राम प्रकाश राय। शादियों का नाम सुन अक्सर जो सबसे पहले जेहन में आता है वो है ‘दावत’. दावत यानि मस्त सजावट, चकाचक लाइट, मस्ती, डीजे पर डिस्को और खूब सारे पकवान. यार-दोस्त, नातेदार-रिश्तेदार से लेकर मुहल्ले के लोगों तक की भीड़. इतना ही नहीं कई बार तो ऐसे लोगों से भेंट हो जाती है जिनसे अन्यथा सालों न मिलते हैं. बचपन के दोस्त, स्कूल के दोस्त, कॉलेज के दोस्त और यथासमय नौकरी के दोस्तों से भेंट. कई ऐसे लोग जिनसे मिलना नहीं चाहते और कुछ ऐसे जिनसे चाह कर मिल नहीं पाते. अक्सर खाने की लम्बी सजावट. जो खाओ जो न खाओ. न कोई रोक-टोक, न सवाल-जवाब और न ही माता-पिता कि दांटडपट. कुल मिला कर अपनी मर्जी से सारी मस्ती. अपने उम्रानुसार.
अब जरा सोचिये कि यदि ये सब न हो तो क्या हो? अगर इसमें कई बंदिशें हो जायें मसलन गिने-चुने लोग, कुछ सेलेक्टिव खाना और तय व्यवहार. ऐसे में दावत का स्वरुप क्या होगा? और आकर्षण का क्या? क्या छोटे बच्चों से लेकर घर की महिलाओं तक और कई बार या फिर अक्सर पुरुषों में भी जो उत्साह होता है, वो रह जायेगा. मेरा मानना है नहीं. अधिकतर लोग खुद को मुझसे और मेरे इस मानने से जोड़ेंगे. नहीं भी जुड़े तो नकारेंगे नहीं.
लाग-लपेट छोड़ अब मुद्दे पर आते हैं. पंजाब में जिला है तरन तारन (तरन तारन साहिब). लोकसभा सीट भी है, खडूर (खदूर) साहिब. 2008 में जब परिसीमन हुआ तब ये सीट बनी थी. यहां से सांसद हैं कांग्रेस पार्टी के जसबीर सिंह गिल. आज इन्होंने लोकसभा में केंद्र सरकार से मांग की है कि शादियों में लोगों और खाने (व्यंजनों के प्रकार) की संख्या तय की जाए.
गिल ने की ये मांग
गिल ने लोकसभा में शून्यकाल(शून्यकाल के बारे में आगे पढ़ लीजियेगा) के दौरान यह मांग उठाई कि शदियों में अधिकतम 50 बाराती और 11 पकवान की बाध्यता लागू की जाये. लड़की वालों की तरफ से भी 50 से ज्यादा लोग न हों. इसके लिए जरुरी कानून बनाया जाये.
ये दी दलील
गिल ने अपनी इस मांग के समर्थन में कहा कि हमारे यहां शादी समारोह में बहुत खर्च किया जाता है. दोनों तरफ से बहुत सारे लोग बुलाये जाते हैं. कई तरह के पकवान बनाये जाते हैं. लिहाज़ा अब इस पर कानून बना कर ये सब रोका जाना चाहिए. इतना ही नहीं गिल पडोसी देश पाकिस्तान का उदहारण देते हुए कहा कि पकिस्तान में ऐसा कानून बना हुआ है. यहां भी यह कानून बनाने की जरुरत है.
अध्यक्ष दे दिया ये जवाब
जसबीर की इस मांग पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि ये विषय कानून का नहीं बल्कि इच्छा शक्ति का होगा. इसके लिए सबको खुद को बदलना होगा. सांसद खुद ऐसा करने लगें तो पूरा देश भी ऐसा कर लेगा.
प्रश्नकाल जान लीजिये
संसद की कार्रवाई के दौरान संसद में प्रश्नकाल होता है. शून्यकाल भी इसी को कहा जाता है. कार्रवाई का हिस्सा होता है. लोकसभा और राज्यसभा में इसका समय अलग-अलग होता है. सामान्यतया ये शुरूआती 1 घंटे का समय या सभापति के अन्यथा आदेश के अनुसार होता है. प्रश्नकाल के दौरान सदस्य प्रशासन और सरकार से सवाल पूछते हैं.
अब यदि जसबीर सिंह गिल के मांगों की बात की जाये तो इसके अलग-अलग मायने हो सकते हैं. अलग परिस्थियों पर धारणाएं और ध्यान का विरोध तय है. हम तो इसमें पड़ेंगे नहीं. आप देख लीजिये. पर यदि ऐसा हो जाये तो….?