सर्वेक्षण का खर्च केंद्र और राज्य सरकार उठाएंगी, सर्वेक्षण की रिपोर्ट कोर्ट में पेश की जाएगी, सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड फैसले से संतुष्ट नहीं, हाइकोर्ट में चुनौती देंगा
-सुरेश गांधी
वाराणसी। काशी विश्वनाथ मंदिर ज्ञानव्यापी मस्जिद मामले में वाराणसी की कोर्ट ने गुरुवार को बड़ा फैसला सुनाया। कोर्ट ने इस मामले में पुरातात्विक सर्वेक्षण किए जाने को अपनी मंजूरी दे दी। वाराणसी की फास्ट ट्रैक कोर्ट के जज आशुतोष तिवारी ने यह फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि इस सर्वेक्षण का संयुक्त खर्च केंद्र और राज्य सरकार उठाएंगी। अयोध्या के बाद यह देश का दूसरा ऐसा मामला है। जिसमें मंदिर-मस्जिद की जमीन तय करने के लिए उसके पुरातात्विक सर्वेक्षण के आदेश दिए गए हैं। 10 दिसंबर 2019 से चल इस प्रकरण की सुनवाई चल रही थी। वहीं सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अधिवक्ता अभय नाथ यादव ने कहा कि वह फैसले से संतुष्ट नहीं हैं और इसे हाइकोर्ट में चुनौती देंगे। अदालत के फैसले को लेकर परिसर में काफी गहमागहमी का दौर सुबह से ही बना रहा, लंच के बाद दोपहर ढाई बजे फैसला आते ही प्रकरण को लेकर चर्चा का माहौल बना रहा। बता दें, इस मामले में मंदिर पक्ष के पक्षकार विजय शंकर रस्तोगी ने 10 दिसंबर 2019 को कोर्ट में याचिका दायर की थी। तब से अदालत में इस मामले में बहस चल रही थी। विजय शंकर रस्तोगी की अर्जी स्वीकार करते हुए कोर्ट ने विवादित स्थल के पुरातात्विक सर्वेक्षण को मंजूरी दे दी। कोर्ट ने आदेश दिया कि इस सर्वेक्षण का खर्चा केंद्र और राज्य सरकारें आपस में मिलकर उठाएंगी। इसके साथ ही सर्वेक्षण की रिपोर्ट कोर्ट में पेश की जाएगी। मंदिर पक्ष के पक्षकार इस फैसले को बड़ी जीत बता रहे हैं।
कोर्ट ने आदेश दिया कि इस सर्वेक्षण को एएसआई के निदेशक कराएंगे। उनके नेतृत्व में बनने वाली टीम में 5 विद्वान व्यक्ति शामिल होंगे। इस टीम में अल्पसंख्यक समुदाय के दो सदस्य भी शामिल होंगे। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र से एक व्यक्ति इस सर्वेक्षण कार्य का ऑब्ज़र्वर रहेगा, जो किसी सेंट्रल यूनिवर्सिटी से संबंधित होगा। एएसआई की 5 सदस्यीय कमेटी रोजाना इस ऑब्जर्वर को अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। कोर्ट ने कहा कि रोजाना सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक जीपीआर तकनीक और जीओ रेडियोलाॅली सिस्टम के सहारे यह सर्वेक्षण किया जाएगा। समूचे सर्वे की वीडियोग्राफ़ी करायी जाएगी, कलर और ब्लैक एंड व्हाइट फ़ोटोग्राफ़ी भी करानी होगी। कोई भी पक्षएएसआई की कमेटी पर दबाव नहीं बनाएगा।
मुस्लिम पक्ष करता रहेगा नमाज
अदालत ने आदेश में कहा कि सर्वे के दौरान प्रशासन को इस बात का ख़्याल रखना होगा कि मुस्लिम समुदाय के नागरिकों को नमाज़ से ना रोका जाए। कोर्ट ने कहा कि सर्वे के दौरान मीडिया को मौजूद रहने की इजाज़त नहीं होगी और न ही कमेटी का कोई भी सदस्य मीडिया से बातचीत करेगा। कोर्ट ने कहा कि सर्वे खत्म होने बार पूरी रिपोर्ट सील कवर लिफ़ाफ़े में कोर्ट में पेश करनी होगी।
क्या है विवाद
