बाराबंकी। टीबी के मरीजों को दवा अधूरी नहीं छोड़नी चाहिए। टीबी की खुराक पूरी करने से इससे छुटकारा मिलेगा। अधूरे इलाज से यह मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस ( एमडीआर) टीबी में बदल सकती है। इसलिए डॉट्स पद्धाति से मरीजों को पूरा इलाज कराना चाहिए। जबकि पहले एमडीआर टीबी से पीड़ित मरीजों को 24 महीने तक दवा खानी पड़ती थी। अब ऐसे मरीजों को सिर्फ़ 9 से 11 महीने तक ही दवा खानी पड़ रही है । जिले बाराबंकी के हम एक ऐसे टीबी चैम्पियन की बात कर रहे हैं, जो कि 70 साल के बुजुर्ग है। जिन्होंने नौ महीने तक टीबी की दवा का कोर्स पूरा करके बीमारी से छूटकारा ले लिया है, अब वह स्वस्थ्य होकर लोगों के लिए संबल बन गये है।
राधे लाल बने टीबी चैम्पियन:
मूल रुप से विकास खण्ड मसौली के पोस्ट बजहा ग्राम लक्ष्बर निवासी राधेलाल जो कि 70 साल के वृद्ध है। उनको टीबी बीमारी हो गई थी जिसके बाद जांच व नियमित दवा का कोर्स पूरा करके बीमारी से निजात ले लिया। राधेलाल बताते है कि पहले जब खांसी आना शुरू हुआ तो लगा की सामान्य खांसी है। लेकिन कुछ ही दिनों में उसने विकराल रूप ले लिया। टीबी रोग हो जाने की बात पर डर लग जाता था। मन में बन भय के कारण टीबी अस्पताल न जाकर पहले पास की दुकान से तेज खांसी व अन्य की बात कहकर दवा लेकर खाता रहा। लेकिन तबीयत ठीक होने के बजाय और खराब हो गई। वजन धीरे- धीरे कम होने लगा, भूख लगनी बन्द हो गई, हमेशा थकान होती थी। फिर परिजनों ने ले जाकर जिला अस्पताल में सभी जांचे करायी। इसके बाद मैं जिला क्षय रोग अस्पताल गया। चिकित्सक से परामर्श लेकर नियमित तौर पर दवाएं खाने लगा। इस दौरान पोषण के लिए जब आर्थिक मदद मिली, तो बिना हिचक के डॉक्टरों द्वारा कहें इलाज के कोर्स को पूरा किया। एक बार भी बिना दवा बिना खाए नहीं सोया, इसलिए आज पूरी तरह से स्वास्थ्य हूं, लोगों को भी ।
जिला छय रोग अधिकारी डा एके वर्मा ने बताया कि (ट्यूबरकुलोसिस) एक संक्रामक रोग है, इसे शुरू होते ही न रोका गया, तो यह जानलेवा साबित हो सकता है। रोग से प्रभावित अंगों में छोटी-छोटी गांठ बन बनने लगती हैं। प्राथमिक उपचार न होने पर धीरे-धीरे प्रभावित अंग अपना कार्य करना बंद कर देते हैं, जिससे व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है। टीबी का इलाज सरकारी अस्पतालों और डॉट्स सेंटरों में निशुल्क उपलब्ध है। इसका इलाज लंबा चलता है, इसमें 6 माह से लेकर 2 साल तक का समय भी लग सकता है। इसलिए मरीजों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि, दवा को बीच में ना छोड़े। बीच में दवा छोड़ने से बैक्टीरिया में दवाओं के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है, जिससे मरीज का इलाज काफी मुश्किल होता है। इसके बाद आम दवाएं असर नहीं करती है। उन्होंने बताया जिले में ऐसे सैकड़ों मरीज है जिन्होंने टीबी का इलाज का कोर्स पूरा करके रोग से मुक्ति पाई है। मरीजों को आर्थिक मदद भी दी गई है।
पूरी तरह से नि:शुल्क है टीबी की जांच व इलाज:
डीटीओ डा वर्मा कहना है कि टीबी की जांच व इलाज पूरी तरह से निशुल्क है। हमारे सभी ब्लाक सीएचसी व पीएचसी पर जांच की सुविधा उपलब्ध है। लक्षण दिखें तो तुरन्त हमारे नजदीकी केन्द्र पर जांच करा लें। इस समय कुल 16 माइक्रोस्कोपिक जांचकेन्द्र तथा जिला क्षय रोग कार्यालय पर सीबीनाट जांच केन्द्र है। वर्तमान में क्षय रोगी खोजी अभियान भी चल रहा है। गांव की आशा से भी कहेंगे तो वह जांच करा देगी।