दिव्यांगता के बावजूद कानपुर की माधुरी टीबी रोगियों के लिए बनी मदर टेरेसा

कानपुर :  कुष्ठ रोग को लेकर जिस प्रकार तत्कालीन समाज में भ्रांतियां थी उसको लेकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने बीड़ा उठाया। इसी का परिणाम रहा कि यूगोस्लाविया से चलकर मदर टेरेसा भारत आकर कुष्ठ रोगियों की सेवा में जुट गईं और उन्हे संत की उपाधि मिली। यही नहीं विश्व के सबसे बड़े पुरस्कार नोबल से सम्मानित हुईं। इन्ही महापुरुषों से प्रेरणा लेकर कानपुर की माधुरी टीबी रोगियों की सेवा में अपना सबकुछ न्यौछावर करने में जुट गयी। हालांकि वह दिव्यांग है पर दिव्यांगता को मात देकर डॉट्स प्रोवाइडर बनकर टीबी रोगियों की सेवा में जुटी हुई हैं। माधुरी ने जब टीबी को देश से मिटाने की ठानी तब डॉट्स प्रोवाइडर बन गयीं और आज कई रोगियों को टीबी से मुक्त करवा चुकी हैं। पिता की मौत के बाद मानो जैसे माधुरी के ऊपर परेशानियों का पहाड़ टूट पड़ा। उसके बाद घर की छत से गिरी तो रीढ़ की हड्डी टूटने की वजह से दिव्यांगता का शिकार हो गयीं। घर के हालात सुधारने के लिये उन्हें पड़ोसी ने स्टाफ नर्स बनने के लिये प्रेरित किया और फिर बाद में कमलापत मेमोरियल चिकित्सालय में वह डॉट्स प्रोवाइडर के रूप में कार्यरत हुईं। तभी माधुरी ने गहराई से क्षयरोग की जानकारी ली और फिर लोगों को भी टीबी से मुक्ति दिलाने की ठान ली। माधुरी अब तक दर्जनों लोगों को टीबी से मुक्ति दिलाने में मदद कर चुकी हैं।

जनपद के शहरी क्षेत्र हूलागंज की रहने वाली माधुरी वर्ष 2004 से डॉट्स प्रोवाइडर के रूप में काम कर रही हैं। वह बताती हैं कि उनके घर पर मां और दो भाई हैं। उनके मोहल्ले में ही एक परिवार के पांच सदस्यों को टीबी हुई तब उन्होंने अन्य लोगों में उस परिवार के प्रति भेदभाव की भावना देखी। वह कहती हैं कि जब उन्हें डॉट्स प्रोवाइडर के रूप में कार्य करने का मौका मिला तो हां कहने में देर नहीं की। वह बताती हैं यहाँ ज्यादातर टीबी के मरीज मजदूर वर्ग के हैं| सुबह जल्दी काम के लिए निकल जाते हैं। इस वजह से वह सुबह छह बजे उठ कर लोगों के पास जा कर दवाई देती हैं। जिन मरीजों से फ़ोन पर संपर्क होता है उनसे एक हफ्ता पहले ही संपर्क कर लेती हैं और दवाई खत्म होने से पहले ही दवा उपलब्ध कराती हैं। माधुरी बताती हैं कि कई मरीज किशोरियां भी रहीं हैं, जिनकी वह नियमित देख-रेख करती थीं। अक्सर उनके परिवार वालों को अपनी पहचान बताने में आपत्ति रहती थी। उन्हें डर रहता था कि यदि उनकी बेटियों के टीबी मरीज होने की बात लोगों में पहुंची तो ऐसा न हो शादी या आने वाले वैवाहिक जीवन में असर डाले। इसके लिए माधुरी ने परिवार वालों का भरोसा जीता और बिना पहचान बताये किशोरियों का इलाज पूरा करवाया और आज उन्हें टीबी से मुक्ति मिल गई है। अब तक माधुरी ने करीब 75 मरीजों को टीबी से मुक्ति दिलाने में मदद की है।

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