कहते है ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण औरंगजेब ने करवाया था और यह निर्माण मंदिर तोड़कर किया गया था। इसी को लेकर पूरा विवाद है। 1991 में ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वनाथ के पक्षकार पंडित सोमनाथ ने मुकदमा दायर करते हुए कहा था कि मस्जिद, विश्वनाथ मंदिर का ही हिस्सा है और यहां हिंदुओं को दर्शन, पूजापाठ के साथ ही मरम्मत का भी अधिकार होना चाहिए। उन्होंने दावा किया था कि विवादित परिसर में बाबा विश्वनाथ का शिवलिंग आज भी स्थापित है। इस बाबत प्राचीन मूर्ति स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वरनाथ की ओर से वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी ने कोर्ट में दलील दी कि वर्तमान वाद में विवादित स्थल की धार्मिक स्थिति 15 अगस्त 1947 को मंदिर की थी अथवा मस्जिद की इसके निर्धारण के लिए साक्ष्य की आवश्यकता है।
अदालत में प्राचीन मूर्ति स्वयंभू लार्ड विश्वेश्वरनाथ के वाद मित्र विजयशंकर रस्तोगी की तरफ से वर्ष 1991 से लंबित इस प्राचीन मुकदमे में आवेदन दिया था। जिसमें कहा गया कि मौजा शहर खास स्थित ज्ञानवापी परिसर के आराजी नंबर 9130, 9131, 9132 रकबा एक बीघे नौ बिस्वा जमीन का पुरातात्विक सर्वेक्षण रडार तकनीक से करके यह बताया जाए कि जो जमीन है, वह मंदिर का अवशेष है या नहीं। साथ ही विवादित ढांचे का फर्श तोड़कर देखा जाए कि 100 फीट ऊंचा ज्योतिर्लिंग स्वयंभू विश्वेश्वरनाथ वहां मौजूद हैं या नहीं। दीवारें प्राचीन मंदिर की हैं या नहीं। उनका कहना है कि विवादित स्थल विश्वनाथ मंदिर का एक अंश है इसलिए एक अंश की धार्मिक स्थिति का निर्धारण नहीं किया जा सकता, बल्कि ज्ञानवापी परिसर का भौतिक साक्ष्य लिया जाना जरूरी है। जिसे पुरातात्त्विक विभाग जांचकर वस्तुस्थिति स्पष्ट कर सकता है कि ढांचा के नीचे कोई मंदिर था अथवा नहीं। तथ्यों के आधार पर प्राचीन विश्वनाथ मंदिर के ध्वस्त अवशेष प्राचीन ढांचा के दीवारों में अंदरुनी और बाहरी तौर पर विद्यमान बताए गए हैं। पुराने मंदिर के दीवारों और दरवाजों को चुनकर वर्तमान ढांचा का रुप दिया गया बताया है।
कहा गया है कि पुराने विश्वनाथ मंदिर के अलावा पूरे परिसर में अनेक देवी-देवताओं के छोटे-छोटे मंदिर थे जिनमें से कुछ आज भी विद्यमान हैं। वहीं वर्तमान ज्योर्तिलिंग की स्थापना 1780 में महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने कराया था। यह भी दलील दी गई कि अयोध्या केस में भी पुरातात्विक विभाग से रिपोर्ट मंगाई गई थी, जिसके बाद ही अंतिम फैसला आया था। जबकि सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और अंजुमन इंतजामिया मसाजिद ने सिविज जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक के कोर्ट में सुनवाई करने के लिए अदालत में क्षेत्राधिकार को चुनौती दी थी। बीती 25 फरवरी 2020 को सिविल जज सीनियर डिवीजन ने इस चुनौती को खारिज कर दिया था। इस फैसले के खिलाफ सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और अंजुमन इंतजामिया मसाजिद ने जिला जज के यहां निगरानी याचिका दाखिल किया था। जिसपर आगामी 12 अप्रैल को सुनवायी होनी है। उधर, इसी मुकदमे की पोषणीयता को लेकर हाइकोर्ट में भी सुनवायी चल रही है। इस मामले में दोनों पक्षों की ओर से बहस भी पूरी हो चुकी है, इस पर हाइकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा है।
रस्तोगी की दलील थी कि 14वीं शताब्दी के मंदिर में प्रथम तल में ढांचा और भूतल में तहखाना है, जिसमें 100 फीट ऊंचा शिवलिंग है, यह खुदाई से स्पष्ट हो जाएगा। मंदिर हजारों वर्ष पहले 2050 विक्रम संवत में राजा विक्रमादित्य ने बनवाया था। फिर सतयुग में राजा हरिश्चंद्र और वर्ष 1780 में अहिल्याबाई होलकर ने जीर्णोद्धार कराया था। उन्होंने यह भी कहा था कि जब औरंगजेब ने मंदिर पर हमला किया था तो उसके बाद 100 वर्ष से ज्यादा समय तक यानी वर्ष 1669 से 1780 तक मंदिर का अस्तित्व ही नहीं था।