नई दिल्ली। अमेरिका लगातार दुनिया के कई देशों के आंखों की किरकिरी बनता जा रहा है। आलम ये है कि ईरान से परमाणु समझौता तोड़ने के बाद वह यूरोपीय देशों की आंखों में खटकने लगा है। खुद जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल इस बात को मानती हैं कि यह डील तोड़कर अमेरिका ने मध्य पूर्व की स्थिति को और बिगाड़ दिया है।
उन्होंने यह बात रूसी राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन से हुई मुलाकात के दौरान कही। दोनों नेताओं के बीच मध्य पूर्व के अन्य देशों की समस्याओं के साथ ही परमाणु समझौते से जुड़े बिंदुओं पर रूस के सोची शहर में चर्चा हुई। मर्केल का कहना है कि यह समझौता ईरान के परमाणु कार्यक्रमों को पारदर्शी बनाने के साथ उसे नियंत्रित रखने के लिए महत्वपूर्ण है। यूरोप के अन्य देशों की तरह जर्मनी भी इस समझौते से निकलना नहीं चाहता है। उन्होंने इस समझौते में बने रहने और इसका समर्थन करते रहने पर हामी भरी है।
अमेरिका से टूट रहा जर्मनवासियों का भरोसा
बदलते दौर में अमेरिका को लेकर जर्मनी के लोगों की सोच में भी बदलाव हो रहा है। यह बात एक सर्वे में सामने आई है। जर्मनी के सरकारी ब्रॉडकास्टर जेडडीएफ के सर्वे में करीब 82 फीसदी जर्मनवासियों का मानना है कि अमेरिका अब भरोसमंद पार्टनर नहीं रह गया है। सर्वे में सिर्फ 14 फीसद लोगों ने माना कि अमेरिका अब भी जर्मनी का भरोसेमंद साझेदार है। सर्वे में हिस्सा लेने वाले 36 फीसदी लोगों ने रूस को जर्मनी का मजबूत सहयोगी कहा है। 43 फीसदी लोगों को लगता है कि नया मजबूत साझेदार चीन हो सकता है। आपको यहां बता दें कि अमेरिका और जर्मनी 1945 में द्वितीय विश्वयुद्ध खत्म होने के बाद से अहम साझेदार रहे हैं। लेकिन अब यह डोर कमजोर हो रही है। जर्मनवासियों के दिलों में भी अमेरिका को लेकर भरोसा टूट रहा है। ट्रंप के राष्ट्रपति कार्यकाल के 16 महीने बाद हुए इस सर्वे में 94 फीसदी जर्मनों ने कहा कि अमेरिका के बदले रुख के बाद अब यूरोपीय संघ को और ज्यादा अंदरूनी सहयोग की जरूरत है।
ट्रंप के बाद दुश्मनों की जरूरत नहीं
आपको यहां पर ये भी बता दें कि मर्केल से पहले यूरोपीय यूनियन के अध्यक्ष डोनाल्ड टस्क ने भी अमेरिका के ईरान परमाणु करार से हटने पर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर तीखा हमला बोला था। उन्होंने कहा था कि डोनाल्ड ट्रंप ने दोस्त से ज्यादा दुश्मन की तरह काम किया है। जिसके पास ट्रंप जैसा दोस्त हो, उसे दुश्मन की जरूरत नहीं पड़ेगी। इतना ही नहीं इस मुद्दे पर ईयू प्रमुख ने यूरोपीय नेताओं से ट्रंप के फैसले के खिलाफ संयुक्त यूरोपीय मोर्चा बनाने की अपील की। उन्होंने पत्रकारों से यहां तक कहा कि यूरोप को राष्ट्रपति ट्रंप का आभारी होना चाहिए, क्योंकि उन्होंने हमारे सभी भ्रम दूर कर दिए हैं।
ईरान से जारी रहेगा ईयू का व्यापार
अमेरिका के फैसले के बाद ईरान का दौरा कर रहे यूरोपीयन कमिश्नर फॉर एनर्जी एंड क्लाइमेट, मिगुल एरियास ने कहा है कि यूरोपीय संघ के 28 देश समझौते के अंतर्गत अब भी ईरान से व्यापार जारी रखेंगे। ये सभी देश समझौते के प्रति प्रतिबद्ध हैं और उन्हें उम्मीद है कि ईरान भी अपनी प्रतिबद्धता साबित करेगा। एरियास से मुलाकात के बाद अटॉमिक एनर्जी ऑर्गेनाइजेशन ऑफ ईरान के प्रमुख अली अकबर सालेही न कहा कि अंतरराष्ट्रीय समझौतों के लिए अमेरिका एक भरोसेमंद राष्ट्र नहीं है। हम आशा करते हैं कि ईयू की कोशिशें रंग लाएगी। ईयू को आगाह करते हुए सालेही ने कहा कि यूरोपीय देशों के पास अपना वादा पूरा करने के लिए कुछ समय ही बचा है। वह अपना वादा निभाते हैं तो ईरान भी पीछे नहीं हटेगा।
2015 में हुआ था करार
गौरतलब है कि वर्ष 2015 में ईरान के साथ अमेरिका के अलावा रूस, चीन, फ्रांस, ब्रिटेन और जर्मनी ने परमाणु समझौता किया था। हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान परमाणु समझौते से निकलने के साथ दोबारा उसपर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के समय हुए इस समझौते की ट्रंप हमेशा से आलोचना करते आए हैं। समझौता तोड़ते हुए उनका कहना था कि ईरान के परमाणु बम को रोका नहीं जा सकता है इसलिए यह समझौता तर्कसंगत नहीं है। वहीं दूसरी ओर यूरोपीय देश फ्रांस, ब्रिटेन और जर्मनी पहले ही इस समझौते के साथ बने रहने की प्रतिबद्धता जता चुके हैं।
पहली बार यूएस के खिलाफ नहीं हुआ ईयू
आपको बता दें कि यह पहला मौका नहीं है कि जब ईयू अमेरिका के खिलाफ खड़ा हुआ है। इससे पहले उत्तर कोरिया के मुद्दे पर भी ईयू के कुछ देशों ने अमेरिका के रुख से इतर बातचीत की संभावनाओं की खोजने और इसके लिए मध्यस्थता करने की बात कही थी। इसमें जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल के अलावा फ्रांस भी शामिल था। इसके अलावा येरुशलम के मुद्दे पर भी ईयू अमेरिका के खिलाफ खड़ा हुआ है। यहां पर ये बताना जरूरी है कि येरुशलम को इजरायल की राजधानी की मान्यता देने के बाद हुई संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की विशेष बैठक में डोनाल्ड ट्रंप के इस कदम का विश्लेषण किया गया था।
येरुशलम पर भी यूएस के खिलाफ है ईयू
बैठक में पांच यूरोपीय देशों ने कहा कि येरुशलम को लेकर इजरायल और फिलिस्तीन के बीच बातचीत के जरिए ही कोई अंतिम फैसला किया जाना चाहिए। परिषद में यूरोपियन संघ ने साफ किया कि उसके मुताबिक इजरायल और फिलिस्तीन के बीच विवाद का कोई वास्तविक हल होना चाहिए। ईयू का कहना था कि येरुशलम को इजरायल और फिलिस्तीन दोनों की राजधानी होना चाहिए और वह इस शहर पर किसी एक देश के अधिकार को मान्यता नहीं देगा। हालांकि कई देशों के विरोध के बावजूद अमेरिका ने पिछले दिनों येरुशलम में अपने दूतावास को खोल दिया है।