प्रसिद्ध फिल्म लेखक और निर्देशक धीरज मिश्रा अब अपने करियर में पहली बार ‘लफ्जों में प्यार’ के साथ एक रोमांटिक फिल्म लेकर आए हैं। निर्देशन में उनका साथ राजा रणदीप गिरी ने भी दिया है। फ़िल्म के पहले दृश्य में गीतकार अशोक साहनी साहिल अपनी कविता की कुछ पंक्तियों पढ़ते हैं, ‘छोटी से ज़िंदगी है यारों आओ भरे, लफ़्ज़ों में प्यार’।
इस शायराना शुरुआत से यह लगता है कि यह फ़िल्म शायद शायरी और गीतों के साथ एक परम्परागत प्रेम कहानी परोसेगी, लेकिन धीरे धीरे जब फ़िल्म आगे बढ़ती है तो यह पता चलता है कि 2 घंटे 11 मिनट में यह कहानी आज के युवा के प्यार के कोमल एहसास को पर्दे पर दर्शाने में सफल रहती है। यह भी नहीँ है कि फ़िल्म केवल रोमांस की बात करती है, बल्कि इसमें ट्विस्ट टर्न भी हैं, इमोशनल ड्रामा भी है, कुछ अच्छी परफॉर्मेंस भी है, कश्मीर की बेहतरीन लोकेशन भी है।
फिल्म की कहानी एक युवा म्युज़िक टीचर राज के प्रेम त्रिकोण पर आधारित है, जिसे अपनी छात्रा प्रिया से प्यार हो जाता है। वह उससे प्रेरित होकर कविता लिखता है, लेकिन हीरो के परिवार के लोग उसकी शादी किसी और लड़की से कराने की योजना बनाते हैं। राज की शिवानी से शादी करवाने की बात होती है। राज अपने पिता के हार्ट अटैक से बहुत चिंतित था और उन्हें तनाव नही देना चाहता था। इस बीच राज का दोस्त मयंक घर वालों को कह देता है कि राज को शिवानी पसन्द आ गई है।
अभिनय
फ़िल्म में विवेक आनंद ने राज की भूमिका बखूबी निभाई है। रोमांटिक सीन से लेकर भावनात्मक दृश्यों तक उन्होंने अपनी छाप छोड़ी है। कंचन राजपूत ने भी अपनी सादगी से प्रभावित किया है। जरीना वहाब ने अपने किरदार के साथ न्याय किया है वहीं अनीता राज अपने सीन्स में उभर कर सामने आईं हैं। प्रिया के साथ फ़िल्म के एक टर्निंग प्वाइंट वाले सीन में अनिता राज ने क्या एक्टिंग की है। इमोशन, ड्रामे और बेहतरीन परफॉर्मेंस से सजा यह दृश्य देखने लायक है। फ़िल्म के बाकी कलाकारों ने भी अपनी भूमिकाओं को अच्छी तरह अदा किया है।
निर्देशन
धीरज मिश्रा और राजा रणदीप गिरी का निर्देशन अच्छा है। एक रोमांटिक फिल्म को बड़ी शिद्दत से बनाया गया है जिसमे मोहब्बत की सादगी भी बरकरार है और कुछ अनूठे दृश्यों का अच्छा तालमेल है। इस निर्देशक जोड़ी ने तमाम आर्टिस्ट्स से बढ़िया अदाकारी करवा ली है।
संगीत
फिल्म का संगीत पक्ष भी मजबूत है। फ़िल्म के रोमांटिक गीत प्रभावित करते हैं। नज़र से नज़र को मिलाकर तो देखो, वाबस्तगी नहीं है रंजो गम से मुझे और बेसुरी मैं नहीं फिर मिलते क्यों नहीं ये सुर हमारे जैसे कई गीत काफी अच्छे हैं।
डायलॉग
फ़िल्म के संवाद अच्छे हैं और कई वनलाइनर्स याद रह जाते हैं। जैसे नजदीकियां रिश्तों को और भी खूबसूरत करती हैं। “ज़िंदगी मे इत्तेफाक तो होते ही रहते हैं.” कोई काम दिल से कैसे किया जाता है इसका एहसास भी तो पहली बार आपने ही दिलाया।”
“हम ज़िंदगी से कुछ और चाहते हैं और जिंदगी हमसे कुछ और…।”
फ़िल्म लफ़्ज़ों में प्यार एक खूबसूरत कोशिश है और यह देखने लायक है। निर्देशन, अभिनय, गीत संगीत, लोकेशन्स और इसके डायलॉग ने फ़िल्म को बहतरीन बना दिया है।
फ़िल्म समीक्षा- लफ्जों में प्यार
- निर्देशक: धीरज मिश्रा, राजा रणदीप गिरी
- निर्माता: अशोक साहनी
- अवधि: 2 घंटे 11 मिनट
- रेटिंग: 3 स्टार्स