नई दिल्ली/लखनऊ। केंद्र की मोदी सरकार द्वारा 15 अगस्त 2019 को घोषित की गई घरों में नल से शत प्रतिशत पीने के पानी के आपूर्ति की महत्वाकांक्षी योजना जल जीवन मिशन धीरे-धीरे ही सही लेकिन अब आकार लेती जा रही है। इस योजना के तहत देश के सभी गांवों के हर घरों (लगभग 19 करोड़) में 2024 तक नल से पीने का पानी उपलब्ध कराए जाने का लक्ष्य है।
जल जीवन मिशन की शुरुआत से पहले देश के मात्र 17 प्रतिशत घरों (लगभग 3.20 करोड़) में ही नल से जल की आपूर्ति होती थी। आंकड़ों के मुताबिक कोविड-19 की वैश्विक बाधा के बावजूद अब तक सात करोड़ घरों में नल से पीने के पानी की आपूर्ति हो रही है।संबंधित जल शक्ति मंत्रालय के जारी आंकड़ों के मुताबिक देश के एक तिहाई गावों के घरों में शुद्ध जल की आपूर्ति हेतु कनेक्शन जोड़ दिया गया है। देश 52 जिले, 670 ब्लॉक, 42100 पंचायतों और 81123 गावों में नल से पीने का पानी उपलब्ध कराए जाने की योजना पहुँच चुकी है।
अब उप्र की बात करें तो प्रधानमंत्री के इस महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट के लिए योगी सरकार ने गंभीरतापूर्वक कार्य किया। प्रदेश सरकार ने लक्ष्य की प्राप्ति हेतु सर्वप्रथम एक अलग जलशक्ति मंत्रालय का गठन कर एक मिशन की तरह कार्य शुरू किया।
उप्र में इस महत्वाकांक्षी परियोजना को शुरू से ही भ्रष्टाचार के राजनैतिक आरोपों का सामना करना पड़ रहा है, हालाँकि इन आरोपों को बिना होमवर्क किए लगाया गया इसलिए ये गीला पटाखा ही साबित हुए।
इस योजना में प्राथमिक तौर पर उन घरों का बेसलाइन सर्वे कराया गया, जिन घरों में पाइपलाइन से आपूर्ति नहीं हो रही है। इस सर्वे के आधार पर ही आगे की कार्य योजना तैयार की जानी है। पहले तो इसके लिए टेंडर किये जाने को लेकर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया गया लेकिन साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं दिया जा सका, आरोप हवा हवाई निकले।
इसी क्रम में जल जीवन मिशन के तहत हर घर नल से जल योजना में 1500 करोड़ रुपये के भारीभरकम घोटाले का नया आरोप लगा है। कहा गया कि इस योजना में अभी तक 1500 करोड़ रुपये की गड़बड़ी हो चुकी है, यह रकम और भी बढ़ने की सम्भावना है। सीबीआई जाँच की भी मांग की गई।
घोटाले की विस्तारपूर्वक जानकारी देते हुए कहा गया कि राज्यों में जल जीवन मिशन से संबंधित परियोजनाओं की थर्ड पार्टी जांच दूसरी संस्थाओं से कराए जाने की व्यवस्था है जिसके लिए परियोजना लागत के 0.40 प्रतिशत के खर्च पर टेंडर किया जा सकता है। इसमें तमिलनाडु और केरल राज्य का उदहारण दिया गया।
कहा गया कि उप्र में परियोजना से संबंधित मंत्री डॉ.महेंद्र सिंह ने अपनी चहेती फर्मों को 1.33 प्रतिशत की खर्च पर टेंडर दिया है और इस तरह 1500 करोड़ रुपये का घोटाला किया गया है।
हकीकत जानने की कोशिश में पता चला कि उप्र में योजना के तहत राज्य के सभी 75 जिलों में विभिन्न ग्रामीण जल आपूर्ति परियोजनाओं के भौतिक और वित्तीय प्रगति के तीसरे पक्ष के निरीक्षण और निगरानी के लिए सलाहकार की नियुक्ति के लिए एक निविदा जारी की गई है।
