गुरुवार को दिल्ली में पेट्रोल के दाम 10 पैसे बढ़कर 82.36 रुपए प्रति लीटर पर पहुंच गए जबकि डीजल की कीमत 27 पैसे बढ़कर 74.62 रुपए पर पहुंच गई. वहीं मुंबई में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में क्रमश: 9 पैसे और 29 पैसे की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक इस बढ़ोतरी से पेट्रोल 87.82 रुपए प्रति लीटर हो गया जबकि डीजल 78.22 रुपए प्रति लीटर पर बिक रहा है. सरकार ने हाल में सरकारी तेल कंपनियों पर डीजल और पेट्रोल का भाव प्रति लीटर एक एक रुपये कम करने की जिम्मेदारी डाली है. सरकार ने खुद एक्साइज ड्यूटी में 1.50 रुपए की कमी की है. इसके साथ ही भाजपा शासित राज्यों ने भी वैट में कटौती कर ढाई रुपये प्रति लीटर की राहत दी. इससे इन राज्यों में ग्राहकों को पेट्रोल, डीजल पर पांच रुपये लीटर की राहत मिली
एटीएफ में सरकार ने 3% की कटौती की
इस बीच सरकार ने विमान ईंधन पर उत्पाद शुल्क में कटौती की है. विमान ईंधन (एटीएफ) पर उत्पाद शुल्क कम कर 11 प्रतिशत कर दिया गया है. ईंधन की ऊंची लागत से प्रभावित विमानन उद्योग को राहत देने के लिय यह कदम उठाया गया है. एटीएफ पर अब तक यह दर 14 प्रतिशत पर थी. वित्त मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले राजस्व विभाग ने अधिसूचना जारी कर कहा कि शुल्क में कटौती 11 अक्टूबर से प्रभाव में आएगी.
कच्चे तेल के दाम में लगातार तेजी जारी
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम में तेजी और रुपये के मूल्य में गिरावट से जेट ईंधन के दाम इस महीने जनवरी 2014 के बाद उच्चतम स्तर पर पहुंच गए. दिल्ली में फिलहाल विमान ईंधन की लागत 74,567 रुपये प्रति किलोलीटर (74.56 रुपये लीटर) और मुंबई में 74,177 रुपये प्रति किलोलीटर है. एटीएफ की कीमत जुलाई से अब तक 9.5 प्रतिशत बढ़ी है. इसमें पिछले साल जुलाई से वृद्धि हो रही है. जुलाई 2018 को छोड़कर इसमें हर महीने बढ़ोतरी हुई. पिछले साल जुलाई में विमान ईंधन 47,013 रुपये प्रति किलोलीटर था. उसके बाद इसमें 58.6 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है.
तेल कंपनियां कम नहीं करेंगी लाभांश
उधर, सरकार ने इस आशंका से इनकार किया है कि पेट्रोलियम ईंधन के दाम करने का बोझ पड़ने से सरकारी तेल विपणन कंपनियां लाभांश वितरण कम करेंगी. वित्त मंत्रालय में आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने ट्वीट कर के कहा कि पेट्रोल-डीजल पर उपभोक्ताओं को दी गई छूट में कटौती की कोई योजना नहीं है. वह ऐसी रपटों पर टिप्पणी कर रहे थे कि वर्तमान परिस्थितियों में तेल विपणन कंपनियां लाभांश कम कर सकती हैं, सरकार को सब्सिडी घटानी पड़ सकती है और विनिवेश से प्राप्ति बजट के लक्ष्य से कम हो सकती है.