समाज की मुख्यधारा से जुड़ रहा मुसलमान अब भाजपा से दूरियों को भी मिटाने की कोशिश करता नज़र आ रहा है। ख़ासकर उत्तर प्रदेश में ऐसे संकेत ज्यादा देखने को मिल रहे हैं।
दोनों तरफ की दीवारें गिर रही हैं और दोनों एक दूसरे का विश्वास जीतने की कोशिश कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार और मुस्लिम समाज के विश्वास के नए रिश्तों और मधुर संबंधों की कई दलीलें हैं-
भाजपा ने घर-घर तिरंगा की अपील की तो अल्पसंख्यक समाज में तिरंगे से मोहब्बत का जो उत्साह दिखा इतना ज्यादा उत्साह पहले कभी नहीं दिखा था। बहुसंख्यक समाज की तरह अल्पसंख्यकों के हाथों,घरों, प्रतिष्ठानों, धार्मिक स्थलों और गाड़ियों में तिरंगे लहराते दिखे। यहां तक कि मुसलमानों के धार्मिक स्थलों और धार्मिक जुलूसों में भी पंद्रह अगस्त (स्वतंत्रता दिवस) से पूर्व के पखवाड़े में तिरंगा अपनी शान बिखेरता रहा। मदरसों के विद्यार्थियों ने तिरंगा यात्रा निकाली। कई मस्जिदों से जुम्मे की नमाज़ के बाद भी शानदार तिरंगा यात्राएं निकाली गईं।
पंद्रह अगस्त के पंद्रह दिन पहले मोहर्रम माह शुरू हुआ था, जिसके हर जुलूस और मजलिस मे तिरंगा लहरहाता दिखा। पूरी आज़ादी, इजाज़त और सुरक्षा के व्यापक इंतेज़ामों में मोहर्रम के ख़ास जुलूस-मजलिसें शांति के साथ सम्पन्न हुईं तो मुसलमानों ख़ास कर शियों के लबों पर एक जुमला कॉमन था-
“शुक्रिया योगी सरकार”।
बताते चलें कि हिंदू, मुसलमान या किसी भी धर्म के त्योहारों में सार्वाधिक सार्वजानिक धार्मिक आयोजन और जुलूस शिया समुदाय निकालता है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की ये पुरानी रवायत है कि यहां सैकड़ों वर्षों से मोहर्रम में शुरू हुए जुलूसों-मजलिसों का सिलसिला सवा दो महीनों तक जारी रहता है। अजादारी के ये जुलूस दशकों तक विवाद में भी घिरे रहे। क़रीब चालीस साल पहले कांग्रेस सरकार की कानून सुरक्षा व्यवस्था के होते मोहर्रम में आज़ादारी के जुलूसों में ख़ूब दंगे होते थे। लोग मारे जाते थे, आगजनी और जान-माल की हानि होती थी। उस समय की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने सुरक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने के बजाय मोहर्रम की अजादारी सहित समस्त मुस्लिम धार्मिक जुलूसों पर प्रतिबंध लगा दिया था। बाइस साल तक ये प्रतिबंध जारी रहा। 1997 में तत्कालीन मायावती (बसपा) सरकार में लखनऊ में शिया धर्म गुरु मौलाना कल्बे जव्वाद ने सुन्नी मौलाना और शाही जामा मस्जिद के इमाम अब्दुल्ला बुखारी के समर्थन में अजादारी और समस्त मुस्लिम धार्मिक जुलूसों की बहाली के लिए जबरदस्त आंदोलन शुरू किया। आंदोलन लम्बा चला लेकिन बसपा सरकार ने मुसलमानों के जुलूसों का प्रतिबंध ख़त्म नहीं किया। बल्कि आंदोलन की क़यादत (नेतृत्व) कर रहे मौलाना कल्बे जव्वाद को रात तीन बजे घर से उठाकर हेलीकॉप्टर से गुमनाम जगह भेज कर नजरबंद कर दिया। मौलाना जव्वाद के मुताबिक उन्हें खूब यातनाएं दी गईं। एक वर्ष गुजरा आंदोलन ठंडा पड़ गया लेकिन शिया समुदाय अपने जुलूसों की बहाली की मांग करता रहा। 