- प्रदेश में करीब 30 गुना बढ़ेगा ककून धागाकरण
- रीलिंग इकाइयों की संख्या 23 गुना और धागे का उत्पादन दोगुना होगा
लखनऊ। अगले पांच वर्षों में योजनाबद्ध तरीके से योगी सरकार रेशम से 50 हजार किसान परिवारों की जिंदगी को रौशन करेगी। फिलहाल यह संख्या 29 हजार है। इसके लिए योगी सरकार-2.0 ने बेहद चुनौतीपूर्ण लक्ष्य रखा है। इसके अनुसार ककून धागाकरण का लक्ष्य करीब 30 गुना बढ़ाया गया है। अभी 60 मीट्रिक टन ककून से धागा बन रहा है। अगले पांच साल में इसे बढ़ाकर 1750 मीट्रिक टन किया जाना है। इसके लिए रीलिंग मशीनों की संख्या 2 से बढ़ाकर 45 यानी 23 गुना किए जाने का लक्ष्य है।
पांच साल के इस चुनौतीपूर्ण लक्ष्य को पूरा करने के लिए सरकार ने 100 दिन, छह माह, दो साल और पांच साल की चरणबद्ध योजना शुरू की है। इस कार्ययोजना पर काम भी शुरू हो चुका है। मसलन, 100 दिनों में सरकार ने इस लक्ष्य के सापेक्ष केंद्रीय वस्त्र मंत्रालय की ओर से संचालित केंद्रीय रेशम बोर्ड की सिल्क समग्र योजना के तहत 100 किसानों को पौधरोपण, कीटपालन गृह निर्माण, प्रशिक्षण एवं उपकरण के लिए अनुदान उपलब्ध कराया है। शहतूती सेक्टर के 180 लाभार्थियों को केंद्रीय रेशम बोर्ड के प्रशिक्षण संस्थानों, पश्चिमी बंगाल के बहरामपुर स्थित सीएसएसआर एंड टीआई व कर्नाटक स्थित मैसूर का और 70 लाभार्थी किसानों को सरदार बल्लभ भाई पटेल प्रशिक्षण संस्थान मीरजापुर का एक्सपोजर विजिट कराया गया। इसी समयावधि में 10 एफपीओ के गठन व वाराणसी के सिल्क एक्सचेंज में इंटीग्रेटेड सिल्क कॉम्प्लेक्स की स्थापना के कार्य को भी आगे बढाया गया। इस कॉम्प्लेक्स में कर्नाटक के लिए निशुल्क विक्रय काउंटर भी उपलब्ध करा दिया गया। यही नहीं राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत 13 नई रीलिंग इकाइयों की स्थापना के लिए टेंडर की कार्यवाही पूरी हो चुकी है। इनके स्थापित हो जाने के बाद कोये का वाजिब दाम मिलेगा। साथ ही बुनकरों को उनकी जरूरत के अनुसार शुद्ध धागा भी।
अगले छह माह और दो साल का लक्ष्य
सरकार ने रेशम की खेती करने वाले और इससे जुड़े अन्य स्टेकहोल्डर्स के लिए अगले छह माह और दो साल का जो लक्ष्य रखा है, उसके अनुसार सिल्क एक्सचेंज से अधिकतम बुनकरों को जोड़ा जाएगा। 17 लाख शहतूत एवं अर्जुन का पौधरोपण होगा तथा कीटपालन के लिए 10 सामुदायिक भवनों के निर्माण की शुरुआत की जाएगी। ओडीओपी योजना के तहत इंटीग्रेटेड सिल्क कॉम्प्लेक्स का डिजिटलाइजेशन, 180 लाख रुपये की लागत से 10 रीलिंग इकाइयों की स्थापना और कीटपालन के लिए 10 अन्य सामुदायिक भवन का निर्माण भी इसी लक्ष्य का हिस्सा है।
यूपी में रेशम की खेती की असीम संभावनाएं
पानी की पर्याप्त उपलब्धता के कारण उत्तर प्रदेश में रेशम उत्पादन की असीम संभावनाएं हैं। कम लागत में अधिक मुनाफे की वजह से यह किसानों की आय बढ़ाने के साथ महिलाओं को स्वावलंबी बनाकर मिशन शक्ति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
कुल रेशम उत्पादन में अभी उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी महज तीन फीसद है। उचित प्रयास से यह हिस्सेदारी 15 से 20 फीसद तक हो सकती है। बाजार की कोई कमीं नहीं है। अकेले वाराणसी एवं मुबारकपुर की सालाना मांग 3000 मीट्रिक टन की है। इस मांग की मात्र एक फीसद आपूर्ति ही प्रदेश से हो पाती है। जहां तक रेशम उत्पादन की बात है तो चंदौली, सोनभद्र, ललितपुर और फतेहपुर टसर उत्पादन के लिए जाने जाते हैं। कानपुर शहर, कानपुर देहात, जालौन, हमीरपुर, चित्रकूट, बांदा और फतेहपुर में एरी संस्कृति का अभ्यास किया जाता है। सरकार रेशम की खेती के लिए इन सभी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर अर्जुन का पौधारोपण करवाएगी। तराई के जिले शहतूत की खेती के लिए मुफीद हैं। प्रदेश के 57 जिलों में कमोवेश रेशम की खेती होती है। सरकार रेशम की खेती को लगातार
प्रोत्साहित कर रही है।
किसानों की खुशहाली और महिलाओं का स्वावलंबन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्राथमिकता है। रेशम की खेती कम खर्च में अधिक लाभ देने की वजह से हजारों किसानों की खुशी का माध्यम बन सकती है। खेती से लेकर धागा और इनसे उत्पाद तैयार करने में प्रशिक्षित महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। मांग के मद्देजर बाजार का कोई संकट है नहीं। इन्हीं वजहों से सरकार ने यह चुनौतीपूर्ण लक्ष्य रखा है।
नवनीत सहगल, अपर मुख्य सचिव वस्त्र एवं रेशम उद्योग