आईआईएमसी में ‘शुक्रवार संवाद’ कार्यक्रम का आयोजन
नई दिल्ली । सुप्रसिद्ध इतिहासकार प्रो. मक्खन लाल ने भारत को एक प्राचीन राष्ट्र बताया है। प्रो. लाल के अनुसार अंग्रेजी शासन के दौरान और स्वतंत्रता के बाद देश का जो इतिहास लिखा गया, उसमें कुछ अहम पक्षों को नजरअंदाज कर दिया गया। इतिहासकार के रूप में हमें यह स्वीकारना चाहिए कि एक राष्ट्र का इतिहास अलग-अलग संस्कृतियों से बनता है। आज भारत के इतिहास को भारतीय दृष्टि से लिखे जाने की आवश्यकता है। प्रो. मक्खन लाल शुक्रवार को भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) द्वारा आयोजित कार्यक्रम ‘शुक्रवार संवाद’ को संबोधित कर रहे थे।
‘आजादी का अमृत महोत्सव और हमारा इतिहास बोध’ विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए प्रो. लाल ने कहा कि हम जीवन में हर दिन किसी न किसी तरह से इतिहास का इस्तेमाल करते हैं। हम अपने अतीत को कैसा महत्व देते हैं, इसी के आधार पर आपके भविष्य का निर्माण होता है। उन्होंने कहा कि अक्सर ये प्रश्न उठता है कि भारत एक राष्ट्र है या नहीं। अगर भारत एक राष्ट्र नहीं था, तो वास्कोडिगामा और कोलंबस किसे ढूंढ़ने निकले थे? यूरोप, रोमन ओर ग्रीस के साथ कौन व्यापार कर रहा था?
प्रो. लाल के अनुसार देश की वर्तमान पीढ़ी तथ्यों से परिचित नहीं है। भारत एक ऐसा राष्ट्र है, जिसका निर्माण विविध भाषा, संस्कृति, धर्म और सांस्कृतिक विकास के समृद्ध इतिहास द्वारा हुआ है। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद भारत में स्कूल एवं कॉलेजों की शिक्षा सरकारों पर आश्रित रही। इस कारण किताबें भी सरकार की सुविधा के अनुसार लिखी गई। आजादी से पहले भारत की शिक्षा व्यवस्था समाज द्वारा पोषित थी। विद्यार्थियों से शिक्षा के लिए कोई फीस नहीं ली जाती थी। जब मैकाले ने भारत की शिक्षा पद्धति को उलट दिया, तब शिक्षा का व्यवसायीकरण होना शुरू हुआ।
प्रो. लाल ने बताया कि भारत की शिक्षा प्रणाली बेहद प्राचीन है। वर्ष 1834 से 1850 के बीच किए गए एक सर्वे के दौरान यह तथ्य सामने आया कि बिहार और बंगाल में उस वक्त एक लाख से ज्यादा स्कूल थे। इस समय में भारत की 87 प्रतिशत आबादी साक्षर थी, जबकि इंग्लैंड की 17 प्रतिशत आबादी पढ़ी-लिखी थी। लेकिन जब ब्रिटिश भारत से गए, तब भारत की साक्षरता दर घटकर 17 प्रतिशत रह गई।
कार्यक्रम का संचालन आउटरीच विभाग के प्रमुख प्रो. (डॉ.) प्रमोद कुमार ने किया एवं स्वागत भाषण संस्थान के डीन अकादमिक प्रो. (डॉ.) गोविंद सिंह ने दिया। धन्यवाद ज्ञापन आउटरीच विभाग में अकादमिक सहयोगी सुश्री छवि बकारिया ने किया।