अंतरिक्ष विज्ञान में लगातार नए आयाम गढ़ता भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) जल्द ही अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक और ऊंची छंलाग लगाने वाला है। इसरो की यह पूर्ण रूप से व्यावसायिक उड़ान होगी। इसके साथ कोई भी भारतीय उपग्रह नहीं भेजा जाएगा। इसकी शुरुआत 16 सितंबर, 2018 को होगी, जब भारतीय राकेट श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से दो बिट्रिश उपग्रहों के साथ उड़ान भरेगा। इस कामयाबी के साथ ही भारत उन देशों की श्रेणी में शामिल हो जाएगा, जिसके पास विदेशी उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित करने या भेजने की अपनी तकनीक मौजूद है। क्या है ब्रिट्रिश उपग्रहों की खूबियां। आखिर ये उड़ान भारत के लिए कितनी बड़ी उपलब्धि होगी। अंतिरक्ष के वाणिज्यिक उपयोग में भारत की कितनी हिस्सेदारी है। आगे इसरो के लिए क्या चुनौतियां होंगी। इन तमाम अनछुए पहलुओं को उकेरती ये रिपोर्ट।
ब्रिट्रिश उपग्रहों की खूबिंया
1-16 सितंबर, 2018 को इसरो अपने ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान PSLV C-42 दो ब्रिट्रिश उपग्रह- नोवासार और एस 1- 4 को धरती की कक्षा में स्थापित करेगा।
2- 450 किलोग्राम वजन के इन उपग्रहों का निर्माण ब्रिट्रिश कंपनी सर्रे सैटेलाइट टेक्नोलॉजी लिमिटेड (एसएसटीएल) ने किया है।
3- इस बाबत भारतीय अंतरिक्ष अनुसन्धान संगठन की वाणिज्यिक इकाई एन्ट्रिक्स कोर्पोरेशन लिमिटेड से इसके प्रक्षेपण का करार हुआ था।
4- उपग्रह नावासार एक तकनीक प्रदर्शन उपग्रह मिशन है। इसमें कम लागत वाला एस बैंड सिंथेटिक रडार भेजा जाएगा। इसे धरती से 580 किलोमीटर ऊपर सूर्य की समकालीन कक्षा (एसएसओ) में स्थापति किया जाएगा।
5- उपग्रह एसन 1-4 एक भू-अवलाकेन उपग्रह है, जो एक मीटर से भी छोटी वस्तु को अंतरिक्ष से देख सकता है। ये उपग्रह एसएसटीएल के अंतरिक्ष से भू अवलोकन की क्षमता को बढ़ाएगा।
6- इसरो की यह पूर्ण रूप से व्यावसायिक उड़ान होगी। खास बात यह है कि इसके साथ कोई भी भारतीय उपग्रह नहीं भेजा जाएगा।