रूसी तेल के आयात से टला भारत का संकट, अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी क्रूड की कीमत में नरमी

नई दिल्ली। रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध की शुरुआत के बाद अमेरिका ने रूस को आर्थिक तौर पर तोड़ देने के लिए उस पर प्रतिबंध लगा दिया था। लेकिन अमेरिका का ये दांव अब न केवल फेल होता हुआ नजर आ रहा है, बल्कि इसकी वजह से भारत और इसके जैसे कच्चे तेल के आयातक देशों को फायदा भी मिलने लगा है। दावा किया जा रहा है कि आर्थिक प्रतिबंध लगने के बाद भारत और चीन अंतरराष्ट्रीय मूल्य की तुलना में जबरदस्त डिस्काउंट के साथ रूस से कच्चे तेल की खरीदारी कर रहे हैं, जिसकी वजह से ना केवल अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम में कमी आई है, बल्कि भारत को अपने ऑयल इंपोर्ट बिल में कमी करने में भी काफी मदद मिली है।

अंतरराष्ट्रीय बाजार में पिछले कुछ दिनों के दौरान क्रूड ऑयल की कीमत में प्रति बैरल 17 से 20 डॉलर तक की कमी आई है। ब्रेंट क्रूड फिलहाल 110 डॉलर प्रति बैरल के स्तर से नीचे कारोबार कर रहा है, वहीं वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट क्रूड (डब्ल्यूटीआई क्रूड) की कीमत भी गिरकर 105 डॉलर प्रति बैरल के स्तर से नीचे आ गई है। जून की शुरुआत में मार्केट क्राइसिस की वजह से ब्रेंट क्रूड की कीमत 130 डॉलर प्रति बैरल के करीब पहुंच गई थी, जबकि डब्ल्यूटीआई क्रूड 122 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर पहुंचकर कारोबार कर रहा था। लेकिन रूस की ओर से भारत और चीन को क्रूड ऑयल की सप्लाई शुरू होने के बाद ब्रेंट क्रूड और डब्ल्यूटीआई क्रूड दोनों की कीमत में नरमी का रुख बन गया है। चीन और भारत दुनिया के सबसे बड़े क्रूड ऑयल इंपोर्टर देशों में शामिल हैं। वहीं रूस क्रूड ऑयल के 5 सबसे बड़े उत्पादक देशों में से एक है।

जानकारों के मुताबिक अमेरिका द्वारा रूस पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में रूस से आने वाले कच्चे तेल की आवक पूरी तरह से रुक गई थी, जिसके कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में अचानक कच्चे तेल की काफी कमी हो गई। बाजार में मांग की तुलना में कम सप्लाई होने की वजह से कच्चा तेल तेज होकर 133 डॉलर प्रति बैरल के स्तर से भी ऊपर चला गया। इस प्रतिबंध के कारण एक ओर तो रूस के सामने आर्थिक संकट की स्थिति बन गई, दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत काफी तेज हो गई। ऐसा होने से अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए काफी हद तक आयातित तेल पर निर्भर रहने वाले भारत जैसे तमाम देशों की परेशानी काफी बढ़ गई और उनके ऑयल इंपोर्ट बिल के काफी बढ़ जाने की आशंका भी बन गई।

दरअसल, रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगने के पहले तक भारत परिवहन संबंधी परेशानियों की वजह से रूस से काफी कम मात्रा में कच्चे तेल का आयात करता था। लेकिन जब अमेरिका और पश्चिमी देशों ने रूस पर प्रतिबंध लगाया, तो आर्थिक संकट से बचने के लिए रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने भारत और अपने मित्र देशों को भारी डिस्काउंट पर क्रूड ऑयल बेचने का प्रस्ताव दिया। मौके का फायदा उठाकर भारत और चीन दोनों ही देशों ने रूस के इस प्रस्ताव को हाथों हाथ लपक लिया। भारत और चीन ने कच्चे तेल का सौदा करके रूस को आर्थिक संकट से तो उबार ही लिया, अपने ऑयल इंपोर्ट बिल को बेतहाशा बढ़ने से भी बचा लिया।

