 के अमीश देवगन के डिबेट शो में शामिल होने का क्या अर्थ है ! पहला आदेश पहले ही दिन से धराशाई होने लगा हो तो इंडिया गठबंधन के आपसी समन्वय , सामंजस्य और अनुशासन का अंदाजा लगा लीजिए ।