हाल में स्विट्जरलैंड की ‘आइक्यू एयर’ संस्था द्वारा जारी वल्र्ड एयर क्वालिटी इंडेक्स रिपोर्ट-2020 के मुताबिक दुनिया के 30 सबसे प्रदूषित शहरों में 22 शहर भारत के हैं। इसमें चीन का शिनजियांग शहर शीर्ष पर है, जबकि गाजियाबाद दुनिया का दूसरा सर्वाधिक प्रदूषित शहर है। दिल्ली दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी है। शीर्ष 30 प्रदूषित शहरों की फेहरिस्त में उत्तर प्रदेश के दस और हरियाणा के नौ शहर शामिल हैं।
कोरोना काल के लॉकडाउन की अवधि को छोड़ दिया जाए तो प्रदूषण की समस्या भारतीय शहरों में सालोंभर विद्यमान रहती है। गाड़ियों, जीवाश्म ईंधनों, उद्योगों, कचरों तथा पराली जलाने से निकलने वाला धुआं वातावरण में प्रदूषण की घनी चादर लपेट रहा है। जो शहर आधुनिक जीवन के चकाचौंध के बल पर लोगों को अपनी ओर आकर्षति करते हैं, वही पर्यावरणीय दृष्टि से लोगों की पीड़ा का कारण भी बन रहे हैं। दुर्भाग्य यह है कि हमने औद्योगिक मांग के अनुरूप शहरों का विकास तो किया, किंतु पर्यावरण का ख्याल किसी भी दृष्टि से नहीं रखा। अपने जीवन को भौतिक रूप से आरामदायक बनाने के लिए हम न जाने कितने प्रयत्न करते हैं, लेकिन चौखट के भीतर और बाहर वायु में विद्यमान प्रदूषक (कार्बन मोनोक्साइड, कार्बन डाई-ऑक्साइड, मिथेन, क्लोरो-फ्लोरो कार्बन, सल्फर और नाइट्रस ऑक्साइट, ओजोन और विशेषकर पीएम 2.5) जो हमारे फेफड़े खराब कर रहे हैं, उनके बारे में सोचने का हमें वक्त ही नहीं मिलता! कहने में संकोच नहीं कि कालांतर में हमारी आने वाली पीढ़ी प्राकृतिक संसाधनों तथा स्वच्छ परिवेश से इतर घुटन भरी जिंदगी जीने को विवश होगी। हमारे पूर्वजों ने हमें कितना शुद्ध और स्वच्छ वातावरण दिया था। क्या हम आगे आने वाली पीढ़ियों को इसे उसी रूप में स्थानांतरित कर पाएंगे?
स्वच्छ पर्यावरण, स्वस्थ मानव जीवन का आधार होता है। वायु, जल और स्थलमंडल के सहयोग से पृथ्वी पर जीवन के लिए अनुकूल परिस्थितियों का सृजन होता है। पर्यावरण एक अभिभावक की भांति नि:स्वार्थ भाव से मानव सहित समस्त जीवधारियों का जीवनभर पालन-पोषण करती है। स्वच्छ और शुद्ध पर्यावरण जीवों को लंबी उम्र का आशीर्वाद देता है। हालांकि औद्योगिक विकास की दिशा में आगे बढ़ता ‘आधुनिक’ समाज पर्यावरण संरक्षण को दोयम दर्जे का विषय समझता है। मौजूदा समय में हरित-गृह प्रभाव, ग्लोबल वाìमग, ओजोन परत क्षय तथा सभी प्रकार के प्रदूषणों (जल, वायु, भूमि और ध्वनि) ने पर्यावरण को मैला कर दिया है। जरूरी यह है कि देश में सततपोषणीय विकास पर जोर दिया जाए तथा पर्यावरण संरक्षण के निमित्त हम अपने स्तर पर सकारात्मक पहल करें। तभी स्थिति बदलेगी और पृथ्वी पर जीवन की परिस्थितियां अनुकूल होंगी।