जबरदस्त डिस्काउंट के साथ रूस से कच्चा तेल खरीदने का सौदा होने के बाद भारत और चीन जैसे दुनिया के सबसे बड़े दो ऑयल इंपोर्टर देशों ने मध्य एशियाई देशों से कच्चे तेल की खरीदारी सीमित कर दी। ऐसा होने के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की मांग में भी कमी आई और इसकी वजह से कच्चे तेल की कीमत में भी गिरावट का दौर शुरू हो गया।

फिलहाल रूस अपने पश्चिमी बंदरगाह से भारत को क्रूड ऑयल की सप्लाई कर रहा है, वहीं चीन को रूस अपने पैसिफिक कोस्ट से कच्चे तेल की सप्लाई कर रहा है। रूस से मिले डिस्काउंट ऑफर का फायदा उठाते हुए भारत और चीन की देखादेखी कुछ अन्य एशियाई देशों ने भी रूस के साथ कच्चे तेल के आयात का सौदा कर लिया है। इसके साथ ही रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगने के पहले तक रूस के कच्चे तेल पर निर्भर करने वाले कुछ यूरोपीय देश भी अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए रूसी मुद्रा रूबल में स्वेज नहर के रास्ते रूस से कच्चे तेल का आयात कर रहे हैं।

बताया जा रहा है कि 10 जून तक रूस रोजाना 8,60,000 बैरल क्रूड ऑयल एशियाई देशों को सप्लाई कर रहा था। लेकिन कच्चे तेल के कुछ और नए सौदों के कारण आने वाले दिनों में ये सप्लाई बढ़कर 10,70,000 हजार बैरल प्रतिदिन होने वाली है। ऐसा होने के बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में ओपेक देशों से पहुंचने वाले कच्चे तेल की मांग में और भी कमी आ सकती है, जिससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में और भी गिरावट आ सकती है। जाहिर तौर पर कच्चे तेल की कीमत में कमी आने का फायदा आगे चलकर भारत जैसे कच्चे तेल के आयातक दशों को मिलेगा।

दरअसल, परिवहन संबंधी जटिलताओं के कारण भारत को अभी भी रूस से अपनी जरूरत के हिसाब से कच्चे तेल की सप्लाई नहीं हो पा रही है। इसलिए भारत के सामने अंतरराष्ट्रीय बाजार से भी कच्चे तेल का आयात करने की मजबूरी बनी हुई है। ऐसे में अगर अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में कमी आती है, तो इसका फायदा भारत के ऑयल इंपोर्ट बिल को सीमित रखने के रूप में मिलेगा। ऐसा होने से भारत में भी पेट्रोल और डीजल समेत दूसरे पेट्रोलियम उत्पादों की कीमत में कमी आने की संभावना बन सकेगी।

आपको बता दें कि भारत अपनी जरूरत पूरा करने के लिए काफी हद तक अंतरराष्ट्रीय बाजार पर निर्भर करता है। भारत को अपनी जरूरत का 80 प्रतिशत कच्चा तेल आयात करना पड़ता है, किसकी वजह से इस मद में भारत को काफी विदेशी मुद्रा खर्च करनी पड़ती है। साथ ही भारत में पेट्रोलियम उत्पादों की कीमत भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल की कीमत के हिसाब से घटिया या बढ़ती रहती है। हाल के दिनों में क्रूड ऑयल की कीमत में जबरदस्त तेजी आने के कारण भारत में भी पेट्रोल और डीजल की कीमत रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गई थी। जिसके बाद सरकार को टैक्स में कमी करके पेट्रोल और डीजल की कीमत को नियंत्रित करने का तरीका अपनाना पड़ा।

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com