1998 में यूपी में भाजपा की कल्याण सिंह सरकार बनी तो इस सरकार ने अजादारी और मुसलमानों के धार्मिक जुलूसों के 22 वर्ष पुरानी पाबंदी ख़त्म कर दी। जुलूस बहाल हो गए और पूरी सुरक्षा व्यवस्था और शांति के साथ जूलूस निकलने का सिलसिला शुरू हो गया। यूपी की भाजपा सरकार के इस फैसले से शिया समुदाय भाजपा को लेकर सोफ्ट होने लगा। इसके बाद उत्तर प्रदेश में बारी-बारी सपा और बसपा सरकारें आईं और कमजोर कानून व्यवस्था के होते मोहर्रम में निकलने वाले अजादारी के जुलूसों को लेकर कोई न कोई विवाद होता रहा। लेकिन योगी सरकार आने के बाद बेहतर कानून व्यवस्था के बीच मुसलमानों के समस्त धार्मिक जुलूस पूरी शांति के साथ सम्पन्न होते रहे। इस मोहर्रम में भी योगी सरकार ने हर अजादारी के समस्त जुलूसों को निकालने की न सिर्फ अनुमति दी बल्कि सुरक्षा व्यवस्था के व्यापक इंतेजाम किए गए । हर मजलिस और भव्य जुलूस में सुरक्षा इतनी चाक-चौबंद रही कि परिंदा पर भी नहीं मार सका। यही कराण रहा कि लाखों की भीड़ वाली रोज की बड़ी मजलिसों और बहुत सारे भव्य जुलूसों वाले मोहर्रम के ख़ास बारह दिन शांतिपूर्वक सम्पन्न होने के बाद शिया समुदाय की आम जनता और उलमा ने योगी सरकार को शुक्रिया कहा। गुफरामाब की मजलिसों में पूर्व उप मुख्यमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता डाक्टर दिनेश शर्मा और अन्य भाजपा नेताओं ने शिरकत की।
यही सब कारण है कि अब कहा जाने लगा है कि योगी सरकार की बेहतर कानून व्यवस्था और सब का साथ सबका विकास की कार्यशैली मुस्लिमों में न सिर्फ भाजपा के प्रति विश्वास पैदा कर रही है बल्कि अक़लियत (अल्पसंख्यक समाज) अब समाज की मुख्यधारा से जुड़ता नजर आ रहा है। देशभक्ति और राष्ट्रवाद की भावना को उकेरने वाले घर-घर तिरंगा अभियान में बराबर से शरीक होने से लेकर अमेरिका में विख्यात लेखक सलमान रुश्दी पर हुई कायराना हमले के विरोध में भी मुस्लिम समाज आगे दिख रहा है। ये संकेत बता रहे हैं कि अल्पसंख्यकों का भाजपा को लेकर भय की बर्फ पिघल रही है और विश्वास का एक नया रिश्ता पैदा हो रहा है। बदलाव की इस नई बेला में धार्मिक कट्टरता, संकीर्णता ख़त्म हो रही है, राष्ट्रवाद और समाज की मुख्यधारा से मुस्लिम समाज जुड़ता नजर आ रहा है। ये परिवर्तन भाजपा की कोशिशों को कामयाबी की राह पर लाता नजर आ रहा है। कभी सिर्फ अपर कास्ट की पार्टी कहे जाने वाली भाजपा ने पिछड़ों, दलितों के बाद अब अल्पसंख्यक समुदाय का दिल जीतने का सिलसिला शुरू कर दिया है। भाजपा की इस कोशिश को कामयाब बनाने में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की नीतियां सबसे कारगर साबित हो रही हैं।