लखनऊ। वकीलों के ड्रेस कोड को चुनौती देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में एक पीआईएल दाखिल की गई। जिसमें कहा गया कि, बार कौंसिल आफ इंडिया के वर्ष 1975 में बनाया गया वर्तमान ड्रेस कोड बेतुका है। लखनऊ हाई कोर्ट ने इस पीआईएल पर संज्ञान लेते हुए बार कौंसिल आफ इंडिया, हाईकोर्ट प्रशासन व केंद्र सरकार से जवाब तलब किया है। जिसमें कहा गया है कि 18 अगस्त तक अपना जवाब दाखिल करें। यह आदेश जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस अजय कुमार श्रीवास्तव प्रथम की पीठ ने दिया। और लखनऊ के एक वकील अशोक पांडेय ने यह जनहित याचिका पर दायर की थी।
प्रतिशपथपत्र दाखिल करने का आदेश :- लखनऊ हाई कोर्ट में पहली सुनवाई के बाद कोर्ट ने शुक्रवार के बार कौंसिल आफ इंडिया को नोटिस जारी किया, केंद्र सरकार की ओर से पेश असिस्टेंट सालिसिटर जनरल एसबी पांडे व हाई कोर्ट प्रशासन की ओर से हाजिर अधिवक्ता गौरव मेहरोत्रा को मामले में अपना-अपना प्रतिशपथपत्र दाखिल करने का आदेश दिया।
कौंसिल आफ इंडिया करता है ड्रेस निर्धारण :- अपनी पीआईएल में याची अधिवक्ता अशोक पांडे ने कहाकि, उन्होंने अपनी याचिका में बार कौंसिल व हाईकोर्ट के उस नियम को चुनौती दी है जिसमें अधिवक्ताओं को कोर्ट रूम में काला कोट एवं गाउन व बैंड धारण करने का प्रविधान किया गया है। वकीलों के लिए ड्रेस निर्धारित करने का अधिकार बार कौंसिल आफ इंडिया के पास है। इसमें एक प्रावधान किया गया है कि, वह ड्रेस निर्धारण करते समय जलवायुवीय स्थितियों का ध्यान रखें। लेकिन बार कौंसिल ने पूरे देश में 12 महीने के लिए एक ही ड्रेस कोड का निर्धारण कर दिया। यह उचित नहीं है।
अनुच्छेद 14, 21 व 25 का उल्लंघन :- याची का कहना है कि, देश में जहां तमाम क्षेत्रों में नौ माह और कुछ क्षेत्रों में 12 माह गर्मी पड़ती है वहां काला कोट और गाउन पूरे साल भर के लिए निर्धारित करना एडवोकेट्स एक्ट के संबंधित प्रविधानों और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 21 व 25 का उल्लंघन है।
बैंड को प्रीचिंग बैंड :- वकीलों के बैंड पर पीआईएल में कहा गया है कि, ईसाई देशों में इस बैंड को प्रीचिंग बैंड कहा गया है। जिसे बड़े ईसाई धर्मगुरु तब धारण करते हैं जब वे प्रवचन देते हैं। ऐसे में यह बैंड ईसाई धर्म का आवश्यक प्रतीक चिह्न है। जिसे अन्य धर्मों के वकीलों को पहनने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है।
भीषण गर्मी में काला कोट न बाबा न :- पीआईएल में कहा कि, भीषण गर्मी के मौसम में एक पागल भी काला कोट व गाउन न पहने, किंतु लम्बे समय से चली आ रही परंपरा को मानने में कुछ वकील व न्यायाधीश फख्र समझते हैं।