जबकि, तमिलनाडु और केरल द्वारा केवल वर्तमान में चल रहे कार्यों के तीसरे पक्ष के निरीक्षण के लिए निविदाएं जारी की हैं, जिसमें एजेंसियों द्वारा परियोजना निगरानी करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
उप्र ने एक व्यापक निविदा जारी की है जिसमें scope of work के अनुरूप योजना के तहत किए जाने वाले कार्यों के तीसरे पक्ष के निरीक्षण करने के लिए एजेंसी नियुक्त करने की आवश्यकता है। जबकि, केरल और तमिलनाडु में मंगाई गई निविदाएं उन एजेंसियों के मनोनयन के लिए हैं जिनमें scope of work के अनुसार परियोजना निगरानी कार्य शामिल नहीं है।
उत्तर प्रदेश में आवश्यक जनशक्ति की तुलना में केरल और तमिलनाडु में आवश्यक जनशक्ति भी बहुत कम है। इसके अलावा, जल जीवन मिशन के पोर्टल पर उपलब्ध विवरण के अनुसार उप्र में लगभग 79,464 गाँव हैं जहाँ बिना पाइप के पानी की आपूर्ति (PWS) होती है जबकि केरल में PWS के बिना गाँवों की संख्या केवल 16 है और तमिलनाडु में PWS के बिना कोई गाँव नहीं है।
अब आरोप लगाने से पहले यह देखा जाना चाहिए था कि बुनियादी ढांचे का काम तमिलनाडु और केरल में पहले ही पूरा हो चुका है जबकि उत्तर प्रदेश में ऐसा किया जाना बाकी है। इसलिए परियोजना का आकार और आवश्यकताएं केरल और तमिलनाडु की तुलना में उप्र में बहुत अलग और अधिक हैं।
यहां यह बताए जाने की आवश्यकता है कि जल जीवन मिशन के तहत ग्रामीण जल आपूर्ति योजनाओं के लिए पूर्व में संपन्न कार्यो यथा डीपीआर बनाना, कार्य की वर्तमान स्थिति, छूटे हुए कार्यों की मात्रा आदि के आधार पर राज्य सरकारें परियोजना प्रबंधन परामर्शी (पीएमसी), पर्यवेक्षण और गुणवत्ता नियंत्रण (एसक्यूसी) और तीसरे पक्ष के निरीक्षण (टीपीआई) एजेंसियों को नियुक्त करने हेतु विभिन्न दृष्टिकोण अपना रही हैं।
कुछ राज्यों ने जल जीवन मिशन के तहत पीएमसी / टीपीआई / एसक्यूसी कार्यों के लिए कई निविदाएं मंगाई हैं और कुछ जैसे कि उप्र ने इन सभी गतिविधियों (पीएमसी + टीपीआई + एसक्यूसी) को मिलाकर एक निविदा जारी की है। इसलिए उप्र में ज्यादा दरों पर निविदाएं मंगाई गईं।
इसके अलावा, टीपीआई कार्य के लिए लागत scope of work पर निर्भर करती है और अन्य सहायक एजेंसियां जो पहले से ही काम कर रही हैं या टीपीआई के साथ ही साथ जेजेएम के सफल कार्यान्वयन की योजना बनाई हैं। यह scope of work में निहित डिजाइन की समीक्षा, शारीरिक और वित्तीय प्रगति की निगरानी, कारखाने के निरीक्षण और नियमित साइट गुणवत्ता निरीक्षण पर निर्भर करता है।
यह इस पर भी निर्भर करता है कि एजेंसी को 24×7 या आवधिक यात्रा के आधार पर सेवाओं की आवश्यकता है या नहीं। टीपीआई में सभी स्तरों के आधार पर समय-समय पर गुणवत्ता की निगरानी के सीमित दायरे के आधार पर, विभिन्न राज्यों में अंतिम निविदाओं के अनुसार लागत 2% से 0.4% के बीच होती है।