नई दिल्ली (एजेंसी)। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को यौन हमले व एसिड अटैक पीड़िताओं के मुआवजे की योजना से संबंधित मामले की सुनवाई में अहम टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा, ‘जीवन अमूल्य है, कोई भी कोर्ट उसका रुपये-पैसे की दृष्टि से आकलन नहीं कर सकती।’ जस्टिस मदन बी. लोकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह टिप्पणी राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नाल्सा) की मुआवजा योजना को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान की। यह याचिका एक महिला वकील ने दायर की है।
योजना के अनुसार किसी महिला पर यौन हमला या एसिड अटैक होता है, तो उसे न्यूनतम 5 लाख रुपये और जान जाने पर उसके आश्रितों को 10 लाख रुपये का मुआवजा मिलता है। महिला वकील ने एसिड अटैक पीड़ित के मामले में याचिका दायर की है। उसमें कहा गया है कि ऐसे पीड़ितों के मामले में मुआवजा राशि फिक्स कर दी जानी चाहिए, वह अपराध की श्रेणी के अनुसार बदलना नहीं चाहिए।
वकील ने तर्क दिया कि यदि एक महिला से दुष्कर्म होता है, तो उसे मिलने वाले मुआवजे में नाल्सा की योजना के अनुसार फर्क नहीं होना चाहिए। योजना में न्यूनतम 4 लाख रुपये और अधिकतम 7 लाख के मुआवजे का प्रावधान है। उसने कहा कि दुष्कर्म, सामूहिक दुष्कर्म व मौत की घटनाओं को मुआवजे के मामले में प्रतिशतवार श्रेणियों में नहीं बांटा जा सकता।
भारतीय दंड संहिता में है अंतर
इस पर सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि भारतीय दंड संहिता (भादंवि) में दुष्कर्म और सामूहिक दुष्कर्म में अंतर किया गया है। जवाब में वकील ने कहा कि कोर्ट ऐसे पीड़ितों का मुआवजा फिक्स कर दे। पीठ ने कहा कि हमें कुछ सिद्धांतों को देखना होता है। इसे फिक्स नहीं किया जा सकता। महिला वकील ने कहा कि एसिड अटैक पीड़िताओं को रोजगार नहीं मिलता और उनके साथ हुए दुर्व्यवहार का कोई निराकरण नहीं होता। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी देश में एसिड का विक्रय नहीं रूका है। इस पर नाल्सा के वकील ने कहा कि एसिड अटैक पी़ि़डताओं के मामले में विशेषष योजना है। उन्हें मदद की एकल खिड़की सुविधा दी गई है। उनके साथ कैसा व्यवहार हो यह भी तय है। चार हफ्ते बाद सुनवाई दलीलें सुनने के बाद शीर्ष कोर्ट ने एएसजी पिंकी आनंद से कहा कि वह याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाए गए मुद्दों को देखें। चार हफ्ते बाद आगे सुनवाई होगी।