काशी का मस्तमौला मिजाज, फक्कड़ जीवनशैली भी खुशहाली का मंत्र
वाराणसी : भारत सहित पूरी दुनिया शनिवार को खुशहाली दिवस मना रही है। प्रतिस्पर्धापूर्ण जीवन में भागदौड़, बिगड़ती जीवनशैली और तनावपूर्ण वातावरण में खुश रहना और खुल कर हंसना बेहद कठिन हो गया है। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र संघ ने बढ़ते हुए तनाव में आदमी को एक सकारात्मक संदेश देने के लिए वर्ष 2013 में विश्व खुशहाली दिवस मनाने का निर्णय किया और यह निश्चय किया गया कि कम से कम एक दिन आदमी खुल कर हंस सके, खुशियां मना सके। ताकि वह रोज के तनाव से खुद को राहत दिला सके। संयुक्त राष्ट्र संघ के इस प्रस्ताव का पूरी दुनिया व मानव जाति ने स्वागत किया और तब से प्रत्येक वर्ष 20 मार्च खुशहाली दिवस के रूप में मनता है। जाने माने शिक्षाविद और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) के पूर्व क्षेत्रीय निदेशक डॉ. अवध नारायण त्रिपाठी ने शनिवार को ‘हिन्दुस्थान समाचार’ से बातचीत में तनावपूर्ण जीवन शैली में खुश रहने के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में भी आम लोगों में बढ़ते तनाव, मानसिक पीड़ा तथा बिगड़ते मानसिक संतुलन के कारण बर्बाद होती जिन्दगियों व परिवारों की स्थिति को देख सहज ही इसकी अहमियत का पता चलता है।
डॉ. त्रिपाठी ने कहा कि काशी की अल्हड़ जीवन शैली भी लोगों को तनाव से दूर रखने में बड़ी भूमिका निभाती है। काशी के बारे में मान्यता है कि यह शिव के त्रिशूल पर विराजमान है। ये काशीपुराधिपति बाबा विश्वनाथ की नगरी है। यहां श्मशान घाट की भभूत से होली खेली जाती है, जो मनुष्य के शरीर की नश्वरता को बताती है। “खेलै मसाने में होली” यह गीत इस नश्वरता को ही बताता है। काशी, जिसकी महिमा का बखान करने के लिए दिन, सप्ताह व महीने भी कम पड़ जाय। ऐसी काशी ने युग युगों से खुशहाली का ही मंत्र दिया है। जब सारी दुनिया सोती है तब यहां मणिकर्णिका घाट पर औघड़ संत कुण्डलिनियों को जागृत करने के लिए अपनी साधना में लीन रहते हैं। काशी में कहावत है कि “काशी कबहुं न छाड़िए, जब तक मिले उधार”। ऐसी तीन लोक से न्यारी काशी में पाश्चात्य की चकाचौंध से निराश लोग, मन की शांति की खोज में काशी आते हैं और काशी ऐसे सभी को अपनी फक्कड़ मस्ती में अपनाकर इनके मन को शांति प्रदान करती है और फिर यह काशी के ही होकर रह जाते हैं।
डॉ. त्रिपाठी बताते हैं कि बीएचयू के सर सुन्दर लाल चिकित्सालय के मनोरोग चिकित्सक प्रो.संजय गुप्ता संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्ताव से भी तीन साल पहले 25 अप्रैल 2010 को ही “खुशहाली मंच” बनाकर लोगों के बीच जाकर उनके जीवन से नकारात्मकता का भाव निकालकर उनमें सकारात्मक ऊर्जा व सोच विकसित करने की मुहिम चला रहे है। प्रो. गुप्ता ने वाराणसी के केन्द्रीय कारागार के कैदियों के बीच जाकर भी उनके जीवन की सार्थकता का मंत्र दिया। उनका मंत्र “आज जो होगा बहुत ही अच्छा होगा” “आज जो होने वाला है, बहुत अच्छा होने वाला है।” अपने आप में व्यक्ति को एक नये उत्साह व सकारात्मकता से भर देता है। प्रो. संजय गुप्ता की पहचान अब “खुशहाली गुरु” के रूप में बन चुकी है।