दिल्ली के राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) की स्थापना 1959 में छात्रों को अभिनय का प्रशिक्षण देने और नाटक को एक विधा के रूप में आगे बढ़ाने के उद्देश्य से की गई थी। जबकि पुणे में 1960 में फ़िल्म प्रशिक्षण संस्थान (एफटीआई) की स्थापना फिल्मों के लिए बेहतर अभिनेता उपलब्ध कराने के लिए की गई थी, लेकिन कुछ वर्षों बाद पुणे में अभिनय का प्रशिक्षण बंद हो गया और तब एनएसडी के पासआउट कई अभिनेताओं ने मुंबई में अपने उत्कृष्ट अभिनय से देश में ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी पहचान बनाई। एनएसडी से मुंबई पहुंचकर सिनेमा में सबसे पहले अपनी पहचान बनाने वाले कलाकारों में ओम शिवपुरी का नाम लिया जाता है।
1970 के दशक में वे सबसे व्यस्त चरित्र अभिनेता थे। ओम शिवपुरी की पहली फ़िल्म आषाढ़ का एक दिन थी। यह फ़िल्म मोहन राकेश के नाटक जो कि महाकवि कालिदास के जीवन पर था, के आधार पर थी जिसमें वे कालिदास का रोल किया करते थे, लेकिन इस फिल्म के निर्देशक मणिकौल ने उनको विलोम की भूमिका दी थी। ओम शिवपुरी के मोहन राकेश के साथ गहरे आत्मीय संबंध थे। उन्होंने उनके लिखे तीनों नाटकों को निर्देशित तो किया ही था बल्कि उनमें मुख्य पात्रों की भूमिकाएं भी निभाई थीं। उनके नाटक आधे अधूरे पर उन्होंने फिल्म बनाने की सार्थक कोशिश की थी, लेकिन फिल्म के निर्देशक बासु भट्टाचार्य और मोहन राकेश के बीच अनेक बातों पर मतभेद होने के कारण फिल्म पूरी न हो सकी और ओम शिवपुरी को काफी आर्थिक हानि हुई।
इस फिल्म निर्माण के दौरान ही वे गुलज़ार और मणि कौल के संपर्क में आए। उनकी दूसरी फ़िल्म गुलज़ार द्वारा निर्देशित फिल्म कोशिश थी, जिसमें उन्होंने एक अंधे की भूमिका निभाई थी। इसके बाद तो उनका गुलज़ार से ऐसा रिश्ता बना की फिर तो वे उनकी हर फ़िल्म का हिस्सा रहे। सन् 1973 में आई उनकी दोनों फ़िल्मों अचानक और नमक हराम ने अच्छा व्यवसाय किया और वह जल्द ही बॉलीवुड द्वारा स्वीकार कर लिए गए। ओम शिवपुरी 1980 के दशक में इतने व्यस्त हो चुके थे कि वर्ष 1989 में उनकी 27 फिल्में रिलीज हुईं। प्रारंभ में उन्हें छोटी और असरदार भूमिकाएं मिलीं, लेकिन बाद में ज्यादातर फ़िल्मों में वे खलनायक या पुलिस अधिकारी ही बने। उस समय के सभी बड़े निर्देशकों/नायकों के साथ उन्होंने काम किया। अपने 20 वर्ष के कैरियर में उन्होंने लगभग 250 फ़िल्मों में अभिनय किया। उनकी सबसे ज्यादा 33 फिल्में, राजेश खन्ना के साथ थीं और 29 फ़िल्में जितेंद्र के साथ। धर्मेंद्र, विनोद खन्ना, अमिताभ बच्चन और संजीव कुमार के साथ भी 15 फिल्मों का औसत था। गुलज़ार के साथ की गई फिल्मों में उन्होंने कई यादगार भूमिकाएं निभाईं। ओम शिवपुरी की मृत्यु 15 अक्टूबर 1990 को मद्रास में दिल का दौरा पड़ने से हुई, जहां वे केसी बोकाड़िया की फिल्म फूल बने अंगारे की शूटिंग के लिए गए थे।
चलते चलते: ओम शिवपुरी की पत्नी सुधा शर्मा जो एनएसडी में उनके साथ थीं ने भी फिल्मों में अभिनय किया। उनकी मुख्य फिल्में थीं- स्वामी, सावन को आने दो, इंसाफ का तराजू, विधाता और पिंजर, लेकिन उनकी पहचान बनी क्योंकि सास भी कभी बहू थी, सीरियल मैं अपनी बा की भूमिका से, जिससे वह घर-घर में बा के रूप में पहचानी गईं। ओम शिवपुरी के बेटे विनीत शिवपुरी और पुत्री ऋतु शिवपुरी ने भी कुछ फिल्मों में काम किया, लेकिन यह दोनों असफल ही रहे। ऋतु ने सन् 1993 में पहलाज निहलनी की फिल्म आंखें में गोविंदा और चंकी पांडे के साथ पदार्पण किया था। यह फिल्म सफल भी हुई थी, लेकिन बाद में की गई उनकी फिल्में जैसे- हम सब चोर हैं, रॉक डांसर, आर या पार, भाई-भाई और हद कर दी आपने सफल नहीं रही। अब वे कभी-कभार किसी सीरियल में दिख जाती हैं।