प्रख्यात विज्ञानी गगनदीप कांग के मुताबिक एस्ट्राजेनेका टीके को लेकर यूरोपीय स्तर का आकलन किया जाए तो भारत में कोविशील्ड का टीका लेने से खून के थक्के बनने के मात्र 320 मामले आने चाहिए। उन्होंने इसे बहुत कम खतरा बताते हुए कहा कि घबराने की कोई जरूरत नहीं है।क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लूर में प्रोफेसर कांग ने कहा कि यूरोपीय मेडिसीन एजेंसी (ईएमए) के मुताबिक यूरोपीय स्तर के आकलन से एस्ट्राजेनेका टीके से खून के थक्के बनने का खतरा एक लाख मामलों में एक का है और ब्रिटिश नियामक द्वारा 250,000 पर एक मामले की सूचना दी गई है।
खून के थक्के बनने की आशंका के कारण एस्ट्राजेनेका के कोरोना वायरस के टीके के इस्तेमाल को रोक दिया है या इसे सीमित कर दिया है।कांग ने द वायर को दिए एक साक्षात्कार में कहा, टीका लेने के बाद खून का थक्का बनने के कुछ मामले आ सकते हैं। इसकी आशंका रहती है। हमें यह जानने की जरूरत है कि क्या कम प्लेटलेट काउंट से खून के थक्का बनने का मामला जुड़ा है।कांग ने कहा कि सरकार को समयबद्ध तरीके से इस मामले पर गौर करने के लिए जांच करानी चाहिए और रिपोर्ट सार्वजनिक करनी चाहिए।
विषाणु विज्ञानी के मुताबिक यूरोपीय स्तर से भारत में आकलन करने पर लक्ष्य के मुताबिक देश में तीस करोड़ लोगों को टीके दिए जाने पर खून का थक्का बनने के 3,000 मामले आ सकते हैं। उन्होंने कहा कि भारत में एस्ट्राजेनेका की अब तक आठ करोड़ खुराकें दी गई हैं। ऐसे में 320 मामले आने चाहिए।
यूरोप व अन्य देशों की सरकारें एस्ट्राजेनेका टीके पर दे रहीं अलग-अलग सुझाव
यूरोपीय संघ (ईयू) की औषधि नियामक संस्था द्वारा एस्ट्राजेनेका टीके और खून के थक्के जमने के बीच संबंध की आशंका जताने के एक दिन बाद यूरोपीय और अन्य कई देश इस टीके को अपने नागरिकों को देने के लिए कई तरह के सुझाव दे रहे हैं।स्पेन में अब 60 वर्ष से अधिक आयु के लोगों को एस्ट्राजेनेका टीका दिया जाएगा। बेल्जियम में यह उम्र 55 निर्धारित की गई है।
ब्रिटेन में अधिकारियों का कहना है कि 30 साल से कम उम्र के लोगों को यह टीका न दिया जाए। इस बीच ऑस्ट्रेलिया ने गुरुवार को कहा कि 50 की उम्र से कम के लोगों को यह टीका न दिया जाए। ब्रिटेन और यूरोपीय संघ में नियामक संस्थाओं ने इस पर बल दिया है कि ज्यादातर लोगों के लिए टीका लगवाने के फायदे उसके खतरे से अधिक हैं। ईयू की एजेंसी का कहना है कि टीका सभी वयस्कों को दिया जा सकता है। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि टीके के बारे में उलझन पैदा करने वाले संदेशों से इसके प्रयोग के प्रति उत्साह ऐसे समय कम होगा जब यूरोप और दुनिया के अन्य हिस्सों में संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं।