मन को भाने वाला ख़राब तथा बिना पोषण का आहार केवल पेट ही नहीं भरता बल्कि कई बीमारियों का कारण बनने वाले जीवाणु तथा कीटाणु भी हमारे शरीर में भरता है और शरीर को कमजोर बनाता है। ऐसे आहार के कारण जब शरीर को रोग जकड़ लेता है और उसका उपचार शुरू होता तो आहार में बदलाव भी बेहद जरूरी है।
दरअसल, ज्यादातर मरीज बीमारी के इलाज के लिए दवाइयां खाते हैं लेकिन आहार में सही बदलाव नहीं करते जिस कारण शरीर और भी तेज़ी से कमजोर पड़ने लगता है तथा इसकी वजह से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम या खत्म होने लगती है, जिससे फेफड़े कमजोर होना शुरू हो जाते है। इस दौरान सांस के जरिये जीवाणु तथा कीटाणु हमारे फफड़े से चिपक जाते है जिससे खांसी, जुखाम, सांस लेने में तकलीफ होना ऐसी ही अन्य समस्याएं होना शुरू हो जाती है। जिससे की क्षय रोग (टीबी) होने का जोखिम भी बढ़ जाता है। लेकिन हम इतना होने पर भी नहीं समझते हैं की इन समस्याओं को हमने खुद बाहर का खाना, बासी खाना, तथा पोषण रहित खाना तथा सही समय पर भोजन न करके खुद उत्पन्न किया है।
क्षय रोग (टीबी) बीमारी की जड़ या कारण-
ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) एक जीवाणुजनित रोग है इस जीवाणु को माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस नाम से जाना जाता है। यदि कोई व्यक्ति इस जीवाणु से प्रभावित है और जीवाणु से ग्रसित व्यक्ति के खांसते, बोलते या छींकते समय उसके मुंह से निकले छींटे कोई अन्य व्यक्ति अवशोषित करता है तो वह व्यक्ति संक्रमित हो सकता हैं। हालांकि टीबी रोग का प्रसार किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से नहीं होता है।
सही समय पर टीबी के लक्षणों को पहचानने से तथा समस्या की जड़ को पकड़ कर उसके उपचार से इस बीमारी को खत्म किया जा सकता है।
आइये बात करते है टीबी के लक्षणों के बारे मे तथा बीमारी की जड़/कारण के बारे में :-
क्षय रोग (टीबी) के लक्षण-
1. तीन हफ़्तों से जयादा तथा लगातार खांसी का बना रहना।
2. खांसी के साथ साथ बुखार का आना तथा ठण्ड लगना ।
3. सीने में दर्द होना तथा खांसी आते समय अधिक दर्द होना।
4. कमजोरी तथा थकाबट।
5. भूख न लगना तथा वजन का कम होना।
6. रात में तथा सोते समय अधिक पसीना आना।
उपचार तथा देखभाल-
चूंकि क्षय रोग (टीबी) श्व्सन सम्बन्धी रोग है जिस कारण यह शरीर के अन्य हिस्से जैसे की हड्डिया, मष्तिष्क, पेट, पाचन तंत्र, किडनी तथा लिवर को संक्रमित कर सकता है। इस रोग का इलाज डॉक्टर तथा डाइइटीशियन की सलाह तथा सुझाव के साथ महीनो तक तथा लगातार चलने वाला इलाज है। टीबी के इलाज के दौरान कई प्रकार की एंटीबायोटिक दवाये मरीज को दी जाती है जो की माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस जीवाणु को नष्ट तथा नियंत्रित करती है। साथ ही साथ ये एंटीबायोटिक दवाये भोजन तथा भोजन से मिलने वाले पोषक तत्वों के साथ परस्पर क्रिया करती है। फलस्वरूप भोजन से मिलने वाले पोषक तत्वों का अवशोषण तथा चयापचन (अब्सॉर्प्शन एंड मेटाबॉल्ज़िम) नहीं हो पता है और इलाज के दौरान मरीज कुपोषित होने लगता है और कुपोषण ज्यादा बढ़ने पर वजन कम, खून की कमी जैसी अन्य समस्याएं इलाज की अवधि पूरा करने में समस्या उत्पन्न करती है।
टीबी के मरीजों के लिए मेडिकल न्यट्रिशन थेरेपी (सही आहार एवं का पोषण) :
टीबी के साथ कुपोषण एक बहुत ही सामान्य, लेकिन बड़ी चुनौती है। जिस कारण मरीजों को टीबी की एंटीबायोटिक दवाइयों के साथ साथ मल्टीविटामिन्स, मल्टीमिनरल्स तथा उचित मात्रा में एनर्जी, प्रोटीन, फैट, कार्बोहाइड्रेट्स, तथा भोजन में फाइबर की सही मात्रा होना जरुरी है जो की इस प्रकार हैं।
एनर्जी (ऊर्जा): संक्रमित व्यक्ति को सही वजन बनाये रखने के लिए सामान्य से 20 फीसदी से 30 फीसदी अधिक ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है
प्रोटीन: मांसपेशियों के अपचय को रोकने के लिए प्रोटीन की मात्रा 1.2 से लेकर 1.5 ग्राम पर केजी आइडियल बॉडी वेट के अनुसार लिया जानी चाहिए।
प्रोटीन तथा ऊर्जा की उचित मात्रा के साथ कई विटामिन्स और मिनरल्स जैसे की विटामिन डी, विटामिन इ, विटामिन सी, विटामिन ए, बी काम्प्लेक्स विटामिन, सेलेनियम, ज़िक फोलिक एसिड तथा कैल्शियम की मात्रा बड़ा देनी चाहिए।
चूंकि बीमारी के दौरान सभी पोषक तत्वों की मात्रा सामान्य आवश्यकता से अधिक पड़ती है इसलिए टीबी के मरीज को खाना अधिक खाने की जगह अधिक पोषण युक्त तथा दिन में कई बार भोजन लेना चाहिए। और मरीज के द्वारा लिए जाना भोजन संतुलित होना चाहिए। सन्तुलिन आहार की थाली में यह सुनिश्चित करे की सभी प्रकार के खाद्य पदार्थ जैसे की भिन्न भिन्न प्रकार के अनाज, दालें, दूध, दही, घी, पनीर, हरी तथा अन्य प्रकार की सब्जियां एवं फल, गुड़ तथा सही मात्रा में भोजन में नमक हो। इस प्रकार हम टीबी से होने वाली मृत्यु दर को रोक सकते है तथा मरीज के अच्छे स्वास्थ्य की परिकल्पना करना पूरी तरह संभव है।